*माँ कुष्मांडा का ध्यान- चतुर्थ दिन*
*या देवी सर्वभूतेषु, माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः*।।
ध्यान - नीले आसमान में सुबह का सूर्योदय लालिमा लिए हो रहा है। सूर्य के अंदर से आकृति उभर रही है। माँ कुष्मांडा की मन्द मन्द खनकती हंसी हमारे कानों को सुनाई दे रहा है, और माँ की मुस्कान हमारे कष्ट हर रही है। हमारे अंदर असीम शांति और सुकून महसूस हो रहा है। माँ की अब स्पष्ट रूप दिख रहा है, अरे ये क्या माँ तो सिंह पर सवार हो अमृत कलश हाथ में लेकर हमारे पास ही आ रही हैं। माँ ने पहले शंखनाद किया फिर हमें दोनों हाथों से नल से जैसे पानी पीते हैं वो मुद्रा हाथ की बनाने को कहा, अब हमारे हाथों की अंजुली में माँ अमृत कलश से अमृत डाल रही हैं और हम अमृत पान कर रहे है। अमृत पीकर तृप्त हो रहे हैं। इस ध्यान में खो जाइये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन
*या देवी सर्वभूतेषु, माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः*।।
ध्यान - नीले आसमान में सुबह का सूर्योदय लालिमा लिए हो रहा है। सूर्य के अंदर से आकृति उभर रही है। माँ कुष्मांडा की मन्द मन्द खनकती हंसी हमारे कानों को सुनाई दे रहा है, और माँ की मुस्कान हमारे कष्ट हर रही है। हमारे अंदर असीम शांति और सुकून महसूस हो रहा है। माँ की अब स्पष्ट रूप दिख रहा है, अरे ये क्या माँ तो सिंह पर सवार हो अमृत कलश हाथ में लेकर हमारे पास ही आ रही हैं। माँ ने पहले शंखनाद किया फिर हमें दोनों हाथों से नल से जैसे पानी पीते हैं वो मुद्रा हाथ की बनाने को कहा, अब हमारे हाथों की अंजुली में माँ अमृत कलश से अमृत डाल रही हैं और हम अमृत पान कर रहे है। अमृत पीकर तृप्त हो रहे हैं। इस ध्यान में खो जाइये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन
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