Wednesday, 23 May 2018

प्रश्न - *दी, मेरे जीवन में आध्यात्मिकता की शुरुआत हो गयी है या नहीं? यह कैसे चेक करूं? कृपया मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *दी, मेरे जीवन में आध्यात्मिकता की शुरुआत हो गयी है या नहीं? यह कैसे चेक करूं? कृपया मार्गदर्शन करें*

उत्तर - इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले दो कहानी सुनाती हूँ वो सुनो-

1- *पहली कहानी* -

एक व्यक्ति ने एक सन्त से अनुरोध किया कि वो अध्यात्म में प्रवेश चाहता है, अतः उसे शिष्य अपना शिष्य बना लें। पहले तो उसने मना कर दिया, लेकिन जब कई दिनों के अनुरोध के बाद उसने उसे शिष्य बनाने से पूर्व एक परीक्षा की शर्त रखी। उसने शिष्य बनने आये व्यक्ति से कहा तुम आज सुबह से शाम सिर्फ मुझे देखो(observe) करो, लेकिन कुछ बोलना मत और न हीं कोई प्रतिकार करना। यदि ऐसा कर सके तो कल तुम्हें गुरुदीक्षा दूँगा। व्यक्ति तैयार हो गया। सन्त अपने काम में लग गए वो देखता रहा। फिर सन्त दो बाल्टी लेकर कुएं में पानी भरने गए। पहली बाल्टी को कुएं में डाला लेकिन बाल्टी हमेशा खाली आती। क्योंकि उस बाल्टी के पेंदी में कई छेद थे ऊपर आते आते बाल्टी खाली हो जाती। इस तरह सन्त ने कई बार प्रयास किया लेकिन बाल्टी कभी भरकर न आई। वह व्यक्ति देखता रहा, लेकिन कुछ न बोला। अब सन्त ने छेदों वाली बाल्टी खोल के रख दी, दूसरी बाल्टी जो सही थी उससे पानी खींचते फिर छेदों वाली पेंदी की बाल्टी में डालते । लेकिन वो फिर खाली हो जाती। थककर सन्त चूर चूर हो रहे थे, लेकिन छेदों वाली बाल्टी भरती ही न थी। अंततः शिष्य बनने आये व्यक्ति से रहा न गया और वो बोल पड़ा। आप इतने बड़े सन्त होकर एक छोटी सी बात नहीं समझते कि यदि बाल्टी में छेद है तो उसे कोई कभी भर नही सकता चाहे, कितना भी प्रयास क्यों न करे। चाहे कुएं से डायरेक्ट भरो या दूसरी बाल्टी की सहायता से भरो, ये अंततः खाली की खाली ही रहेगी।

सन्त मुस्कुराए और बोले, यह छेदों वाली बाल्टी मनुष्य के मन अर्थात तुम्हारी वर्तमान मन का प्रतीक है, जिसमें वासनाओ, तृष्णाओं, कामनाओं, अहंकार के छेद हैं। जब तक ये छिद्र मन में हैं तब तक अध्यात्म न टिकेगा। अब ये दूसरी सही बाल्टी जिसमें छेद नहीं अर्थात मैं (तुम्हारी नज़र में सन्त जिसे तुम गुरु बनाना चाहते हो, जिसकी कृपा चाहते हो) वो कुएं अर्थात परब्रह्म से आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त करके भी तुममें उड़ेलता जाए तो भी भरेगा ही नहीं। या तुम्हारा मन बिना गुरु के डायरेक्ट परब्रह्म (कुएं) से अध्यात्म स्वयं भी भरना चाहो तो भी ख़ाली ही रहेगा। इन छिद्रों के साथ कई जन्मों तक प्रयास करो तो भी हाथ खाली ही रहेगा।

शर्त के अनुसार तुम फेल हो गए तो तुम्हे मैं शिष्य अभी नहीं बनाऊंगा, लेकिन तुम अब ये जान गए हो कि इन छिद्रों को भरना अनिवार्य है। तो स्वयं को साधने में जुट जाओ, आध्यात्मिक किसान की तरह मनोभूमि तैयार करो। तब मेरे पास आना मैं अध्यात्म के बीज दूंगा।

2- *दूसरी कहानी* -

एक फ़क़ीर बादशाह के दरवाज़े पर एक अजीब भिक्षापात्र लेकर गया, उसने कहा महाराज यह भिक्षा पात्र कभी भरता नहीं। यदि तुम भर सको तो इसे अन्न से भर दो। राजा ने छोटे से भिक्षा पात्र को देख के वज़ीर से कहा, इस पात्र को स्वर्ण मुहरों से भर दो। लेकिन यह क्या सुबह से शाम हो गयी लेकिन वो छोटा सा पात्र न भरा। बादशाह फ़क़ीर के चरणों में झुक गया। बोला इसका राज बताओ, ये भरता क्यों नहीं। फ़क़ीर बोला मेरा भिक्षा पात्र टूट गया था तो श्मशान में मुझे एक खोपड़ी मिली। उसका भिक्षा पात्र बनाया। यह पात्र उस मनुष्य के मन का है। इसलिए कभी भरता ही नहीं।

महाराज जिस तरह तुम दूसरे राज्यों को जीतते जा रहे, महल हज़ारो रानियों और दासियों से भरा पड़ा है, खज़ाना भरते जा रहे हो लेकिन फिर भी अतृप्त हो। वासना भी शांत न हुई, और धन की तृष्णा भी शांत न हुई। क्योंकि वासनाएं-इच्छाएं-कामनाओं-तृष्णाओं और अहंकार की जितनी तृप्ति करोगे ये उतनी ही बढ़ेगी और बलवती रहेगी।

जिनके पास जॉब नहीं वो भी अतृप्त है, जिनके पास जॉब है वो भी अतृप्त हैं। जब कम सैलरी थी, तब भी अतृप्त थे लोग और अब जिनकी सैलरी ज्यादा है वो भी अतृप्त है। जिनकी शादी नहीं हुई वो भी अतृप्त है और जिनकी हो गयी वो भी अतृप्त हैं। जिनके पास धन नहीं वो भी अतृप्त है और जिनके पास है वो भी अतृप्त है। जिनके सन्तान नहीं वो भी अतृप्त है और जिनके पास सन्तान है वो भी अतृप्त है।

🙏🏻हमारे जीवन में आध्यात्मिक शुरुआत हो गयी है यदि हमें यह समझ में आ गया है कि लोभग्रस्त-कामनाग्रस्त मन को कभी भरा नहीं जा सकता। मन में शांति तुष्टि तृप्ति चाहिए तो मन के इन छिद्रों को बंद करना पड़ेगा। इससे कम में बात न बनेगी। इसे समझना और इस पर कार्य करना अनिवार्य है। आत्मिक तृप्ति शांति तुष्टि संसारिक किसी भी रिश्ते या सम्पत्ति से नहीं मिल सकती।

📖 *पुस्तक - अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* पढो समझो, इस पर चिंतन मनन करके, अध्यात्म में प्रवेश करो यदि अभी प्रवेश न हुआ हो तो, यदि अध्यात्म में प्रवेश हो गया है तो 📖 *पुस्तक - *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* पढ़ो। यदि स्वयं में शिष्यत्व जगाना है तो 📖पुस्तक पढो - *शिष्य संजीवनी*

आपके आध्यात्मिक सफर की अग्रिम बधाई स्वीकार करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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