Saturday, 7 April 2018

आत्महत्या का विचार छोड़ा- पुस्तक निराशा को पास न फटकने दें

*बीमारी साहस और आत्मबल से हारी, और ये आत्मबल गायत्री साधना और स्वाध्याय से मिला*

45 वर्षीय राधिका की गम्भीर बीमारी ने उसके शरीर के साथ साथ घर की आर्थिक स्थिति ख़राब कर दी थी। उसे लगता था जैसे वो परिवार पर बोझ बन गयी है। अतः एक दिन किसी को बिना बताए घर से निकल कर मथुरा वाली बस में बैठ गयी। उसने सोचा क्यूं न मरने से पहले एक बार मथुरा में श्रीकृष्ण के दर्शन कर ले। मथुरा पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी, खांसी बढ़ती जा रही थी। दवा साथ लेकर नहीं आयी थी। बस में बैठी फ़ैमिली जो मथुरा नवदिवसीय सत्र करने जा रही थी ने उन्हें पानी पिलाया और लौंग दिया जिससे खांसी कम आये। बस में आपस मे बातचीत के दौरान उन्होंने राधिका को बताया कि वो नवदिवसीय सत्र करने मथुरा तपोभूमि जा रहे हैं। साथ में गुरुदेव और युगनिर्माण योजना के बारे में बताया। राधिका के मन में मथुरा तपोभूमि के दर्शन की इच्छा हुई। उसने उस फैमिली से कहा कि वैसे तो मैं कृष्ण के दर्शन को मथुरा जा रही थी, लेकिन अब मेरे मन मे तपोभूमि के दर्शन की इच्छा हो रही है। क्या मैं आपके साथ चल सकती हूँ रात को वहां रुकूँगी और सुबह कृष्ण लला के दर्शन करूंगी।

मथुरा तपोभूमि गयी, तो मन में बड़ी शांति मिली। रात को चैन से सोईं सुबह यज्ञ में सम्मिलित हुई, पता नहीं क्या मन में आया और सोचा मरने से पहले गुरुदीक्षा ले लूँ। दीक्षा सेट खरीदने गयी तो वहां पुस्तक देखी निराशा को पास न फटकने दें। ख़रीदा और वहीं मां गायत्री के मन्दिर के बाहर पढ़ने बैठ गयी। कब कई घण्टे बीत गए उन्हें पता ही न चला। उनको एक बहन ने पूंछा भोजन कर लीजिए। वो चुपचाप भोजन करने गयी, और वहां से आकर उन्होंने उस फ़ैमिली को प्रणाम और धन्यवाद कहा। बोली आयी तो मरने के लिए थी, लेकिन अब यहां से न सिर्फ़ जीने के लिए जा रही हूँ। बल्कि अपने जैसे दूसरों को भी जीना सिखाऊंगी। किराया का पैसा छोड़कर जितना भी पैसा उनके पास था उससे उन्होंने पुस्तक📖 *निराशा को पास न फटकने दें* ख़रीदी और लौटते वक़्त बस में सबको फ़्री वितरित करती हुई और पुस्तक के बारे में बताती हुई पूरे आत्मविश्वास के साथ लौटीं।

घर मे सबसे बिन बताये जाने के लिए क्षमा मांगी और न सिर्फ़ स्वयं के रोग पर विजय पाई, साथ ही पुनः शिक्षक की जॉब ज्वाइन की। आज स्कूलों में कोर्स की पुस्तक के साथ साथ स्कूल में बाल संस्कार शाला भी चलाती है। और आज भी स्वीकारती हैं कि यदि *निराशा को पास न फटकने दें* पुस्तक उनके हाथ न लगती तो शायद आज वो इस दुनियां में न होती।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

यह पुस्तक ऑनलाइन फ्री पढने हेतु इस लिंक पर क्लिक करें:-

http://literature.awgp.org/book/Nirasha_Ko_Pass_Na_Fatakane_De/v1

No comments:

Post a Comment

डायबिटीज घरेलू उपाय से 6 महीने में ठीक करें - पनीर फूल(पनीर डोडा)

 सभी चिकित्सक, योग करवाने वाले भाइयों बहनों, आपसे अनुरोध है कि आप मेरे डायबटीज और ब्लडप्रेशर ठीक करने वाले रिसर्च में सहयोग करें। निम्नलिखित...