प्रश्न - *एक मां को अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य हेतु कौन कौन सी साधना करनी चाहिए?*
उत्तर - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*
*गायत्री मन्त्र सर्वोपरि मन्त्र है, इससे बड़ा और कोई मन्त्र नहीं है*। गायत्री मंत्र से अभीष्ट प्राप्ति और प्रयोजन सिद्धि सम्भव है। यह एक प्रचण्ड शक्ति है जिसे जिधर लगा दिया जाय उधर ही चमत्कारिक सफलता मिलेगी।
सकाम प्रयोगों और अभीष्ठ सिद्धि के लिए अनुष्ठान करना आवश्यक होता है। सवालक्ष का पूर्ण अनुष्ठान और चौबीस हज़ार का आंशिक अनुष्ठान अपनी अपनी मर्यादानुसार फल देता है। *जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा* वाली कहावत इस क्षेत्र में भी चरितार्थ होती है। साधना और तपश्चर्या जो आत्मबल संग्रह किया जाता है उसे जिस काम मे भी खर्च करोगे प्रतिफल अवश्य मिलेगा। बन्दूक उतनी ही अधिक उपयोगी सिद्ध होगी जितना बढ़िया और जितने अधिक कारतूस होंगे। गायत्री की प्रयोग विधि एक प्रकार की आध्यात्मिक बन्दूक है, जिससे सुरक्षा भी मिलती है और प्रारब्ध भी नष्ट किये जा सकते हैं।
अपनी सन्तान का हाथ गायत्री माता के हाथ मे थमा दें, गर्भ से ही नियमित गायत्री मंत्र जप और लेखन से जोड़ दें। बच्चे को साधक बनाएं, कम से कम स्कूल/कॉलेज/घर से बाहर जाने से पूर्व 24 गायत्री मंत्र जपे। जब भी भोजन या कुछ भी ग्रहण करें कम से कम एक बार गायत्री मंत्र जरूर बोले। ऐसी आदत डलवा दें।
माताएं कम से कम 5 माला गायत्री जप घी का दीपक जला कर कम्बल या ऊनी आसन में बैठ कर जपें। और सूर्य भगवान को जल चढ़ाकर थोड़ा सा जल उसी लोटे में बचा लें:-
👉🏽गर्भवती माताएं सूर्य को चढ़े बचे जल को थोड़ा सा पी लें।कुछ बूंदे जल की हाथ मे लेकर पेट में लगा लें और कुछ बूंदे जल की अपने ऊपर छिड़क लें।
👉🏽छोटा बच्चा हो तो गोद मे लेकर माता हंसवाहिनी, गुलाबी कमल पुष्पो से लदी हुई, शंख चक्र हाथ में लिए गायत्री का ध्यान करें और मन ही मन जप करें, और सूर्य को चढ़े बचे हुए जल को बच्चे के मष्तिष्क में लगा कर थोड़ा सा जल बच्चे को पिला दें और स्वयं भी पी लें, इससे बालक के शरीर तथा मष्तिष्क में अति सकारात्मक उत्तम प्रभाव पड़ेगा।
👉🏽किशोर या युवा बच्चा हो तो सूर्य को चढ़े बचे हुए जल को बच्चे के मष्तिष्क में लगा कर थोड़ा सा जल बच्चे को पिला दें साथ मे उसके ऊपर मार्जन की तरह जल छिड़क भी दें और स्वयं भी पी लें, इससे बालक के शरीर तथा मष्तिष्क में अति सकारात्मक उत्तम प्रभाव पड़ेगा।
साथ ही सूर्य को चढ़े बचे हुए जल की कुछ बूंदे एक पीने के बोतल में मिला लें, और आटा गूंधते समय उसी जल का उपयोग कर रोटी बनाएं। बलिवैश्व यज्ञ करें और सन्तानो के उज्ज्वल भविष्य के लिए गुरुवार को व्रत रखें। शुक्रवार को चावल की खीर से बलिवैश्व यज्ञ करें।
👉🏽तर्जनी उंगली का प्रयोग मन्त्र जप में न करें और न ही बलिवैश्व यज्ञ में आहुति देते समय तर्जनी से हविष्यान्न का प्रयोग करें।
👉🏽गायत्री मंत्र जप, लेखन और बलिवैश्व यज्ञ की विधि विधान आप नज़दीकी शक्तिपीठ या चेतना केंद्र या गायत्री परिजन से सीख सकते है।
👉🏽मन्त्र जप कम्बल या ऊनी वस्त्र या कुश के आसन पर करें, देशी घी या तिल के तेल से दीपक जला कर उसके समक्ष करें। पूजन चौकी में गायत्री माता की देवस्थापना वाली फोटो ले लें, और अक्षत पुष्प रोली से पूजन करें। पुष्प न हो तो पीले अक्षत से ही पूजन कर लें। जप के समय एक लोटा जल कलश रूप में भरकर रख लें। हो सके तो एक मिश्री का दाना जल में डाल दें, मिश्री न हो तो केवल साधारण जल ही रख लें। नेत्र बन्द कर जप करें, होठ हिलें लेकिन आवाज़ इतनी धीमी हो कि कोई बगल में बैठा व्यक्ति भी न सुन पाये। जप के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं और बचे जल को उपरोक्त विधि से प्रयोग में लें।
विस्तृत जानकारी हेतु गायत्री महाविज्ञान पेज नम्बर 95 से 105 तक पढ़ें।
माताओं और उनकी संतान के उज्ज्वल भविष्य हेतु प्रार्थना करते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*
*गायत्री मन्त्र सर्वोपरि मन्त्र है, इससे बड़ा और कोई मन्त्र नहीं है*। गायत्री मंत्र से अभीष्ट प्राप्ति और प्रयोजन सिद्धि सम्भव है। यह एक प्रचण्ड शक्ति है जिसे जिधर लगा दिया जाय उधर ही चमत्कारिक सफलता मिलेगी।
सकाम प्रयोगों और अभीष्ठ सिद्धि के लिए अनुष्ठान करना आवश्यक होता है। सवालक्ष का पूर्ण अनुष्ठान और चौबीस हज़ार का आंशिक अनुष्ठान अपनी अपनी मर्यादानुसार फल देता है। *जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा* वाली कहावत इस क्षेत्र में भी चरितार्थ होती है। साधना और तपश्चर्या जो आत्मबल संग्रह किया जाता है उसे जिस काम मे भी खर्च करोगे प्रतिफल अवश्य मिलेगा। बन्दूक उतनी ही अधिक उपयोगी सिद्ध होगी जितना बढ़िया और जितने अधिक कारतूस होंगे। गायत्री की प्रयोग विधि एक प्रकार की आध्यात्मिक बन्दूक है, जिससे सुरक्षा भी मिलती है और प्रारब्ध भी नष्ट किये जा सकते हैं।
अपनी सन्तान का हाथ गायत्री माता के हाथ मे थमा दें, गर्भ से ही नियमित गायत्री मंत्र जप और लेखन से जोड़ दें। बच्चे को साधक बनाएं, कम से कम स्कूल/कॉलेज/घर से बाहर जाने से पूर्व 24 गायत्री मंत्र जपे। जब भी भोजन या कुछ भी ग्रहण करें कम से कम एक बार गायत्री मंत्र जरूर बोले। ऐसी आदत डलवा दें।
माताएं कम से कम 5 माला गायत्री जप घी का दीपक जला कर कम्बल या ऊनी आसन में बैठ कर जपें। और सूर्य भगवान को जल चढ़ाकर थोड़ा सा जल उसी लोटे में बचा लें:-
👉🏽गर्भवती माताएं सूर्य को चढ़े बचे जल को थोड़ा सा पी लें।कुछ बूंदे जल की हाथ मे लेकर पेट में लगा लें और कुछ बूंदे जल की अपने ऊपर छिड़क लें।
👉🏽छोटा बच्चा हो तो गोद मे लेकर माता हंसवाहिनी, गुलाबी कमल पुष्पो से लदी हुई, शंख चक्र हाथ में लिए गायत्री का ध्यान करें और मन ही मन जप करें, और सूर्य को चढ़े बचे हुए जल को बच्चे के मष्तिष्क में लगा कर थोड़ा सा जल बच्चे को पिला दें और स्वयं भी पी लें, इससे बालक के शरीर तथा मष्तिष्क में अति सकारात्मक उत्तम प्रभाव पड़ेगा।
👉🏽किशोर या युवा बच्चा हो तो सूर्य को चढ़े बचे हुए जल को बच्चे के मष्तिष्क में लगा कर थोड़ा सा जल बच्चे को पिला दें साथ मे उसके ऊपर मार्जन की तरह जल छिड़क भी दें और स्वयं भी पी लें, इससे बालक के शरीर तथा मष्तिष्क में अति सकारात्मक उत्तम प्रभाव पड़ेगा।
साथ ही सूर्य को चढ़े बचे हुए जल की कुछ बूंदे एक पीने के बोतल में मिला लें, और आटा गूंधते समय उसी जल का उपयोग कर रोटी बनाएं। बलिवैश्व यज्ञ करें और सन्तानो के उज्ज्वल भविष्य के लिए गुरुवार को व्रत रखें। शुक्रवार को चावल की खीर से बलिवैश्व यज्ञ करें।
👉🏽तर्जनी उंगली का प्रयोग मन्त्र जप में न करें और न ही बलिवैश्व यज्ञ में आहुति देते समय तर्जनी से हविष्यान्न का प्रयोग करें।
👉🏽गायत्री मंत्र जप, लेखन और बलिवैश्व यज्ञ की विधि विधान आप नज़दीकी शक्तिपीठ या चेतना केंद्र या गायत्री परिजन से सीख सकते है।
👉🏽मन्त्र जप कम्बल या ऊनी वस्त्र या कुश के आसन पर करें, देशी घी या तिल के तेल से दीपक जला कर उसके समक्ष करें। पूजन चौकी में गायत्री माता की देवस्थापना वाली फोटो ले लें, और अक्षत पुष्प रोली से पूजन करें। पुष्प न हो तो पीले अक्षत से ही पूजन कर लें। जप के समय एक लोटा जल कलश रूप में भरकर रख लें। हो सके तो एक मिश्री का दाना जल में डाल दें, मिश्री न हो तो केवल साधारण जल ही रख लें। नेत्र बन्द कर जप करें, होठ हिलें लेकिन आवाज़ इतनी धीमी हो कि कोई बगल में बैठा व्यक्ति भी न सुन पाये। जप के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं और बचे जल को उपरोक्त विधि से प्रयोग में लें।
विस्तृत जानकारी हेतु गायत्री महाविज्ञान पेज नम्बर 95 से 105 तक पढ़ें।
माताओं और उनकी संतान के उज्ज्वल भविष्य हेतु प्रार्थना करते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment