*पाश्चात्य आधुनिकता के अंधानुकरण के प्रभाव में रूप/फैशन को गुण से ऊपर बच्चे मान रहे हैं, जबकि वास्तविकता में गुण/योग्यता ही असली सम्मान दिलाता है।*
फिल्में, टीवी सीरियल और विज्ञापन एजेंसियां किशोर- युवाओं-महिलाओं को एक काल्पनिक दुनियाँ में विचरण करवाते हैं। वो उनकी मनोभूमि में भौंडे फ़ैशन गढ़ते हैं।
अब भला फ़ैशनेबल हीरो हिरोइन टाइप के ब्रांडेड कपड़े किसी को परीक्षा में पास या किसी कम्पनी में जॉब या व्यवसाय में सफ़लता दिलवा सकते हैं क्या? बिना किसी गुण और योग्यता के ऐसे लड़के-लड़कियों को कोई भी जीवनसाथी बनाना चाहेगा क्या? समाज-राष्ट्र-पूरे विश्व में सिर्फ़ मार्किट से ख़रीदे कपड़े पहन के नाम बनाया जा सकता है क्या? फ़िल्म में तो एक हीरो कई सारे गुंडों को पीट सकता है लेकिन हकीकत में ऐसा बिना फ़ौज की ट्रेनिंग के आम आदमी के लिए सम्भव है क्या? फ़िल्म में लड़की-लड़के प्रेम करके भागते है शहर के बाहर लाइट वाइट लगा के झोपड़ी टाइप घर बनाके नाचने गाने लगते हैं हक़ीक़त में ये सम्भव है क्या? झुग्गी झोपड़ी में भी किराया भरना पड़ता है और बिजली का कोई सामान मुफ़्त नहीं मिलता। रील लाइफ़ और रियल लाइफ़ में जमीन आसमान का अंतर है? ये कब समझोगे भाईयों-बहनों?
ब्रांडेड कपड़ों को देख के ताली बजाने वाले कुछ रिश्तेदार और कुछ दोस्त होते हैं, वो भी जब तक आपकी जेब मे पैसा होगा- उनपर लुटाने के लिए तबतक ही ताली बजेगी। पैसा खत्म तो तुम कौन और मैं कौन? भद्दे फ़ैशनेबल कपड़ें पहन के फेसबुक की डीपी तो बन सकती है, लेकिन किसी की बीबी या शौहर नहीं बन सकते, किसी कम्पनी या व्यवसाय में सफ़लता नहीं प्राप्त कर सकते यदि कोई योग्यता न हो तो...
मध्यमवर्गीय परिवार के नक़लची बच्चे अपने अमीर दोस्तों की फ़ैशन में नक़ल करने के चक्कर में गलत रास्ते अपनाते है और भटकन और दलदल में फंस के ख़ुद भी परेशान होते है और माता-पिता को भी परेशान करते हैं।
फ़टी जीन्स, अत्यंत छोटे तंग कपड़े, मिनी से भी मिनी स्कर्ट/फ्रॉक/पैंट पहन के हासिल क्या होता है? यह भी पता नहीं...क्यूंकि ये फ़ैशन है...किसने बनाया यह फ़ैशन... पता नहीं...सब पहनते है...हीरो-हिरोइन पहनते हैं... इसलिए हम भी पहनेंगे...सब गढ्ढे में गिरेंगे तो हम भी गिरेंगे...सर्वत्र भेड़चाल....
पार्टी में दर्पण और कैमरा रख दिया जाय तो पता चलेगा सब सिर्फ स्वयं को बेस्ट दिखाने की होड़ में है...बेस्ट दिख के क्या कोई इनाम मिलेगा...नहीं जी...
कड़कड़ाती ढंड में जरीवाली साड़ी, डीप नेक ब्लाउज और गहने पहने के आना... कितनो ने नोटिस किया पता नहीं...दूल्हे-दुल्हन और उसके घरवालों को दिखाने के लिए गरीबों की तरह अमीर होकर भी ठंड बर्दास्त की क्यों?...किसी ने जबरजस्ती की थी...नहीं जी सब ऐसे ही आते हैं...सब कुँए में गिरेंगे तो हम भी गिरेंगे..
लेकिन यदि फंक्शन में कोई उच्च पद आसीन गुणी व्यक्ति आ जाये साधारण कपड़ों में तो सबके समक्ष किसकी इज्जत होगी? फ़ैशन की या गुण/योग्यता की? स्वयं विचार करें...
फ़ैशन एक तरह का व्यसन है जो बिना जाने समझे मूढ़ बुद्धि से किया जाता है, कोई भी समझदार-बुद्धिमान-योग्य व्यक्ति भौंडे फ़ैशन की मकड़जाल का शिकार नहीं बनता है। वह जीवन लक्ष्य की ओर केंद्रित हो सही दिशा में मेहनत करके गुणों के कारण स्थायी प्रशंसा-सम्मान प्राप्त करता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
फिल्में, टीवी सीरियल और विज्ञापन एजेंसियां किशोर- युवाओं-महिलाओं को एक काल्पनिक दुनियाँ में विचरण करवाते हैं। वो उनकी मनोभूमि में भौंडे फ़ैशन गढ़ते हैं।
अब भला फ़ैशनेबल हीरो हिरोइन टाइप के ब्रांडेड कपड़े किसी को परीक्षा में पास या किसी कम्पनी में जॉब या व्यवसाय में सफ़लता दिलवा सकते हैं क्या? बिना किसी गुण और योग्यता के ऐसे लड़के-लड़कियों को कोई भी जीवनसाथी बनाना चाहेगा क्या? समाज-राष्ट्र-पूरे विश्व में सिर्फ़ मार्किट से ख़रीदे कपड़े पहन के नाम बनाया जा सकता है क्या? फ़िल्म में तो एक हीरो कई सारे गुंडों को पीट सकता है लेकिन हकीकत में ऐसा बिना फ़ौज की ट्रेनिंग के आम आदमी के लिए सम्भव है क्या? फ़िल्म में लड़की-लड़के प्रेम करके भागते है शहर के बाहर लाइट वाइट लगा के झोपड़ी टाइप घर बनाके नाचने गाने लगते हैं हक़ीक़त में ये सम्भव है क्या? झुग्गी झोपड़ी में भी किराया भरना पड़ता है और बिजली का कोई सामान मुफ़्त नहीं मिलता। रील लाइफ़ और रियल लाइफ़ में जमीन आसमान का अंतर है? ये कब समझोगे भाईयों-बहनों?
ब्रांडेड कपड़ों को देख के ताली बजाने वाले कुछ रिश्तेदार और कुछ दोस्त होते हैं, वो भी जब तक आपकी जेब मे पैसा होगा- उनपर लुटाने के लिए तबतक ही ताली बजेगी। पैसा खत्म तो तुम कौन और मैं कौन? भद्दे फ़ैशनेबल कपड़ें पहन के फेसबुक की डीपी तो बन सकती है, लेकिन किसी की बीबी या शौहर नहीं बन सकते, किसी कम्पनी या व्यवसाय में सफ़लता नहीं प्राप्त कर सकते यदि कोई योग्यता न हो तो...
मध्यमवर्गीय परिवार के नक़लची बच्चे अपने अमीर दोस्तों की फ़ैशन में नक़ल करने के चक्कर में गलत रास्ते अपनाते है और भटकन और दलदल में फंस के ख़ुद भी परेशान होते है और माता-पिता को भी परेशान करते हैं।
फ़टी जीन्स, अत्यंत छोटे तंग कपड़े, मिनी से भी मिनी स्कर्ट/फ्रॉक/पैंट पहन के हासिल क्या होता है? यह भी पता नहीं...क्यूंकि ये फ़ैशन है...किसने बनाया यह फ़ैशन... पता नहीं...सब पहनते है...हीरो-हिरोइन पहनते हैं... इसलिए हम भी पहनेंगे...सब गढ्ढे में गिरेंगे तो हम भी गिरेंगे...सर्वत्र भेड़चाल....
पार्टी में दर्पण और कैमरा रख दिया जाय तो पता चलेगा सब सिर्फ स्वयं को बेस्ट दिखाने की होड़ में है...बेस्ट दिख के क्या कोई इनाम मिलेगा...नहीं जी...
कड़कड़ाती ढंड में जरीवाली साड़ी, डीप नेक ब्लाउज और गहने पहने के आना... कितनो ने नोटिस किया पता नहीं...दूल्हे-दुल्हन और उसके घरवालों को दिखाने के लिए गरीबों की तरह अमीर होकर भी ठंड बर्दास्त की क्यों?...किसी ने जबरजस्ती की थी...नहीं जी सब ऐसे ही आते हैं...सब कुँए में गिरेंगे तो हम भी गिरेंगे..
लेकिन यदि फंक्शन में कोई उच्च पद आसीन गुणी व्यक्ति आ जाये साधारण कपड़ों में तो सबके समक्ष किसकी इज्जत होगी? फ़ैशन की या गुण/योग्यता की? स्वयं विचार करें...
फ़ैशन एक तरह का व्यसन है जो बिना जाने समझे मूढ़ बुद्धि से किया जाता है, कोई भी समझदार-बुद्धिमान-योग्य व्यक्ति भौंडे फ़ैशन की मकड़जाल का शिकार नहीं बनता है। वह जीवन लक्ष्य की ओर केंद्रित हो सही दिशा में मेहनत करके गुणों के कारण स्थायी प्रशंसा-सम्मान प्राप्त करता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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