प्रश्न - *हिंदू धर्म मे बड़ो के पैर छूने के पीछे आध्यात्मिक वैज्ञानिक कारण क्या है? अक्सर लड़के अपने से छोटी बहन का पैर छूते हैं। माँ-पिता अपनी कन्या से पैर नहीं स्पर्श करवाते। केवल शादी के बाद ही स्त्री अपने बड़ो का चरण स्पर्श करती है। कृपया इसके पीछे का रहस्य समझाएं।*
उत्तर - पैर छूने के संस्कार सिखाते वक्त हमें बस इतना बताया जाता है कि बड़ों के प्रति आदर और सम्मान को व्यक्त करने के लिए हम पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। लेकिन साइंस ने जब इस तर्क पर शोध किया तो नतीजे चौकाने वाले थे। हजारों साल पहले से चली आ रही इस परंपरा को वैज्ञानिक ने बहुत ही आधुनिक और साइंटिक माना। जी हां वैज्ञानिक तर्क के मुताबिक हमारा शरीर जिस तंत्रिका तंत्र से बना है उसकी शुरु्आत हमारे मस्तिष्क से होती है। यह तंत्रिकाओं का अंत हमारे हाथों और पैरों की अगुंलियों पर आकर खत्म होता है। जब हम किसी के पैर छूते हैं तो उस वक्त हम अपने बाएं हाथ से उसके दाएं पैर को और अपने दाएं हाथ से उसके बाएं पैर को छूते हैं। इससे एक विद्युत चुंबकीय चक्र पूरा होता है। सामने वाले की ऊर्ज हमारे शरीर में प्रवाहित होने लगती है। इसलिए हम जिनकी तरह बनना चाहते हैं उनके पैर छूने से उनकी ऊर्जा का प्रवाह हमारे अंदर होता है।
इस तर्क को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि दुनिया मे सभी चीजें गुरुत्वाकर्षण के नियम से बंधी हैं। हमारे शरीर को अगर एक चुंबक मान लिया जाए और सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिणी ध्रुव तो गुरुत्व या चुंबकीय ऊर्जा हमेशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र पूरा करती हैं। शरीर के दक्षिणी ध्रुव यानी पैरों में यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है और वहां ऊर्जा का केंद्र बन जाता है। पैरों को हाथों से छूने से इस ऊर्जा का प्रवाह होता है।
*जब कोई आपके पैर छुए तो रखें इन बातों का ध्यान* -
जब कोई आपके पैर छुए तो उस वक्त भगवान का नाम लेने से सामने वाले को साकारात्मक फल मिलते हैं। आशीर्वाद देने से पैर छूने वाले व्यक्ति की समस्याएं खत्म होती हैं। साथ ही हमारे हाथ-पैर और सिर को ऊर्जा का ओपन सोर्स माना जाता है। इसलिए कोई आपके पैर छुए तो उसके सिर पर हाथ रखें। इससे ऊर्जा प्रवाह का एक सर्किट पूरा होता है। और सामने वाले को आपसे सकारात्म ऊर्जा मिलती है।
*क्यों है यह परंपरा* -
पैर छूने से चूकि सामने वाले की सकारात्मक ऊर्जा आपके शरीर में आती है, तो इससे आपको को नकारात्मकता से छुटकारा मिलता है। हिंदू धर्म में माता-पिता और गुरू के पैर छूने का सर्वोच्च फल बताया गया है। इस आधार पर हम वास्तविकता को देखें तो ये ही हैं जो हमारा कभी बुरा नहीं सोच सकते। इसलिए हमारे प्रति दुनिया में ये तीन सबसे सकारात्मक विचार रखते हैं। इनकी यही ऊर्जा हमारी तरक्की में भी मदद करती है। इसलिए इस परंपरा को अपनाएं और खुद अनुभव करें।
*कुँवारी कन्याएं चरण स्पर्श क्यों नहीं करती, जबकि कुँवारे लड़के चरण स्पर्श करते है।*
आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर ऋषियों को पता था कि किसको क्या कार्य सौंपना चाहिए। शारीरिक श्रम का उत्तरदायित्व लड़कों को सौंपा और आध्यात्मिक श्रम का उत्तरदायित्व लड़कियों को सौंपा। लड़के खेतों में कठिन परिश्रम करते तो लड़कियां घरों में कठिन कठिन तप करती। जब लड़के श्रम करके अनाज और धन लाते तो सब उपयोग में ले लेते। अब आध्यात्मिक सम्पदा भी बंटनी चाहिए, इसलिए लड़के चरण स्पर्श करके लड़कियों की आध्यात्मिक सम्पदा शक्ति ग्रहण करते थे। माता-पिता भी कन्याओं के चरण स्पर्श करके आध्यात्मिक सम्पदा ग्रहण करते थे।
कुँवारी कन्या की शरीर संरचना कुछ इस प्रकार की है कि 11 वर्ष तक शक्ति का स्वयमेव केंद्र होती है, इसलिए माता भगवती ने कुँवारी कन्याओं से अखण्डदीप के समक्ष तप करवाया। बड़ी जल्दी इनकी साधना सफल होती है। इसलिये इनको नवदुर्गा में पूजा जाता है और इनके चरण स्पर्श करके आध्यात्मिक शक्ति ग्रहण की जाती है। गर्भ धारण के बाद इनकी शक्तियां गर्भ में ट्रांसफर हो जाती है और ये जितनी अधिक सन्तान जन्म देती है उतनी ही इनकी शक्ति क्षीण होती जाती है।
*विवाहित स्त्रियां सास ससुर के पैर क्यों छूती हैं।*
विवाह के बाद स्त्री की समस्त आध्यात्मिक शक्ति का 50% पति के पास चला जाता है ठीक उसी तरह जिस प्रकार पुरुष की अर्थ सम्पदा 50% स्त्री की हो जाती है। सास ससुर अपने पौत्र-पौत्रियों के जन्म में खर्च होने वाली आध्यात्मिक शक्ति की पूर्ति हेतु नित्य यज्ञ-तप करते थे। पुत्र वधु चरण स्पर्श करके उन आध्यात्मिक शक्तियों को ग्रहण करती थी।
यदि कोई साधक नहीं है, और आध्यात्मिक सम्पदा से रिक्त है।तो ऐसे बुजुर्ग, स्त्री या पुरुष, या कुँवारी कन्या के चरण स्पर्श का कोई लाभ नहीं मिलता। देगा वो जिसके पास कुछ होगा।
अत्यंत नकारात्मक, व्यभिचारी, नशाखोर व्यक्ति चाहे बुजुर्ग ही क्यों न हो उसके चरण स्पर्श वर्जित है। ऐसे लोगों के चरण स्पर्श करने पर नकारात्मकता प्रवेश करती है।
हमारे यहां इसलिए अनजान लोगों को नमस्ते करते है हाथ मिलाकर स्पर्श नहीं करते। क्योंकि भरे हुए तालाब का जल जिस तरह कम भरे तालाब में नाली बना देने से प्रवाहित होता है। उसी तरह कम ऊर्जा वाला व्यक्ति अधिक ऊर्जा वाले व्यक्ति की शक्ति स्पर्श के माध्यम से खींचता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - पैर छूने के संस्कार सिखाते वक्त हमें बस इतना बताया जाता है कि बड़ों के प्रति आदर और सम्मान को व्यक्त करने के लिए हम पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। लेकिन साइंस ने जब इस तर्क पर शोध किया तो नतीजे चौकाने वाले थे। हजारों साल पहले से चली आ रही इस परंपरा को वैज्ञानिक ने बहुत ही आधुनिक और साइंटिक माना। जी हां वैज्ञानिक तर्क के मुताबिक हमारा शरीर जिस तंत्रिका तंत्र से बना है उसकी शुरु्आत हमारे मस्तिष्क से होती है। यह तंत्रिकाओं का अंत हमारे हाथों और पैरों की अगुंलियों पर आकर खत्म होता है। जब हम किसी के पैर छूते हैं तो उस वक्त हम अपने बाएं हाथ से उसके दाएं पैर को और अपने दाएं हाथ से उसके बाएं पैर को छूते हैं। इससे एक विद्युत चुंबकीय चक्र पूरा होता है। सामने वाले की ऊर्ज हमारे शरीर में प्रवाहित होने लगती है। इसलिए हम जिनकी तरह बनना चाहते हैं उनके पैर छूने से उनकी ऊर्जा का प्रवाह हमारे अंदर होता है।
इस तर्क को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि दुनिया मे सभी चीजें गुरुत्वाकर्षण के नियम से बंधी हैं। हमारे शरीर को अगर एक चुंबक मान लिया जाए और सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिणी ध्रुव तो गुरुत्व या चुंबकीय ऊर्जा हमेशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र पूरा करती हैं। शरीर के दक्षिणी ध्रुव यानी पैरों में यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है और वहां ऊर्जा का केंद्र बन जाता है। पैरों को हाथों से छूने से इस ऊर्जा का प्रवाह होता है।
*जब कोई आपके पैर छुए तो रखें इन बातों का ध्यान* -
जब कोई आपके पैर छुए तो उस वक्त भगवान का नाम लेने से सामने वाले को साकारात्मक फल मिलते हैं। आशीर्वाद देने से पैर छूने वाले व्यक्ति की समस्याएं खत्म होती हैं। साथ ही हमारे हाथ-पैर और सिर को ऊर्जा का ओपन सोर्स माना जाता है। इसलिए कोई आपके पैर छुए तो उसके सिर पर हाथ रखें। इससे ऊर्जा प्रवाह का एक सर्किट पूरा होता है। और सामने वाले को आपसे सकारात्म ऊर्जा मिलती है।
*क्यों है यह परंपरा* -
पैर छूने से चूकि सामने वाले की सकारात्मक ऊर्जा आपके शरीर में आती है, तो इससे आपको को नकारात्मकता से छुटकारा मिलता है। हिंदू धर्म में माता-पिता और गुरू के पैर छूने का सर्वोच्च फल बताया गया है। इस आधार पर हम वास्तविकता को देखें तो ये ही हैं जो हमारा कभी बुरा नहीं सोच सकते। इसलिए हमारे प्रति दुनिया में ये तीन सबसे सकारात्मक विचार रखते हैं। इनकी यही ऊर्जा हमारी तरक्की में भी मदद करती है। इसलिए इस परंपरा को अपनाएं और खुद अनुभव करें।
*कुँवारी कन्याएं चरण स्पर्श क्यों नहीं करती, जबकि कुँवारे लड़के चरण स्पर्श करते है।*
आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर ऋषियों को पता था कि किसको क्या कार्य सौंपना चाहिए। शारीरिक श्रम का उत्तरदायित्व लड़कों को सौंपा और आध्यात्मिक श्रम का उत्तरदायित्व लड़कियों को सौंपा। लड़के खेतों में कठिन परिश्रम करते तो लड़कियां घरों में कठिन कठिन तप करती। जब लड़के श्रम करके अनाज और धन लाते तो सब उपयोग में ले लेते। अब आध्यात्मिक सम्पदा भी बंटनी चाहिए, इसलिए लड़के चरण स्पर्श करके लड़कियों की आध्यात्मिक सम्पदा शक्ति ग्रहण करते थे। माता-पिता भी कन्याओं के चरण स्पर्श करके आध्यात्मिक सम्पदा ग्रहण करते थे।
कुँवारी कन्या की शरीर संरचना कुछ इस प्रकार की है कि 11 वर्ष तक शक्ति का स्वयमेव केंद्र होती है, इसलिए माता भगवती ने कुँवारी कन्याओं से अखण्डदीप के समक्ष तप करवाया। बड़ी जल्दी इनकी साधना सफल होती है। इसलिये इनको नवदुर्गा में पूजा जाता है और इनके चरण स्पर्श करके आध्यात्मिक शक्ति ग्रहण की जाती है। गर्भ धारण के बाद इनकी शक्तियां गर्भ में ट्रांसफर हो जाती है और ये जितनी अधिक सन्तान जन्म देती है उतनी ही इनकी शक्ति क्षीण होती जाती है।
*विवाहित स्त्रियां सास ससुर के पैर क्यों छूती हैं।*
विवाह के बाद स्त्री की समस्त आध्यात्मिक शक्ति का 50% पति के पास चला जाता है ठीक उसी तरह जिस प्रकार पुरुष की अर्थ सम्पदा 50% स्त्री की हो जाती है। सास ससुर अपने पौत्र-पौत्रियों के जन्म में खर्च होने वाली आध्यात्मिक शक्ति की पूर्ति हेतु नित्य यज्ञ-तप करते थे। पुत्र वधु चरण स्पर्श करके उन आध्यात्मिक शक्तियों को ग्रहण करती थी।
यदि कोई साधक नहीं है, और आध्यात्मिक सम्पदा से रिक्त है।तो ऐसे बुजुर्ग, स्त्री या पुरुष, या कुँवारी कन्या के चरण स्पर्श का कोई लाभ नहीं मिलता। देगा वो जिसके पास कुछ होगा।
अत्यंत नकारात्मक, व्यभिचारी, नशाखोर व्यक्ति चाहे बुजुर्ग ही क्यों न हो उसके चरण स्पर्श वर्जित है। ऐसे लोगों के चरण स्पर्श करने पर नकारात्मकता प्रवेश करती है।
हमारे यहां इसलिए अनजान लोगों को नमस्ते करते है हाथ मिलाकर स्पर्श नहीं करते। क्योंकि भरे हुए तालाब का जल जिस तरह कम भरे तालाब में नाली बना देने से प्रवाहित होता है। उसी तरह कम ऊर्जा वाला व्यक्ति अधिक ऊर्जा वाले व्यक्ति की शक्ति स्पर्श के माध्यम से खींचता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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