*पंचोपचार पूजन*
मजनूं का प्रसंग - लैला की दासी ने असल मजनूं की पहचान के लिए उन मजनुओं की भीड़ के पास जाकर लैला के स्वस्थ होने के लिए एक कटोरे खून की आवश्यकता बताई,अधिकांश मजनूं यहां-वहां हो गये उनमें से केवल एक अपना खून देने को तैयार हुआ।इस प्रसंग से गुरूजी का तात्पर्य उनके उन करोड़ों शिष्यों से है जो मजनूं तो बनना चाहते किंतु आवश्यकता पड़ने पर अपना खूनरूपी योगदान नहीं देना चाहते जो गुरूकार्य में सहायक हो गुरूजी भी ऐसे ही शिष्य की तलाश कर रहे हैं जो सच्चे अर्थों मे उनके शिष्य हों।
पंचोपचार पूजा को गुरूदेव ने बहुत ही गहन रूप से हमें समझाने का प्रयास किया है, वे कहते हैं यदि हमने ये पंचोपचार पूजा कर ली तो देवता निश्चित रूप से प्रशन्न होंगे भक्ति केवल दान, अनुदान और सेवाभाव चाहती है। पंचोपचार के इन पांच चरणों को हम निम्न प्रकार समझेंगे-
(१)जल अर्पण-जल को गुरूदेव ने हमारे पसीने के तुल्य बताया है,अर्थात श्रम,मेहनत,समय जो हमें लोककल्याण के लिए समर्पित करना है।प्रत्येक व्यक्ति के पास एक दिन में २४ घंटे होते हैं किसी को भी ईश्वर ने एक क्षण कम ज्यादा नहीं दिया व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इस समय का उपयोग कैसे करता है।
(२)अक्षत्-हमारे जीवन को गुरूदेव ने सांझेदारी की दुकान कहा है जिसमें हमें यदि ईश्वर से कुछ पाना है तो उन्हें कुछ देना भी होगा।अक्षत् को उन्होंने अंशदान के तुल्य बताया है।ईश्वरचंद विद्यासागर के बारे में बताते हुए गुरूदेव कहते हैं कि उन्हें ५०० रू. महीने मिलता था जिसमें से मात्र ५० रू. अपने लिए रखकर शेष राशि गरीब छात्रों की पढ़ाई के लिए दिया करते थे।
(३) चंदन- चंदन को अर्पण करना हमें यह सिखाता है कि सदैव सुगंध बिखेरते रहो और जिस तरह चंदन पर विषैले सर्पों का प्रभाव नहीं पड़ता ठीक उसी प्रकार बुराईयों के बीच रहकर भी हमें निर्मल रहना है।
(४) पुष्प- जिस प्रकार पुष्प खिलकर खुशियाँ बिखेरता है वैसे ही हमें भी अपने व्यक्तित्व से जनमानस को प्रशन्नता देनी होगी लोगों के कष्टों को दूर कर उन्हें।पुष्प की तरह खिलाना होगा।
(५) दीपक - दीपक प्रज्वलित करने का अर्थ है तिमिर को नष्ट कर प्रकाश की ओर बढ़ना। ग्यान और प्रेम से भरा हमारा ह्रदय और पात्रता से भरा हमारा कलेवर होना चाहिए।बिहार में एक हजारी नाम का किसान रहता था जिसने आम का एक बगीचा लगाया जब देखा कि उसके लगाए हुए वृक्षों से अनेक पशु-पक्षी आश्रय पाते हैं तब उसने कई जगह आम के बगीचे लगाना शुरू कर दिया उन बगीचों को हजारी बाग के नाम से जाना जाता है।ऐसे ही मथुरा में एक स्त्री पिसनहारी थी उसने भी अपनी जमापूँजी लोक कल्साण हेतु दान कर दी।
गुरूदेव कहते हैं कि यह जरूरी नहीं की आप केवल धन का दान करें आपके पास जो श्रेष्ठ और पर्याप्त है आप उसका दान कीजिए।
देवताओं की कृपादृष्टि पाने के लिए यही पंचोपचार पूजा करनी होगी। जय गुरूदेव🙏
मजनूं का प्रसंग - लैला की दासी ने असल मजनूं की पहचान के लिए उन मजनुओं की भीड़ के पास जाकर लैला के स्वस्थ होने के लिए एक कटोरे खून की आवश्यकता बताई,अधिकांश मजनूं यहां-वहां हो गये उनमें से केवल एक अपना खून देने को तैयार हुआ।इस प्रसंग से गुरूजी का तात्पर्य उनके उन करोड़ों शिष्यों से है जो मजनूं तो बनना चाहते किंतु आवश्यकता पड़ने पर अपना खूनरूपी योगदान नहीं देना चाहते जो गुरूकार्य में सहायक हो गुरूजी भी ऐसे ही शिष्य की तलाश कर रहे हैं जो सच्चे अर्थों मे उनके शिष्य हों।
पंचोपचार पूजा को गुरूदेव ने बहुत ही गहन रूप से हमें समझाने का प्रयास किया है, वे कहते हैं यदि हमने ये पंचोपचार पूजा कर ली तो देवता निश्चित रूप से प्रशन्न होंगे भक्ति केवल दान, अनुदान और सेवाभाव चाहती है। पंचोपचार के इन पांच चरणों को हम निम्न प्रकार समझेंगे-
(१)जल अर्पण-जल को गुरूदेव ने हमारे पसीने के तुल्य बताया है,अर्थात श्रम,मेहनत,समय जो हमें लोककल्याण के लिए समर्पित करना है।प्रत्येक व्यक्ति के पास एक दिन में २४ घंटे होते हैं किसी को भी ईश्वर ने एक क्षण कम ज्यादा नहीं दिया व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इस समय का उपयोग कैसे करता है।
(२)अक्षत्-हमारे जीवन को गुरूदेव ने सांझेदारी की दुकान कहा है जिसमें हमें यदि ईश्वर से कुछ पाना है तो उन्हें कुछ देना भी होगा।अक्षत् को उन्होंने अंशदान के तुल्य बताया है।ईश्वरचंद विद्यासागर के बारे में बताते हुए गुरूदेव कहते हैं कि उन्हें ५०० रू. महीने मिलता था जिसमें से मात्र ५० रू. अपने लिए रखकर शेष राशि गरीब छात्रों की पढ़ाई के लिए दिया करते थे।
(३) चंदन- चंदन को अर्पण करना हमें यह सिखाता है कि सदैव सुगंध बिखेरते रहो और जिस तरह चंदन पर विषैले सर्पों का प्रभाव नहीं पड़ता ठीक उसी प्रकार बुराईयों के बीच रहकर भी हमें निर्मल रहना है।
(४) पुष्प- जिस प्रकार पुष्प खिलकर खुशियाँ बिखेरता है वैसे ही हमें भी अपने व्यक्तित्व से जनमानस को प्रशन्नता देनी होगी लोगों के कष्टों को दूर कर उन्हें।पुष्प की तरह खिलाना होगा।
(५) दीपक - दीपक प्रज्वलित करने का अर्थ है तिमिर को नष्ट कर प्रकाश की ओर बढ़ना। ग्यान और प्रेम से भरा हमारा ह्रदय और पात्रता से भरा हमारा कलेवर होना चाहिए।बिहार में एक हजारी नाम का किसान रहता था जिसने आम का एक बगीचा लगाया जब देखा कि उसके लगाए हुए वृक्षों से अनेक पशु-पक्षी आश्रय पाते हैं तब उसने कई जगह आम के बगीचे लगाना शुरू कर दिया उन बगीचों को हजारी बाग के नाम से जाना जाता है।ऐसे ही मथुरा में एक स्त्री पिसनहारी थी उसने भी अपनी जमापूँजी लोक कल्साण हेतु दान कर दी।
गुरूदेव कहते हैं कि यह जरूरी नहीं की आप केवल धन का दान करें आपके पास जो श्रेष्ठ और पर्याप्त है आप उसका दान कीजिए।
देवताओं की कृपादृष्टि पाने के लिए यही पंचोपचार पूजा करनी होगी। जय गुरूदेव🙏
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