Monday 23 April 2018

प्रश्न - ओफ़ीस पार्टी में अपना दिमाग़ सुस्थिर कैसे रखूँ?

प्रश्न - *दी, मैं आई टी सेक्टर में जॉब करता हूँ। मल्टिनेशनल कम्पनी में इसी वर्ष प्रोजेक्ट मैनेजर प्रमोट हुआ हूँ। अब मैनेजर की ग्रुप पार्टी हो या क्लाइंट विजिट पार्टी मुझे जाना पड़ता है। वहां शराब मुख्यतः पार्टी का आकर्षण होती है। मैं शराब नहीं पीता। लेकिन स्वयं की मानसिकता ऐसे समय कैसे सुस्थिर रखूँ? सभी तरह तरह के ज्ञान देकर मुझे शराब पीने के लिए उकसाते रहते हैं...मार्गदर्शन करें बिना इनसे उलझे स्वयं को कैसे सन्मार्ग पर रखूँ..*

उत्तर - पार्टी में तो जाना ही पड़ेगा, और पढ़े लिखों की नासमझी भी झेलनी पड़ेगी। ज्ञान हम किसी को तभी दे सकते हैं जब वो होश में हो और reciever mode अर्थात् सुनने को इच्छुक हो। या वो आपका जूनियर हो। इसलिए ऐसी जगहों में इन्हें ज्ञान देने में समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए।

स्वयं की मानसिकता सुस्थिर रखने के लिए घर से निकलते वक़्त थोड़ा सा कम से कम 15 मिनट का अखण्डज्योति या निम्नलिखित पुस्तकों का स्वाध्याय करें ये ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं।

1- मैं क्या हूँ?
2- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- सफ़ल जीवन की दिशा धारा
5- ऋषि युग्म की झलक झांकी

फ़िर गुरुदेव का आह्वाहन करें, शरीर मेरा आपका वाहन है और आपके निमित्त है। कृपया मेरे साथ पार्टी में चलिए, मुझसे अपना कार्य करवा लीजिये और मेरा ध्यान आपके चरणों में बना रहे ऐसी कृपा कीजिए।

अब शान से पार्टी में जाइये, न सिर्फ आपका दिमाग़ सुस्थिर रहेगा, बल्कि आप स्वयं को आत्मविश्वास से भरा हुआ निर्भय और स्मार्ट महसूस करेंगे। बड़ा सुकून और शांति पार्टी के शोरगुल में भी महसूस करेंगे।

युधिष्ठिर द्युत सभा में जाने से पूर्व यदि भगवान कृष्ण का आह्वाहन कर लेते तो कोई अनहोनी न घटती। द्रौपदी ने पहले ही कृष्ण का आह्वाहन किया होता तो चीर तक किसी का हाथ भी न पहुंचता। द्रौपदी ने पहले अपने रिश्तेदारों से मदद मांगी और अंत में श्रीकृष्ण का आह्वाहन किया। लेकिन जिस क्षण श्री कृष्ण का आह्वाहन हृदय की घहराई से किया उस क्षण से मदद शुरू हो गयी। अर्जुन ने श्रीकृष्ण का साथ और मार्गदर्शन युद्ध में माँगा तो साथ और मार्गदर्शन मिला। बस सच्चे मन से *करिष्ये वचनम् तव* का भाव पूर्ण समर्पण के साथ रखें।

परमात्मा सुषुप्त रूप में कण कण में व्याप्त है, प्रत्येक घटना का साक्षी हैं। लेकिन बिना आह्वाहन वो आपकी एक्टिविटी में हस्तक्षेप नहीं करता। इसलिए पूजन के वक़्त आह्वाहन और विसर्जन दोनों होता है।

कभी भी किसी भी वक़्त ऑफिस मीटिंग हो या घर में पति-पत्नी का कोई झगड़ा हो या बच्चों से कोई विवाद हो या आसपड़ोस से कोई समस्या हो। हृदय की गहराई से गुरुदेव/ईष्ट का आह्वाहन अपने किसी भी रिश्ते के बीच, कभी भी करें तो आप पाएंगे क़ि आपके विचार तत्क्षण बदल जायेंगे और विवेक जागृत होगा। विकट से विकट परिस्थिति सम्हलती चली जायेगी जब ईश्वर आपके साथ होगा।

ये tried & tested formula हैं, सभी गायत्री परिजन जो जॉब करते हैं इसे अपनाते हैं और इसके लाभ से स्वयं के दिमाग़ को सुस्थिर रख पाते हैं। मैं और मेरे पतिदेव दोनों ही पिछले 16 वर्षों से आई टी फ़ील्ड में ही कार्यरत हैं, हम पार्टी जाने से पूर्व स्वाध्याय और पार्टी में गुरुआवाहन करके बड़े आराम से शराबियों पढ़े-लिखे नासमझों को हैंडल करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन

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