हम बीच में खड़े हैं,
एक तरफ़ स्वर्ग है,
दूजी तरफ नरक है,
एक तरफ देवत्व है,
दूजी तरफ असुरत्व है,
हम बीच में खड़े हैं।
देवत्व की ओर जो बढ़े हमारे कदम,
तो देवता सराहते और,
असुर हमें पागल कह पुकारते,
असुरत्व की ओर जो बढ़े कदम,
तो देवता धिक्कारते और,
असुर हमे सराहते।
हम बीच में खड़े हैं...
देवत्व में कठिनाई है,
क्योंकि यहां ऊंचाई है,
असुरत्व सहज भाई है,
क्योंकि यह गहरी खाई है,
देवत्व में सम्हलना है,
असुरत्व में बस फिसलना है,
हम बीच में खड़े हैं...
चयन तो करना पड़ेगा,
कहीं न कहीं तो जाना पड़ेगा,
देवत्व का मार्ग कठिन है,
लेकिन मंजिल आनंद से भरी है,
असुरत्व का मार्ग सरल है,
लेकिन मंजिल दुःख-दर्द कांटो से जड़ी है।
हम बीच मे खड़े हैं...
देव मानव बनने की संभावना भी है,
नर पिशाच बनने की भी सम्भावना है।
जो चाहे बन सकते है..
क्यूंकि बीच में हम खड़े हैं,
जो चाहे चयन कर सकते हैं..
क्योंकि बीच मे हम खड़े हैं..
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
युगऋषि परमपूज्य गुरु पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी, विवेकानन्द जी, अरविंद घोष जी इत्यादि ऋषि कह गए हैं कि मनुष्य के अंदर देव मानव बनने की सम्भवना है, बीज भगवान दे गए है। बस उसे चयन करना है, देवत्व की ओर बढ़ना है, देवत्व का पोषण जीवन-देवता की साधना-आराधना द्वारा करना है।
एक तरफ़ स्वर्ग है,
दूजी तरफ नरक है,
एक तरफ देवत्व है,
दूजी तरफ असुरत्व है,
हम बीच में खड़े हैं।
देवत्व की ओर जो बढ़े हमारे कदम,
तो देवता सराहते और,
असुर हमें पागल कह पुकारते,
असुरत्व की ओर जो बढ़े कदम,
तो देवता धिक्कारते और,
असुर हमे सराहते।
हम बीच में खड़े हैं...
देवत्व में कठिनाई है,
क्योंकि यहां ऊंचाई है,
असुरत्व सहज भाई है,
क्योंकि यह गहरी खाई है,
देवत्व में सम्हलना है,
असुरत्व में बस फिसलना है,
हम बीच में खड़े हैं...
चयन तो करना पड़ेगा,
कहीं न कहीं तो जाना पड़ेगा,
देवत्व का मार्ग कठिन है,
लेकिन मंजिल आनंद से भरी है,
असुरत्व का मार्ग सरल है,
लेकिन मंजिल दुःख-दर्द कांटो से जड़ी है।
हम बीच मे खड़े हैं...
देव मानव बनने की संभावना भी है,
नर पिशाच बनने की भी सम्भावना है।
जो चाहे बन सकते है..
क्यूंकि बीच में हम खड़े हैं,
जो चाहे चयन कर सकते हैं..
क्योंकि बीच मे हम खड़े हैं..
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
युगऋषि परमपूज्य गुरु पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी, विवेकानन्द जी, अरविंद घोष जी इत्यादि ऋषि कह गए हैं कि मनुष्य के अंदर देव मानव बनने की सम्भवना है, बीज भगवान दे गए है। बस उसे चयन करना है, देवत्व की ओर बढ़ना है, देवत्व का पोषण जीवन-देवता की साधना-आराधना द्वारा करना है।
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