*प्रश्न-किसी भी रिश्ते में दुःख का कारण और निवारण क्या है?*
उत्तर - किसी भी रिश्ते में दुःख के केवल दो मुख्य कारण है:-
1- *मोह*- (प्रेम में त्याग होता है और दूसरे की ख़ुशी मायने रखती है, यहां स्वयं के लिए कोई चाह नहीं होती, इसलिए प्रेम में आनन्द होता है। इसमें निष्काम भक्ति होती है। जब कुछ चाहिए ही नहीं तो दुःख का प्रश्न ही नहीं।
लेकिन मोह में पाने की भावना होती है, अपने हिसाब से सामने वाले से ख़ुशी चाहिए होती है और यही दुःख का कारण बनती है। यह सकाम भक्ति/प्रेम होता है। सकाम मिलने पर खुशी न मिलने पर गम/दुःख जरूर देता है। )
इसलिए तुलसीदास जी कहते हैं-
*मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला।* *तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥*
*काम बात कफ लोभ अपारा।*
*क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥*
*भावार्थ:*-सब प्रकार के रोगों और दुःख की जड़ मोह (अज्ञानजनित सकाम अंध प्रेम) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है॥15॥
मोह की जकड़ में जकड़ा प्रेम सदैव अस्वस्थ रखता है। मोह में फंसा व्यक्ति स्वप्न में भी सुखी नहीं रह सकता।
2- *अपेक्षा(Expectation)* - हम जब किसी से कुछ चाहते है या किसी से कुछ अपेक्षा रखते हैं और सोचते हैं सामने वाला हमारे हिसाब से कार्य करेगा तो दुःख मिलता है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने हिसाब से कार्य करता है। किसी से किसी भी प्रकार की अपेक्षा न करना ही सुख की सम्भावना बन सकता है।
Our frustration are usually driven by our Expectation, To reduce our frustration level, we must discern and remove unrealistic Expectations from others.
परिस्थिति और लोग कभी भी मन मुताबिक नहीं मिलेंगें, तो परिस्थिति चेंज करके सुख की चाह सम्भव नहीं है। मनःस्थिति बदल के हर परिस्थिति में प्रत्येक रिश्ते में सुख प्राप्त किया जा सकता।
संसार में कोई बिना किसी चाहत के/बिना कुछ पाने के लिए प्रेम क्या कर सकता है? मन्दिर भी बिना चाहत/मनोकामना लिए कोई नहीं जाता।
पति-पत्नी हो या प्रेमी-प्रेमिका या कोई भी रिश्ता जिसमें हम यह सोचते हैं कि सामने वाले की गलती के कारण ऐसा हुआ, ट्यूनिंग नहीं बनी, communication gap हुआ जबकि असलियत में दोनो की अपनी अपनी चाहतों ने रिश्तो में मधुरता को पनपने ही नहीं दिया। दोनो एक दूसरे को रोबोट की तरह अपने कमांड पर चलाना चाहते है और अपने हिसाब से रिश्ता चाहते है जो कभी सम्भव ही नहीं होगा। किसी एक के झुकने और सुधरने पर रिश्ता नहीं चलेगा, दोनों को अपनी अपनी जिद/चाहत/अपेक्षा छोड़नी होगी। जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारने की हिम्मत होनी चाहिए।
युगऋषि लिखित दोनो साहित्य का स्वाध्याय यदि दोनों पक्ष *मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले* और *गृहस्थ एक तपोवन* करेंगे तभी आनंद का मार्ग रिश्ते में खोज़ पाएंगे, जिन खोज़ा तिन पाईंयां गहरे पानी पैठ। आनंद चाहिए तो दोनों को पहल करनी पड़ेगी, दोनो को झुकना होगा किसी को ज्यादा तो किसी को कम। मनःस्थिति मोह से प्रेम की ओर ले जानी पड़ेगी। एक हाथ से ताली नहीं बजती, एक तरफा प्रयास ज्यादा दिन नहीं टिकता।
If we can reduce our expectations and increase our acceptance will take us towards happiness.
http://literature.awgp.org/book/mana_sthiti_badale_to_paristhiti_badale/v3.7
http://literature.awgp.org/book/gruhasth_ek_tapovan/v6
http://vicharkrantibooks.org
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - किसी भी रिश्ते में दुःख के केवल दो मुख्य कारण है:-
1- *मोह*- (प्रेम में त्याग होता है और दूसरे की ख़ुशी मायने रखती है, यहां स्वयं के लिए कोई चाह नहीं होती, इसलिए प्रेम में आनन्द होता है। इसमें निष्काम भक्ति होती है। जब कुछ चाहिए ही नहीं तो दुःख का प्रश्न ही नहीं।
लेकिन मोह में पाने की भावना होती है, अपने हिसाब से सामने वाले से ख़ुशी चाहिए होती है और यही दुःख का कारण बनती है। यह सकाम भक्ति/प्रेम होता है। सकाम मिलने पर खुशी न मिलने पर गम/दुःख जरूर देता है। )
इसलिए तुलसीदास जी कहते हैं-
*मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला।* *तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥*
*काम बात कफ लोभ अपारा।*
*क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥*
*भावार्थ:*-सब प्रकार के रोगों और दुःख की जड़ मोह (अज्ञानजनित सकाम अंध प्रेम) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है॥15॥
मोह की जकड़ में जकड़ा प्रेम सदैव अस्वस्थ रखता है। मोह में फंसा व्यक्ति स्वप्न में भी सुखी नहीं रह सकता।
2- *अपेक्षा(Expectation)* - हम जब किसी से कुछ चाहते है या किसी से कुछ अपेक्षा रखते हैं और सोचते हैं सामने वाला हमारे हिसाब से कार्य करेगा तो दुःख मिलता है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने हिसाब से कार्य करता है। किसी से किसी भी प्रकार की अपेक्षा न करना ही सुख की सम्भावना बन सकता है।
Our frustration are usually driven by our Expectation, To reduce our frustration level, we must discern and remove unrealistic Expectations from others.
परिस्थिति और लोग कभी भी मन मुताबिक नहीं मिलेंगें, तो परिस्थिति चेंज करके सुख की चाह सम्भव नहीं है। मनःस्थिति बदल के हर परिस्थिति में प्रत्येक रिश्ते में सुख प्राप्त किया जा सकता।
संसार में कोई बिना किसी चाहत के/बिना कुछ पाने के लिए प्रेम क्या कर सकता है? मन्दिर भी बिना चाहत/मनोकामना लिए कोई नहीं जाता।
पति-पत्नी हो या प्रेमी-प्रेमिका या कोई भी रिश्ता जिसमें हम यह सोचते हैं कि सामने वाले की गलती के कारण ऐसा हुआ, ट्यूनिंग नहीं बनी, communication gap हुआ जबकि असलियत में दोनो की अपनी अपनी चाहतों ने रिश्तो में मधुरता को पनपने ही नहीं दिया। दोनो एक दूसरे को रोबोट की तरह अपने कमांड पर चलाना चाहते है और अपने हिसाब से रिश्ता चाहते है जो कभी सम्भव ही नहीं होगा। किसी एक के झुकने और सुधरने पर रिश्ता नहीं चलेगा, दोनों को अपनी अपनी जिद/चाहत/अपेक्षा छोड़नी होगी। जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारने की हिम्मत होनी चाहिए।
युगऋषि लिखित दोनो साहित्य का स्वाध्याय यदि दोनों पक्ष *मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले* और *गृहस्थ एक तपोवन* करेंगे तभी आनंद का मार्ग रिश्ते में खोज़ पाएंगे, जिन खोज़ा तिन पाईंयां गहरे पानी पैठ। आनंद चाहिए तो दोनों को पहल करनी पड़ेगी, दोनो को झुकना होगा किसी को ज्यादा तो किसी को कम। मनःस्थिति मोह से प्रेम की ओर ले जानी पड़ेगी। एक हाथ से ताली नहीं बजती, एक तरफा प्रयास ज्यादा दिन नहीं टिकता।
If we can reduce our expectations and increase our acceptance will take us towards happiness.
http://literature.awgp.org/book/mana_sthiti_badale_to_paristhiti_badale/v3.7
http://literature.awgp.org/book/gruhasth_ek_tapovan/v6
http://vicharkrantibooks.org
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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