*सबसे आसान है ईश्वर से मिलन,*
*सबसे कठिन है मैं से मुक्ति।*
क्यूंकि ईश्वर से मिलन हेतु कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं, कोई शक्ति आपको उससे मिलने से रोक नहीं सकता। वो भीतर है और इतने नज़दीक जितना कोई और दूसरा रिश्ता नहीं होता। उससे मिलन में एक ही बाधा है वो है *मैं*। बस इससे मुक्ति कठिन है।
जब मैं था तब हरि नहीं,
अब हरि हैं मैं नाहि,
प्रेम गली अति सांकरी,
जा में दो न समाहि।
चीनी में दूध घुले या दूध में चीनी, घुलना तो चीनी को ही पड़ेगा। केवल दूध ही बचेगा। ईश्वर रूपी दूध में मैं को घुलना ही होगा।
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