Friday, 13 April 2018

सत्यनारायण व्रत कथा* (थोड़ी बड़ी पोस्ट है कृपया पूरा पढ़ें)

*सत्यनारायण व्रत कथा* (थोड़ी बड़ी पोस्ट है कृपया पूरा पढ़ें)
 (सत्य ही नारायण हैं, और भगवान का साझेदार(parter)   बनने का व्रत(संकल्प-contract sign) करना, इस संकल्प की हर महीने समीक्षा करना).

नैमिषारण्य की संसद में 88 हज़ार ऋषियों ने प्रश्न किया क़ि विभिन्न दुःख से दुःखित जन किस प्रकार अपना कल्याण करें। सूत जी (Priminister of Rishi) बोले, इस विषय के समाधान हेतु भगवान विष्णु और नारद जी का सम्वाद सुनाता हूँ।

नारद जी पृथ्वी पर घूमने(visit) आये, पृथ्वीवासियों का ऐश्वर्य(Meterial & Scientific Growth) देखकर बड़े प्रभावित(impress) हुए। लेकिन गौर से निरीक्षण(detail inspection) किया तो बड़े निराश हुए। AC को कूलिंग में बैठे व्यक्ति का हृदय और दिमाग़ उबल(boiling condition) में था। चार पहिये की गाड़ी में बैठे व्यक्ति के जीवन में चार पल का सुकून नहीं था। कठिन विषयों को स्कूल कॉलेज में पढ़ाने वालों को स्वयं के विषय में ज्ञान नहीं था। गाड़ी चलाने वाले को भी मन नियंत्रण करना नहीं आता था। हर तरफ़ झूठा दिखावा, बाहर से अमीर और भीतर से कंगाल दुःखी।

दयालु नारद जी ने मनुष्य को भीतर से सुखी करने का उपाय भगवान विष्णु से पूंछा।

भगवान विष्णु ने कहा, उपाय सिम्पल है उनसे कहो मुझे अपनी जिंदगी में पार्टनर बना लें। जितने % का पार्टनर बनाये उनकी मर्ज़ी। बस कल्याण हो जायेगा लेकिन ध्यान रखें, जो बोयेंगे वही काटेंगें। जो कर्म लिखेंगे उसी के अनुसार कर्मफ़ल(destiny) मिलेगा।

पृथ्वी पर नारायण बूढ़े ब्राह्मण का वेश धर के आये और सुखी होने का तरीका(how to be joyful recipe) पहले एक भिखारी ब्राह्मण को बताया और कहा जब सुखी हो जाना तो यह सुख का मार्ग/तरीका दूसरों को भी बता देना।

पहले भिखारी स्वयं के पेट के लिए भीख मांगता था, लेकिन उसने संकल्प(व्रत) लिया आज से भगवान मेरा हिस्सेदार(partner) है जो भी मिलेगा उसका एक अंश उन्हें ईमानदारी(सत्य निष्ठां) से दूंगा और लोककल्याण में लगाउँगा। रोज की अपेक्षा आज उसे दुगुना भीख मिला और उसने सत्य पालन कर भगवान के हिस्से से पूजन कर लोककल्याण हेतु भूखे दरिद्र अपंग को भोजन कराया और उन्हें धर्म का उपदेश दिया। धीरे धीरे यह उसकी दिनचर्या बन गया और लोग उसका धर्म उपदेश सुन उसे दक्षिणा देने लग गए।  उसकी समृद्धि देख एक लकड़हारे ने पूंछा क्या मैं भी भगवान को सत्य निष्ठां से अपना पार्टनर बनाने का संकल्प(व्रत) ले सकता हूँ क्या मेरा कल्याण होगा। ब्राह्मण ने कहा अवश्य होगा।

लकड़हारे ने भगवान को अपनी कमाई का दो % का पार्टनर बनाया, और उसका काम चल निकला और उसका कल्याण हुआ। एक राजा जो दुःखी था उसने लकड़हारे से प्रेरणा लेकर भगवान के साथ पार्टनरशिप शुरू की 10% की, लोककल्याण हेतु संकल्प(व्रत) लेकर राज्य करने लगा। सत्साहित्य छपवा कर भगवान के साथ साझेदारी नफे का सौदा सर्वत्र बाँट दिया। राजा का कल्याण हुआ पुत्र और धनधान्य से सम्पन्न हुआ।

एक वैश्य(जो थोड़ा कुटिल बुद्धि था) ने राजा से कहा क़ि जब मेरी सन्तान नहीं है और जब पुत्री होगी तो मैं भी भगवान के साथ सत्य निष्ठां से पार्टनरशिप करूंगा यह संकल्प(व्रत) लेता हूँ। बेटी हुई तो पत्नी ने संकल्प(व्रत-contract) याद दिलाया लेकिन उसने कहा जब बेटी का विवाह होगा तबसे शुरू करूंगा और 10 नहीं बल्कि 20% की साझेदारी करूंगा। विवाह हुआ लेकिन वो व्रत(God contract) भूल गया। दण्ड तो मिलना ही था। भगवान मदद भी किसी अन्य माध्यम से पहुंचाता है और दण्ड भी किसी अन्य के माध्यम से देता है। यही वैश्य के साथ हुआ और झूठे चोरी के आरोप में जेल हो गयी। ईधर घर का सामान चोरी होने से पत्नी और बेटी भी दुःखित हुए। बेटी जिस घर में मजदूरी करने लगी, उस घर में उसने सुखी होने की रेसिपी और भगवान के साथ साझेदारी की बात सुनी। माँ को बताया और माँ बेटी अपनी कमाई और समय का एक अंश लोकल्याण में लगाने लगी। इनके पुण्य के प्रताप से वैश्य जेल से मुक्त हुआ और धन की नौका लेकर वापस आ रहा था, तो भगवान ने उसकी परीक्षा दण्डी स्वामी बनकर ली। क़ि इसको सद्बुद्धि मिली या नहीं। पूंछा हे वैश्य तूने भगवान से साझेदारी का वचन दिया था। नजदीकी एक ग़रीब बच्चों का स्कूल बन रहा है, वो दान तू यहां दे दे। कुटिल वैश्य ने हंसकर कहा, मेरी नाव में धन नहीं है, सिर्फ बेल के पत्ते हैं। दण्डी स्वामी ने कहा तुम्हारा वचन सत्य हो। थोड़ी देर में दामाद रोता हुआ वैश्य के पास् आया क़ि धन न जाने कैसे पत्ते बन गए। जब दुःख न मिले इंसान की अक़्ल ठिकाने नहीं आती। दुःख मिलते ही वैश्य की बुद्धि शुद्ध हो गयी क्षमा मांगी। और धन का हिस्सा स्कूल निर्माण में देकर घर वापस आया। माँ बेटी ने जब खबर सुनी तो ख़ुशी के मारे वो भी भगवान की साझेदारी का संकल्प भूल गयी। दामाद के जल के डूबने की खबर आई, फिर दुःख मिलते ही उनको अपना संकल्प याद आया। उन्होंने प्रार्थना कर क्षमा मांगी। और इस प्रकार सत्य के साथ व्रत का पालन करते हुए ईश्वर के साथ साझेदारी की और सुख पाया।

बोलो सत्य नारायण भगवान की जय!

हम और हमारे पति भी युगऋषि गुरुदेव और माँ गायत्री के साथ साझेदारी कर रहे हैं। हम दोनों अपनी अपनी एक महीने की पूरी सैलरी गुरुकार्य में लगाते हैं। अंशदान और समयदान नियमित करते हैं। भगवान के साथ साझेदारी( partner ship) का आनंद ले रहे हैं।

बोलो सत्य नारायण भगवान की जय!

श्वेता चक्रवर्ती
दिया, गुरुग्राम

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