प्रश्न - *एक श्रेष्ठ आत्मा को जन्म देना, क्या ये हमारे वश में है? हमारे गर्भ में श्रेष्ठ आत्मा ही आये ये कैसे सुनिश्चित करें...हमारी शादी को एक वर्ष हो गए हैं, हम दोनों साधक है और श्रेष्ठ आत्मा के माता-पिता बनने का सौभाग्य चाहते हैं।...कृपया मार्गदर्शन करें*
उत्तर - श्रेष्ठ आत्मा अर्थात भौरा और बुरी आत्मा अर्थात मक्खी। यदि दोनों उड़ेंगे तो अपनी अपनी पसंद की चीज़ ढूंढेंगे - भौरें को फूल चाहिए तो मक्खी को गन्दगी। हंस को मोती चाहिए और कौवे को रोटी।
श्रेष्ठ आत्मा के स्वागत हेतु श्रेष्ठ गर्भ निर्माण में जुट जाइये। सवा लाख गायत्री मंत्र का अनुष्ठान या 24 हज़ार के तीन लघु अनुष्ठान चन्द्रायण साधना करते हुए आप दोनों करें। जुलाई 2018 में हम लोग चन्द्रायण करते है आप दोनों समूह में चन्द्रायण करेंगे तो अनेकों गुना लाभ मिलेगा।
नियमित पुस्तक *चेतना की शिखर यात्रा* और *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* का स्वाध्याय करें। साहसी बच्चा चाहिए तो साथ में वीरों और प्रसिद्ध योगियों की जीवन कथा पढें।
अनुष्ठान के बाद बच्चा प्लान करें, जिस प्रकार की आत्मा चाहते हैं उससे सम्बन्धित गीत या गायत्री मंत्र दिन भर बजने दें। जब आत्मा शरीर धारण को ईश्वरीय आदेश से निकलेगी तो आपके तपस्वी शरीर और उच्च मनोभाव को देख के बुरी आत्माएं निकट नहीं आएंगी। हिमालय की दिव्यात्माओं को दिव्य सन्देश प्रकृति पहुंचा देगी। औऱ श्रेष्ठ दिव्यात्मा आपके गर्भ में प्रवेश करेगी।
पुंसवन सँस्कार कम से कम दो बार करवाना - तीसरे और सातवें महीने में, मन में उच्च भाव बनाएं रखने के लिए नियमित गायत्री जप- उगते हुए सुनहरे सूर्य का गर्भ के अंदर ध्यान, गर्भ में प्रकाश ही प्रकाश का ध्यान करना, नियमित योग-प्राणायाम करना, गर्भावस्था में संस्कृत आती हो या न आती हो पुनः शुरू से संस्कृत सीखना, 6 महीने संस्कृत भाषा में महारत हासिल कर लेना। दिव्य गर्भ संवाद आप और आपके पति देव करना। बलिवैश्व यज्ञ द्वारा संस्कारित भोजन करना। 9 महीने तक घर का बना और शुध्द सात्विक भोजन करना। कुछ भी खाने पीने से पहले गायत्री मंत्र बोलकर खाना। नित्य उगते हुये सूर्य का दर्शन पेट मे हाथ रख के करना। दैनिक साधना के बाद सूर्य को जल चढाकर थोड़ा जल बचा लेना, उस जल को गर्भस्थ पेट के ऊपर लगाना, साथ ही शान्तिकुंज में मिली चुटकी भर यज्ञ भष्म उस जल में मिला के थोड़ा सा जल पी लेना।
हो सके तो कुछ दिन दिव्य साधना लोक - गायत्री तपोभूमि मथुरा या शान्तिकुंज हरिद्वार में रह लेना। जिससे तीर्थ चेतना का लाभ भी गर्भस्थ शिशु को मिले।
रोज रात को महापुरुषों का साहित्य पढ़ना, प्रेरक प्रज्ञा गीत सुनना, जब भी वक्त मिले परमपूज्य गुरुदेव, मां भगवती, श्रद्धेय डॉक्टर साहब, श्रद्धेया जीजी और चिन्मय भैया के वीडियो लेक्चर सुन लेना।
फोन और लैपटॉप को गर्भ के पास न लाना और न रखना। टीवी यदि घर में हो तो 9 महीने उसे न देखना।
नित्य आत्मबोध और तत्त्वबोध की साधना करना और जिस महापुरुष जैसा बच्चा चाहती हो उनके गुणों का निरन्तर चिंतन करना।
*आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी* पुस्तक में वर्णित पूरी दिनचर्या को नियम से पालन करना।
तुमदोनो को दिव्य सन्तान मिले इसकी हम प्रार्थना करते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - श्रेष्ठ आत्मा अर्थात भौरा और बुरी आत्मा अर्थात मक्खी। यदि दोनों उड़ेंगे तो अपनी अपनी पसंद की चीज़ ढूंढेंगे - भौरें को फूल चाहिए तो मक्खी को गन्दगी। हंस को मोती चाहिए और कौवे को रोटी।
श्रेष्ठ आत्मा के स्वागत हेतु श्रेष्ठ गर्भ निर्माण में जुट जाइये। सवा लाख गायत्री मंत्र का अनुष्ठान या 24 हज़ार के तीन लघु अनुष्ठान चन्द्रायण साधना करते हुए आप दोनों करें। जुलाई 2018 में हम लोग चन्द्रायण करते है आप दोनों समूह में चन्द्रायण करेंगे तो अनेकों गुना लाभ मिलेगा।
नियमित पुस्तक *चेतना की शिखर यात्रा* और *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* का स्वाध्याय करें। साहसी बच्चा चाहिए तो साथ में वीरों और प्रसिद्ध योगियों की जीवन कथा पढें।
अनुष्ठान के बाद बच्चा प्लान करें, जिस प्रकार की आत्मा चाहते हैं उससे सम्बन्धित गीत या गायत्री मंत्र दिन भर बजने दें। जब आत्मा शरीर धारण को ईश्वरीय आदेश से निकलेगी तो आपके तपस्वी शरीर और उच्च मनोभाव को देख के बुरी आत्माएं निकट नहीं आएंगी। हिमालय की दिव्यात्माओं को दिव्य सन्देश प्रकृति पहुंचा देगी। औऱ श्रेष्ठ दिव्यात्मा आपके गर्भ में प्रवेश करेगी।
पुंसवन सँस्कार कम से कम दो बार करवाना - तीसरे और सातवें महीने में, मन में उच्च भाव बनाएं रखने के लिए नियमित गायत्री जप- उगते हुए सुनहरे सूर्य का गर्भ के अंदर ध्यान, गर्भ में प्रकाश ही प्रकाश का ध्यान करना, नियमित योग-प्राणायाम करना, गर्भावस्था में संस्कृत आती हो या न आती हो पुनः शुरू से संस्कृत सीखना, 6 महीने संस्कृत भाषा में महारत हासिल कर लेना। दिव्य गर्भ संवाद आप और आपके पति देव करना। बलिवैश्व यज्ञ द्वारा संस्कारित भोजन करना। 9 महीने तक घर का बना और शुध्द सात्विक भोजन करना। कुछ भी खाने पीने से पहले गायत्री मंत्र बोलकर खाना। नित्य उगते हुये सूर्य का दर्शन पेट मे हाथ रख के करना। दैनिक साधना के बाद सूर्य को जल चढाकर थोड़ा जल बचा लेना, उस जल को गर्भस्थ पेट के ऊपर लगाना, साथ ही शान्तिकुंज में मिली चुटकी भर यज्ञ भष्म उस जल में मिला के थोड़ा सा जल पी लेना।
हो सके तो कुछ दिन दिव्य साधना लोक - गायत्री तपोभूमि मथुरा या शान्तिकुंज हरिद्वार में रह लेना। जिससे तीर्थ चेतना का लाभ भी गर्भस्थ शिशु को मिले।
रोज रात को महापुरुषों का साहित्य पढ़ना, प्रेरक प्रज्ञा गीत सुनना, जब भी वक्त मिले परमपूज्य गुरुदेव, मां भगवती, श्रद्धेय डॉक्टर साहब, श्रद्धेया जीजी और चिन्मय भैया के वीडियो लेक्चर सुन लेना।
फोन और लैपटॉप को गर्भ के पास न लाना और न रखना। टीवी यदि घर में हो तो 9 महीने उसे न देखना।
नित्य आत्मबोध और तत्त्वबोध की साधना करना और जिस महापुरुष जैसा बच्चा चाहती हो उनके गुणों का निरन्तर चिंतन करना।
*आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी* पुस्तक में वर्णित पूरी दिनचर्या को नियम से पालन करना।
तुमदोनो को दिव्य सन्तान मिले इसकी हम प्रार्थना करते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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