Thursday, 12 April 2018

प्रश्न - बेमन की शादी के डिप्रेशन से मुक्ति का मार्ग सुझाएं

प्रश्न - *दी एक पर्सनल प्रश्न है, मेरी शादी मेरी इच्छा के विरुद्ध माता पिता ने कर दिया। दो वर्ष और तीन महीने विवाह को गए। मेरी पत्नी होममेकर है। एक बेटी है छः महीने की। जबरन बेमन का रिश्ता निभा रहा हूँ, ऑफिस के बाद शाम को घर आने का भी मन नहीं करता। मैं विवाह से पूर्व एक लड़की से प्रेम करता था, लेकिन माता जी ने ज़हर खा कर मरने की धमकी दी, तो बेमन मैंने शादी कर ली। सोचा था समय के साथ सब ठीक हो जाएगा लेकिन डिप्रेशन दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। क्या करूँ?*

उत्तर - तुम्हारा उत्तर देने से पहले एक कहानी सुनाती हूँ सुनो-
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दो चींटी थी, एक नमक के ढेर में रहती थी और एक चीनी के ढेर में। देखने मे दोनो सफेद थे, नमक वाली चींटी ने चीनी वाली चींटी को डिनर पर बुलाया। जैसे ही चीनी वाली चींटी ने डिनर का स्वाद चखा तो थूक दिया, और बोली बहन यह नमक है क्योंकि इसका स्वाद मीठा नहीं। और उसको अपने घर डिनर का न्यौता दिया। नमक वाली चींटी आयी और जैसे ही उसने डिनर टेस्ट किया उसने भी थूका और बोली यह नमकीन है। चीनी वाली ने काफी समझाया पर उसने न माना। एक मुखिया चींटी गुजर रही थी। झगड़ा सुना और डिनर टेस्ट किया, चीनी थी मिठास थी। फिर उसने नमक वाली चींटी को मुंह खोलने को कहा, तो पाया वो एक नमक की डली मुंह मे रखी थी। उसको निकलवाया। जल से मुंह साफ करवाया, फिर डिनर टेस्ट करने कक कहा, उसे मीठा लगा।

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हम यदि पूर्वाग्रह और मन के बैर को त्याग सकेंगे तो ही जीवन की मिठास का आनन्द ले सकेंगे। क्यूंकि तुम्हारी पसंद को माता-पिता ने ठुकराया था, इसलिए तुम्हारा मन माता-पिता की पसन्द वर्तमान पत्नी को ठुकरा रहा है। जैसे को तैसा जवाब देना चाह रहा है। लेकिन ज़रा सोचो इसमें तुम्हारी पत्नी का क्या दोष? तुम्हारे और माता-पिता के अनबन की सज़ा उसे क्यों मिले?

तुम किसी और को चाहते थे, उसकी याद हृदय में नमक की तरह रख के दूसरे को हृदय में प्रवेश दे न सकोगे। माता-पिता का गुस्सा पत्नी पर उतारना कहाँ की अक्लमंदी है। अब पत्नी सिर्फ़ पत्नी नहीं रह गयी है वो तुम्हारे अंश की माँ है। क्या जैसे तुम्हारी भावनाओ/खुशियों का कत्ल हुआ क्या तुम अपनी बेटी की खुशियों का कत्ल करना चाहोगे? उसे दुःख देना चाहोगे। उस अबोध की क्या ग़लती?

अब यदि समस्या यह है कि प्रेमिका की याद भुला नहीं पा रहे तो इस सम्बंध में एक और कहानी सुनो👉🏽

एक व्यक्ति बहुत डिप्रेशन में सन्त के पास पहुंचा और बोला पुरानी यादें मेरा पीछा नहीं छोड़ रही। सन्त ने कहा कल आना उत्तर दूंगा। दूसरे दिन व्यक्ति सन्त के आश्रम में पहुंचा तो देखा बड़ी भीड़ है और एक बच्चा बेतहाशा रो रहा है। एक मटके में उसका हाथ फँसा है जिस मटके की गर्दन छोटी है। व्यक्ति ने पूंछा क्या हुआ, लोगों ने बताया इस मटके में भुने चने रखे थे बच्चे ने हाथ डाला तो चने को मुट्ठी में भर लिया अब मुट्ठी नहीं निकल रही। तो वो व्यक्ति बच्चे के पास पहुंचा और उसे प्यार से बोला मुट्ठी खोलो तो हाथ बाहर आ जायेगा। लड़का बोला चने ने मेरा हाथ पकड़ लिया, वो मुझे नहीं छोड़ रहा। उस व्यक्ति ने कहा कोई निर्जीव वस्तु तुम्हे कैसे पकड़ सकती है, पकड़ा तुमने है तो छोड़ना भी तुम्हे ही पड़ेगा। बालक मुस्कुराया बोला भैया यादें भी तो निर्जीव है उनका कोई अस्तित्व नहीं, उसे पकड़ा आपने है, तो मेरी तरह छोड़ना भी आपको ही पड़ेगा। चेतन तो आप हो फिर वो यादें एक चेतन व्यक्ति को कैसे पकड़ सकती है। जिस तरह मैंने यह मुट्ठी खोल दी, आप भी मन की ग्रंथि खोल के यादों को मुक्त कर दो। सन्त और आसपास के लोग मुस्कुरा रहे थे, यह सब ड्रामा उस व्यक्ति के डिप्रेशन के इलाज़ हेतु था। वो भी मुस्कुरा उठा।

सन्त ने कहा, बेटा सुख-दुःख की अनुभूति मन करता है शरीर नहीं। दो गहरी नींद में सोते हुए व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकते और न ही सुख-दुःख का अनुभव। शरीर को दर्द हो सकता है लेकिन दुःख नहीं। आत्मा किसी से न प्रेम करती है न घृणा वो तटस्थ है। मन जहां रस लेता है, कभी भोजन में तो कभी दृश्य में तो कभी मधुर ध्वनि में तो कभी किसी व्यक्ति/स्त्री विशेष में, तो उसे हम प्रेम समझते है। मान लो किसी का एक्सीडेंट हो जाय और याददाश्त चली जाय तो प्रेम भी न बचेगा। शरीर और आत्मा मौजूद है लेकिन याददाश्त और अनुभव मिट गया।

भाई, तुम चेतन हो, तुम्हारा जन्म भी निश्चित है और मृत्यु भी। पूर्वाग्रह को तुमने पकड़ा है तो छोड़ोगे भी तुम्हीं। मन को खाली करो, गायत्री की ब्रह्म सन्ध्या साधना के बाद हाथ मे जल लो, और माता-पिता को उनकी ग़लती के लिए क्षमा कर दो। उस प्रेमिका की यादों को मां गायत्री के चरणों मे चढ़ा के सदा सर्वदा के लिए त्याग दो।

अपनी पत्नी और बेटी को हृदय से मां गायत्री का आशीर्वाद समझ के स्वीकार लो, और आज अभी इसी वक्त से नई जिंदगी स्वीकार लो। मनःस्थिति बदल के परिस्थिति बदल लो। डिप्रेशन की जगह जीवन के आनन्द को जगह दो। स्वर्ग-नरक में से क्या चुनना है यह निर्णय तुम्हारा है। तुम्हारी एक गलती से तीन तीन जिंदगी(तुम, तुम्हारी पत्नी और तुम्हारी बेटी की) खराब होगी। और एक सही निर्णय से सबका भला हो जाएगा।

अखण्डज्योति पत्रिका रोज स्वाध्याय करो, पुस्तक 📖 गृहस्थ एक तपोवन, मनःस्थिति बदलो तो परिस्थिति बदले, दृष्टिकोण ठीक रखें, मित्र भाव बढ़ाने की कला इत्यादि पुस्तको से मार्गदर्शन ले जीवन को आनन्दमय बनाओ। अपनी बेटी के लिए विश्व का सर्वश्रेष्ठ पिता बनकर दिखाओ।

आपके आनन्दमय जीवन के लिये महाकाल परमपूज्य गुरुदेव से प्रार्थना करते है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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