Friday, 13 April 2018

भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा पुरस्कार समारोह में गुरुदेव के सूक्ष्म सरंक्षण में दी गयी मेरी स्पीच, फरीदाबाद 12 अप्रैल 2018

*भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा पुरस्कार समारोह में गुरुदेव के सूक्ष्म सरंक्षण में दी गयी मेरी स्पीच, फरीदाबाद 12 अप्रैल 2018*

आत्मीय और प्यारे राष्ट्रनिर्माता बच्चो और आत्मीय सम्माननीय युग निर्माता शिक्षक एवं आत्मीय गायत्री परिजन भाइयो एवं बहनों,

आज हम सभी के सौभाग्य का क्षण है कि आज हम भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा पुरस्कार वितरण के एकत्रित हुए हैं।

यह सौभाग्य का क्षण क्यों है, यह जानते हैं:- यह परीक्षा की आखिर आवश्यकता क्यों है?

👉🏽 तो प्यारे बच्चो एक कहानी के माध्यम से अपनी बात शुरू करती हूँ:-

युगऋषि कहते हैं एक विचार ऐसा होता है जो किसी की दुनिया बदल देता है

एक कुम्हार मिट्टी लाया,
पहले चिलम बनाने का विचार आया
लेकिन बाद मे अच्छे मन ने कहा मटका बनाओ,

मटका बन गया। तब मिट्टी ने कहा, तेरे एक विचार ने मेरा रूप बदल दिया। यदि कुविचार से ग्रसित हो तू मुझे चिलम बनाता तो मैं ख़ुद भी सुलगती और दूसरों को भी सुलगाती, लेकिन सद्विचार से प्रेरित होकर तुमने मुझे मटका बनाया। अब मैं खुद भी शीतल रहूंगी और दूसरों की प्यास बुझा के उन्हें भी शीतल रखूंगी।

यही कुम्हार रूपी माता-पिता-शिक्षक और समाज करता  है, गीली मिट्टी वाले मन के बच्चों को हम चिलम बनाने जा रहे है या मटका यह तो हमे तय करना होगा।

डॉक्टर की गलती तो कब्र में दफन हो जाएगी। राजगीर मिस्त्री की गलती भी भवन तक सीमित रहेगी। लेकिन शिक्षा समाज की गलती से चिलम बना युवा पूरे समाज को सुलगायेगा और अच्छे संस्कारों युक्त मटका बना तो स्वयं भी शीतल शांत रहेगा और पूरे समाज को शीतलता समृद्धि देगा।

क्योंकि शिक्षक है युगनिर्माता और विद्यार्थी है राष्ट्र निर्माता। तो बताइये बच्चों आपको क्या बनना है शीतल मटके जैसा व्यक्तित्व या सुलगती व्यसन में झुलसती चिलम जैसा व्यक्तित्व।

हमारी भारतीय संस्कृति का सदैव गौरवशाली इतिहास रहा है, जब समस्त विश्व अज्ञानता के अंधकार में था उस वक्त ज्ञान का सूरज सर्वप्रथम वेदों के रूप में भारत मे उदीयमान हुआ। यही से ज्ञान सर्वत्र पहुंचा।

अमेरिकन जनरल रिपोर्ट में यह स्वीकार किया है कि संस्कृत भारत की सर्वाधिक प्राचीन भाषा है। इस भाषा से ही विश्व की अधिकांश भाषा का उद्भव हुआ है।

कणाद ऋषि और अगस्त्य ऋषि के प्राचीन गर्न्थो में अणु बम के सूत्र मिल जाएंगे। चरक और सुश्रुत  शल्य चिकित्सा के जनक भारतीय है। दशमलव और ज़ीरो के बिना क्या गणित सम्भव होता।

इसी तरह अनेकों अजस्त्र अनुदान भारत ने विश्व को दिए। भारत सन् 1833 की रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्वव्यापार में 45% मार्केट पर राज करता था। स्वर्ण मुद्राएं चावल की बोरियो की तरह हर घर मे रखी होती थी इसलिए हमारा देश स्वर्ण की चिड़िया कहलाता था।

फिर भारत का पतन कैसे हुआ, शक्तिशाली देश गुलाम कैसे बना यह जानना चाहते हो?

मध्यकाल में अंग्रेजो ने भारत को गुलाम बनाने हेतु एक कुचक्र चलाया, जिसका सूत्रधार लार्ड मैकाले था, जिसने अंग्रेजी संसद 1835 में बताया कि भारतीय गौरवशाली संस्कृति से जुड़े लोगों को गुलाम नहीं बनाया जा सकता। इनकी गुरुकुल शिक्षा पद्धति सुसंस्कारी चरित्रवान राष्ट्रभक्त गढ़ते है। तो ऐसे लोगो को हम कभी गुलाम नहीं बना सकेंगे। अतः इन्हें इनकी गौरवशाली संस्कृति और शिक्षा प्रणाली से दूर करके, जो पाश्चात्य का वो सबसे श्रेष्ठ है इसकी प्रोग्रामिंग इनके दिमाग मे करनी होगी।इन्हें बिना रीढ़ की हड्डी की शिक्षा पद्धति देकर इनका मनोबल तोड़ना होगा।जिससे इनके मन से देश का सम्मान हट जाए, गौरवशाली संस्कृति भूल जाये।

उनका कुचक्र काम कर गया और देश गुलाम हुआ,फिर युवा जागा और देश आजाद हुआ,लेकिन दुर्भाग्यवश शिक्षा सिस्टम उन्होंने ने बनाया जो विदेश में पले बढ़े और विदेशी शिक्षा सम्पन्न थे।और भारतीय संस्कृति से अनभिज्ञ थे। इसलिए आज़ादी के 70 वर्षों बाद भी विश्व व्यापार में अभी भी पिछड़े है 0.5% तक ही पहुंचे हसि। बेरोजगारी का दंश सह रहे है। क्लर्क और सर्विस करने वाले युवा बना रहे है, व्यापार, मैनुफैक्चरिंग इंडस्ट्री, कृषि में पीछे होते जा रहे हैं।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव यह जानते थे कि भारत का गौरव लौटाना है तो भारतीय संस्कृति के गौरवशाली इतिहास से बच्चों को परिचित करवाना होगा।विदेशो में सब अपने अपने देश के वीरो को पढ़ते है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि हम अंग्रेजो और विदेशी हीरो को पढ़ते है,तो देश के लिए सम्मान कैसे जगे?

संस्कृति और संस्कार के नींव पर ही देश का सुनहरा भविष्य खड़ा हो सकता है।शरीर के साथ साथ दिल दिमाग से भारतीय गढ़ना है, जो देश के सुनहरे भविष्य के निर्माता बने। इसी उद्देश्य हेतु भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा को शुरू किया गया है, जिससे इसके माध्यम से बच्चे भारतीय गौरवशाली इतिहास और संस्कृति से सबक ले पुनः देश को सुखी समृद्ध बना सकें।

आप सभी युगनिर्माता अध्यापकों का हृदय से आभार जो देशनिर्माण के पुण्य कार्य मे जूटे है। आइये हम सब इस पुण्य अवसर पर संकल्प लें, और युगनिर्माण में सहयोगी बने।

तो हम कुछ नारे संकल्प रूप में बोलेंगे कृपया सभी बच्चे और बड़े हमारे साथ दोहराए।

भारत माता की - जय
भारतीय संस्कृति की- जय
जन्म जन्म जहां पर- हमने पाया।
वस्त्र जहां के -हमने पहना
अन्न जहां का - हमने खाया
ज्ञान जहां से - हमने पाया
वह है प्यारा - देश हमारा
देश की रक्षा कौन करेगा
हम करेंगे हम करेंगे
देश की खातिर कौन मरेगा
हम मरेंगे हम मरेंगे
शिक्षक है - भारत का भाग्य विधाता
विद्यार्थी है - राष्ट्र निर्माता

युवा बने सज्जन शालीन- दे समाज को दिशा नवीन

आइये हम सब मिलकर राष्ट्र को जीवंत जागृत समृद्ध बनाएं।

देश को विश्व गुरु बनाना है तो प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रपुरोहित बनना पड़ेगा।

धन्यवाद 🙏🏻

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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