Monday, 28 May 2018

*एकांकी नाटक - मेरी तो किस्मत ही ख़राब है(अर्थात मेरा attitude खराब है)।*

*एकांकी नाटक - मेरी तो किस्मत ही ख़राब है(अर्थात मेरा attitude खराब है)।*

(एक कॉलेज में लड़के और लड़कियों का ग्रुप किसी फ़ंक्शन की तैयारी कर रहे थे। उस ग्रुप में ईषना भी थी जो कि गायत्री परिवार की थी जो कि अपनी कोर्स की पढ़ाई के साथ साथ नित्य युगऋषि के साहित्य का स्वाध्याय भी करती थी। उसी ग्रुप में अंकिता नाम की लड़की बहुत डिप्रेशन में रहती थी। उसी ग्रुप में केयरलेस atitude का लड़का मोहन भी था। अंकिता और मोहन दोनों का सेमेस्टर में बैक आया था)

*आकाश* - अंकिता तेरा मुंह हमेशा ही लटका रहता है, क्या हुआ एक सब्जेक्ट में बैक आ गया तो....कई अन्य बच्चो के भी तो बैक आये है वो तो मुंह नहीं लटकाए रहते...

*मोहन* - मेरा भी तो बैक आया है फिर भी मैं मस्त हूँ। अब हर कोई ईषना के जैसा टॉपर तो नहीं हो सकता।

*तृप्ति* - ईषना की किस्मत अच्छी है यार...हमेशा टॉप करती है..

*अंकिता* - मेरी तो क़िस्मत की ख़राब है जो मेरा कभी साथ ही नहीं देती। मेरे साथ तो हमेशा उल्टा ही होता है।

*ईषना* - क़िस्मत नाम की कोई भी चीज़ रेडीमेड नहीं होती जो बिना मेहनत के किसी को परीक्षा पास और जीवन में सफ़ल बना सके। वास्तव में तुम्हारी किस्मत खराब नहीं है तुम्हारा Attitude (दृष्टिकोण/मानसिकता) खराब है। अपना Attitude ठीक कर लो किस्मत अपने आप ठीक हो जाएगी।

*आकाश* - ईषना क्या तुम किस्मत को नहीं मानती?

*ईषना* - क़िस्मत का अर्थ है- जागरूक चैतन्य सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति द्वारा सही मौके को पकड़ना और सही दिशा में कार्य करना है। जो मोह की निद्रा में है, जो जागरुक/चैतन्य नहीं है वो सामने आए सभी मौकों को खोते रहता है और किस्मत का रोना रोते रहता है।

(मोहन ईषना को चिढ़ाते हुए, हाथ जोड़कर)

*मोहन* - ईषना माता जी की जय, क्या ज्ञान दिया है। हमें भी उपाय बताएं कि इस सेमेस्टर में हम सब भी  सभी सब्जेक्ट में पास हो जाएं।

*अंकिता* - ईषना, तुझे नहीं मालूम मेरे साथ क्या चल रहा है? मेरे साथ मेरे घरवाले कैसा व्यवहार करते हैं।

*ईषना* - अंकिता तुम्हारे साथ जो कुछ भी चल रहा हो, परिवार वाले कितना भी बुरा व्यवहार कर रहे हों।  लेकिन यह ग्रेजुएशन पास करने का समय तुम्हे दुबारा नहीं मिलेगा। कब तक दोषरोपन से काम चलाओगी। कभी तो zero complain day मनाओ। हम आज जो भी कुछ है या भविष्य में जो भी कुछ बनेंगे इसके लिए एकमात्र सिर्फ़ हम जिम्मेदार हैं, हम जिम्मेदार थे और हम जिम्मेदार रहेंगें। इतनी नफ़रत और complain घर वालों के लिए, समाज के लिए, परिस्थितियों के लिए मन मे भरे रहोगी तो पढ़ाई भीतर घुसेगी कैसे? मन तो घृणा और complain से भरा है। अशांत है। अब टेंशन भरकर पढ़ नहीं रही और पास नहीं होगी तो किस्मत को दोष दोगी ही। किस्मत अपनी कमज़ोरियों को छुपाने का जरिया है। किस्मत नहीं attitude/नज़रिया ठीक करो मैडम।

*अंकिता* - ईषना कैसे करूँ मन ख़ाली, कैसे मेरे पापा के प्रति मेरी नफ़रत हटाऊँ। जब देखो भैया के लिए सबकुछ करते रहते हैं। मैं तो  जन्म से ही पराया धन घोषित हूँ।

*ईषना* - लड़कियों के या तो दो घर होते है(मायका और ससुराल), जो वो बुद्धिबल से और आत्मीयता प्यार से बनाती है या मूर्खता से वो बेघर होती है।

अच्छा ये बताओ, क्या तुमने कभी अपने दम पर स्वयं को बेस्ट साबित करने की कोशिश की? क्या कभी ऐसा सोचा कि मैं कुछ ऐसा करूंगी कि मेरे पिता को दुनियां मेरे नाम से जाने। मेरे माता-पिता को गर्व होगा मेरे जन्म पर...मैं उनकी क्या दुनियाँ की लड़कियों के लिए सोच बदलकर रख दूंगी...क्या ऐसा सोचा?

*अंकिता* - नहीं ईषना, मैंने ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं। मैं तो किस्मत का रोना ही रोती रह गयी। तुम सही कह रही हो...मैं ऐसा भी तो सोच सकती थी...

*ईषना* - अंकिता का अगर नज़रिया नकारात्मक है तो भी नुकसान दायक है। और मोहन तुम्हारा नज़रिया ओवर कान्फिडेंस और केयरलेस नेचर का है यह भी उतना ही नुकसानदायक है।

तुम दोनों को अपने attidude पर काम करना पड़ेगा। अंकिता और मोहन यदि तुम दोनों ख़ुद की मदद नहीं कर सकते, पढ़ नहीं सकते, तो फिर देश समाज के लिए उपयोगी कैसे बनोगे?

मोहन तुम इस नेचर के साथ विवाह और बच्चों की जिम्मेदारी कैसे लोगे?

परिस्थितियां हमेशा ही बद से बदतर बनी रहेंगी, बेरोज़गारी पहले भी थी अब भी है, जितने भी महापुरुष हुए है वो ग़रीबी, भुखमरी, कठिनाइयों और अभावों के बावजूद अपना भविष्य बनाने में सफल रहे। तुम लोग महापुरुषों की जीवनियां पढ़ते नहीं, स्वाध्याय करते नहीं। इसलिए तुम्हारे दिमाग़ में घटिया विचारों का कचड़ा जमा है और उस कचरे के ढेर को बुरी क़िस्मत का नाम तुमने दे दिया है।

*अंकिता* - ईषना तुम्हें लगता है कि मैं जिंदगी में कुछ कर सकती हूँ। मैं अच्छे नम्बरो से पास हो सकती हूँ। जीवन मे कुछ ऐसा कर सकती हूँ जिससे मेरे पिता की पहचान मुझसे हो। मैं मेरी किस्मत अच्छी बना सकती हूँ।

*ईषना* - हां 100% तुम पास हो सकती हो, तुम टॉपर भी बन सकती हो और अच्छा भविष्य अपने लिए गढ़ सकती हो। बस मानसिक कचरा साफ करना होगा। जागरूक चैतन्य बनकर प्रत्येक मौके को हाथ से जाने मत दो।

*मोहन* - क्या सचमुच ऐसा हो सकता है? मैं भी पास हो सकता हूँ।

*ईषना* - हाँजी, सबसे पहले यह स्वीकारो आज तुम्हारा जन्मदिन है। इससे पहले केवल शरीर जन्मा था, आज तुम स्वयं की काबिलियत को जन्म दो, अपने वजूद को जन्म दो। कोई भी आदत 90 दिन में बन जाती है। अतः पॉजिटिव attitude के साथ पढ़ने आओ हम तुम्हारी मदद करेंगे। 90 दिन नो कम्प्लेन डे होगा। केवल अपने विचारों के प्रति जागरूक रहोगे और ईश्वर को जीवन के लिए धन्यवाद दोगे। कड़ी मेहनत करोगे।

*अंकिता* - हम तुम्हारी तरह सोच वाले, positive attitude वाले बन जाएंगे क्या?

*ईषना* - हांजी पॉज़िटिव attitude बन जायेगा।

देखो, गेहूँ डायरेक्ट नहीं खाते, उसे पीसने के बाद आटा बनता है। फिर गूँधा जाता है। फिर बेलन से गोल बनाते हैं, फिर रोटी आग में सेंकी जाती है। तब रोटी बनती है। तब हम खाते है।

इसी तरह पॉजिटिव attitude बनाने के लिए स्वयं को साधना पड़ेगा। रोज़ सुबह उठो और मिरर में देख कर स्वयं को विजेता अनुभव करो और संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो यह विश्वास करो। 10 छोटे बड़े लाइफ गोल(लक्ष्य) बनाओ। थोड़ी देर नहाकर गायत्री मंत्र जपो, उगते सूर्य का ध्यान करो और भगवान को जीवन के लिए धन्यवाद। रोज महापुरुषों की जीवनियां पढ़ो, अच्छी पुस्तकें पढो।

(ईषना ने मोबाईल में awgp वेबसाइट को ओपन किया और निम्नलिखित पुस्तके ऑनलाइन पढ़ो:-)

1-दृष्टिकोण ठीक रखें
2-निराशा को पास न फटकने दें
3-आगे बढ़ने की तैयारी
4- अधिकतम अंक कैसे पाएं
5- बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि
6- सफ़ल जीवन की दिशा धारा
7- महापुरुषों की जीवनियां
8- सफलता के सात सूत्र
9- धनवान बनने के गुप्त रहस्य

(नादयोग की ऑडियो दी, टेंशन को खाली करने में मदद के लिए।

अंकिता और मोहन ने ईषना के बताए तरीके से मेहनत की, कम्प्लेन मोड बन्द करने पर मन हल्का रहने लगा। महापुरुषों की जीवनियों से उन्हें प्रेरणा मिली। सत्साहित्य से सफलता के सूत्र मिले। ईषना से कोचिंग ली, ईषना ने हर एग्जाम के 5 साल लगातार पुराने पेपर की एनालिसिस करना उन्हें सिखाया उसके आधार पर प्रेक्टिस करवाई । और इस बार सेमेस्टर में दोनों फर्स्ट डिवीजन से पास हुए साथ ही बैक पेपर भी क्लियर कर लिया। दोनों बहुत खुश थे, क्योंकि सकारात्मक जीवन जीना जो उन्हें आ गया था और सकारात्मक सोच के साथ पढ़ना भी आ गया)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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