Sunday, 8 April 2018

जिज्ञासा - *यदि ईश्वर होता , तो फिर सबतऱफ इतनी अराजकता नहीं फैली होती

जिज्ञासा - *यदि ईश्वर होता , तो फिर सबतऱफ इतनी अराजकता नहीं फैली होती । जब ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता नहीं हिल सकता, तब अराजकता कैसे फैल रही है?*

1- *त्वरित समाधान* - कृपया फ़िल्म *ओह माय गॉड* परेश रावल और अक्षय कुमार देखें जो अंतिम हॉस्पिटल का सीन है। समाधान मिलेगा।

2- *समाधान जिसे स्वयं पूर्वाग्रह के बिना, सद्बुद्धि और हृदय की गहराई से समझना होगा* - भगवान ने सृष्टि बनाई और उन्हीं की सृष्टि का हिस्सा मनुष्य है। जिसे बुद्धि सभी जीवों से अधिक दी। उसे अपने हिसाब से जीने हेतु और कर्म करने हेतु स्वतन्त्र किया। कर्म में स्वतन्त्र है लेकिन कर्मफल ईश्वर देगा। जैसे परीक्षा में कॉपी विद्यार्थी लिखता है लेकिन रिजल्ट अध्यापक ही देगा।

मनुष्य ने आदम जंगली पशुवत जीवन से सभ्य आधुनिक जीवन तक का सफ़ऱ अपनी बुद्धि के बल पर किया। लेकिन इस सफ़र में मनुष्य की बुद्धि में स्वार्थ का कीड़ा भी लगा और कुछने जाति-पाती, चोरी भ्रष्टाचार, अराजकता, देहव्यापार, व्यसन इत्यादि जैसे कुकर्म किये। प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया। आज न पीने को स्वस्थ पानी है, न खाने को बिना रासायनिक जहर मिला भोजन है, न ही स्वच्छ वायु श्वांस लेने को है।

तो ईश्वर यदि चाहे तो उसकी खूबसूरत सृष्टि/प्राकृतिक सौंदर्य को नष्ट करने के जुर्म में पूरी मानवजाति को नष्ट कर दे। महाभारत की लड़ाई एक पल में खत्म हो जाती यदि श्री कृष्ण स्वयं हथियार उठा लेते। लेकिन दुष्ट मनुष्य को श्रेष्ठ मनुष्य ही दण्ड देंगे। सबको अपना युद्ध स्वयं ही लड़ना होगा। अराजकता इसलिए नहीं फैलती कि समाज मे अराजक तत्व बढ़ रहे हैं। सदाचारियों का मौन अराजकता को फैलने में सहायता करता है।

आज एक ही व्यक्ति बेटी को प्रेम और बहू को सताता है। एक ही व्यक्ति अपनो का ख्याल रखता है लेकिन दुसरो को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ता। हममें से अधिकतर कोई कम तो कोई ज्यादा कुछ न कुछ जाने अनजाने में गलत कर रहा है। व्यसन और देहव्यापार की डिमांड ही न हो तो सप्पलाई का व्यापार तुरन्त बन्द हो जाएगा।

भगवान की करोड़ो गैलेक्सी है उसकी एक गैलेक्सी का एक ग्रह पृथ्वी है, उस पृथ्वी को समाप्त करने में एक पल लगेगा जैसे धूल साफ करना। लेकिन मनुष्य द्वारा की गई गलती मनुष्यो को ही ठीक करनी होगी, जो समस्या मनुष्य ने उतपन्न की उसका समाधान उसे ही ढूंढना होगा।

भगवान सिर्फ़ प्रतिभा क्षमता बुद्धि इत्यादि देता है धन या कोई स्थूल सामान नहीं देता। इसका सही गलत प्रयोग जब मनुष्य करता है तो अन्तःकरण में बैठा भगवान रोकता भी है, लेकिन जब उसकी पुकार अनसुना कई बार मनुष्य करता है तो वो मौन हो जाता है। जिस क्षण अन्तःकरण मौन होता है असुरत्व हावी हो जाता है।

मनुष्य के अंदर देवत्व और असुरत्व दोनो की संभावना को भगवान ने देकर भेजा है। चयन के लिए मनुष्य स्वतन्त्र है, जिस पर मेहनत करेगा वैसा बन जायेगा। भगवान कर्म में हस्तक्षेप नहीं करेगा, लेकिन जो भगवान का आह्वाहन करेगा वो उसकी मदद जरूर करेगा। भगवान उसी की मदद करता है जो अपनी मदद आप करता है। आंखे बंद करने से सूर्य का अस्तित्व खत्म नहीं होता। उसी तरह किसी के भगवान के अस्तित्व को न मानने पर भगवान का अस्तित्व खत्म नहीं होता।

वैसे भी इतने लोगो को मरते देखा होगा जिनमें आपके पूर्वज भी होंगे, उनका शरीर तो था आत्मा चली गयी तो वो मर गए। लेकिन क्या किसी के अंदर की आत्मा को तुम कभी देख सके? बल्ब देखा लेकिन उसके अंदर की बिजली देख सके? क्या खुद की आत्मा को देखा जो है तो शरीर जिंदा है जो गया तो तत्क्षण शरीर मुर्दा कहलायेगा। दर्पण भी तो शरीर ही दिखाता है। चाय में चीनी और नमकीन पेय नमक है यदि दोनों में नमक और चीनी न भी दिखे, लेकिन हैं तो सही। कण कण में ईश्वर तत्व घुला हुआ है तुम्हारी श्वांस में भी वो नित्य प्रवेश करता है। उसका सच्चे मन से आह्वाहन करो, समर्पण करो, श्रद्धा विश्वास जागृत करो और साधना करो तो ईश्वर मिलेगा और अनुभूत भी होगा। कुतर्क से आज तक न कुछ हासिल हुआ है और न भविष्य में होगा। जिसका ज्ञान नहीं उसको न मानने से उसका अस्तित्व मिटता नहीं।

ईश्वर को श्रद्धा-विश्वास की आंखों से देखा जा सकता है और उसे बुद्धि रथ पर बिठा कर जीवन का महाभारत उसके मार्गदर्शन में जीता जा सकता है। अर्जुन को भी अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ा, और हमें भी अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ेगा। जरूर पढ़ें पुस्तक :-

📖महाकाल की युगप्रत्यावर्तन प्रक्रिया
📖ईश्वर कौन है कहाँ है और कैसा है?
📖आध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
📖मैं क्या हूँ?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

समुद्र के किनारे सीप मिल सकते है लेकिन मोती के लिए गहरे पानी में उतरना होगा, गोताखोर बनना होगा। अध्यात्म के समुद्र के किनारे एक दो ज्ञान की बात मिल सकती है लेकिन उसे जानने के लिए अनुभूत करने के लिए स्वयं को ही साधना-स्वाध्याय तो करना पड़ेगा, अध्यात्म की गहराई में स्वयं ही उतरना होगा।

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