*स्कंदमाता का ध्यान -पांचवा दिन*
*ध्यान* - मन को समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन हो जाइये। मन को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर करें, और समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए माता के दिव्यरुप का नेत्र बन्द कर ध्यान करें।
भावना करें, माँ की गोद में भगवान कार्तिकेय(स्कन्द) बैठे हैं, माँ सन्तान लक्ष्मी के रूप में आपके घर आई हैं। आप उन्हें आसन दे रहे हैं। उनके चरण धो रहे हैं। अपने हाथों से बनाई पुष्पो की माला और पुष्पो के आभूषण बनाके माँ को सजाइये। माँ को अपने हाथो से बनी खीर अपने हाथों से खिलाइये और माँ के आवभगत के इस ध्यान में खो जाइये
*ध्यान* - मन को समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन हो जाइये। मन को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर करें, और समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए माता के दिव्यरुप का नेत्र बन्द कर ध्यान करें।
भावना करें, माँ की गोद में भगवान कार्तिकेय(स्कन्द) बैठे हैं, माँ सन्तान लक्ष्मी के रूप में आपके घर आई हैं। आप उन्हें आसन दे रहे हैं। उनके चरण धो रहे हैं। अपने हाथों से बनाई पुष्पो की माला और पुष्पो के आभूषण बनाके माँ को सजाइये। माँ को अपने हाथो से बनी खीर अपने हाथों से खिलाइये और माँ के आवभगत के इस ध्यान में खो जाइये
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