प्रश्न - *मुझे लगता है लोग मेरे सीधे और सच्चे व्यवहार का फ़ायदा उठाते हैं, मेरे पीठ पीछे मेरी खिल्ली उड़ाते है/मज़ाक बनाते है। इस कारण मैं अपने ऑफिस के काम मे फ़ोकस नहीं कर पा रही हूँ, और न ही किसी अन्य कार्य में, मेरी नई नई नौकरी है।*
*बचपन मे मेरे माता-पिता जब मेरी तुलना अन्य बच्चों से करते थे, तो भी मैं दुःखी होती थी, लेकिन मैंने माता-पिता को जवाब नहीं दिया, कुछ वर्षो से डिप्रेशन की दवाई भी ले रही हूँ ।*
उत्तर - तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने से पहले एक घटना सुनाती हूँ, एक लड़की पानी से बहुत डरती थी। नदी-तलाब-समुद्र कहीं भी नहीं जाती। तब उसे एक मनोवैज्ञानिक के पास ले गए, तब हिप्नोटाइज़ करके पता लगाया कि बचपन में उसकी माँ उसे टब में नहला रही थी तभी कोई दरवाज़े पर आ गया वो उससे बातें करने लगी। और बच्ची पानी मे डूबने लगी बड़ी मुश्किल से टब को गिरा के वो स्वयं को बचाई जिसमें उसे चोट लग गई थी। अब यह घटना लड़की भूल गयी लेकिन डर मन मे बना रहा।
तब डॉक्टर उसे पुनः बाथरूम में बड़े टब में नर्स के साथ ले गया। टब में पानी भरवाया और बोला देखो अगर पानी भर भी गया तो तुम कभी डूबोगी नहीं क्योंकि तुम्हारे पैर और शरीर बड़ा हो गया है। तुम अब बलशाली हो। तब लड़की को अहसास हुआ और वो डर भाग गया। वो पानी से डरना बन्द कर दी।
तुम बचपन से एक घुटन में जीती आयी हो क्योंकि तुमने अपने कानों से सुना कि लोग जिनमे तुम्हारे अपने भी है तुम्हारी बुराई कर रहे हैं, दूसरे बच्चों से तुम्हारी तुलना कर रहे हैं। इससे तुम्हारे सम्वेदनशील हृदय में आघात लगा, क्योंकि तुमने अपने हिस्से की कोशिश करके सबको ख़ुश करने की कोशिश की थी। इसलिए ज्यादा दुःखी हुई। स्कूल कॉलेज में भी इसी परिस्थिति का सामना करने पर भी वहां भी उन्हें दो टूक जवाब न दे पाई।
तुमने उस दर्द और घुटन को बाहर आने नहीं दिया, और यह बात उनलोगों से न कह पाई कि मेरी तुलना किसी से मत करो। मैं जैसी हूँ मुझे वैसा स्वीकारो। मैं बेस्ट हूँ। कोई मेरी बुराई करे मुझे पसंद नहीं।
यह घुटन तुम्हें चुभती है, पुराने बुरे अनुभव नए रिश्तों और मित्रो के साथ सम्बन्ध में भी संदेह उतपन्न कर रहे हैं।
अब तुम क्योंकि गर्म दूध से जल गई हो इसलिए ठंडी छाछ को भी पीने से डर रही हो।
*जो भय और फ़ोबिया तुम्हारे भीतर है, इसे तुम्हें ही निकालना होगा। दवा डर को भुला देती है, डर को मिटाती नहीं*
दर्पण के सामने खड़ी होकर स्वयं को अच्छे से देखो
कुछ प्रश्न स्वयं से पूंछो -
1- क्या मैं अंधी हूँ?
2- क्या मैं लूली हूँ?
3- क्या मैं लँगड़ी हूँ?
4- क्या मैं बहरी हूँ?
5- शारीरक रूप से क्या मैं अपाहिज हूँ?
6- क्या मुझे पढ़ना-लिखना नहीं आता?
7- क्या मुझमे सोचने समझने की शक्ति नहीं?
यदि मैं शारीरिक रूप से सक्षम और मानसिक रूप से सोच समझ रखने वाली बुद्धि रखती हूं? तो फिर मैं दुःखी क्यों हूँ?
अगर कोई मुझे कुत्ता बोलेगा तो क्या मेरी पूंछ निकल आएगी और मैं कुत्ता बन जाऊंगी?
कोई मुझे गधा बोलेगा तो क्या मैं ढेंचू ढेंचू करने लगूंगी नहीं न...
फिर कोई मुझे कुछ भी कहे पीठ पीछे मेरा क्या जाता है।
मैं जो हूँ वो हूँ? मै संसार की सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हूँ। I m the best... This is my life... I will enjoy god gifted life...Today is my day...
तीन माला गायत्री जपते हुए स्वयं के भीतर गायत्री का आह्वान करो। बुद्धि-बल-धन की कामना करो।
जिस प्रकार कुत्ते के भौंकने से हाथी विचलित नहीं होता वैसे ही तुम भी किसी के कुछ भी सोचने/भोंकने से विचलित मत हो
अपने भीतर के डर से लड़ो, विजयी भव।
इसके लिए गुरुदेव की कुछ पुस्तके जैसे - *मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले*, *दृष्टिकोण ठीक रखें*, *शक्तिसंचय के पथ पर*, *सफल जीवन की दिशा धारा*, *मानसिक संतुलन* , *निराशा को पास न फटकने दें*
अपने जीवन लक्ष्यं को बनाओ और उस ओर अग्रसर हो। स्वयं को पत्र लिखकर स्वयं के भीतर चल रहे विचारो के तूफान को समझो और उसे शांत करो। स्वयं की चिकित्सा स्वयं करो। भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है।
एक बात और 🤩🤩🤩
केवल मरने के बाद ही लोग लाश पर अच्छे शब्द बोलते है😇
हमारी बुराई हो रही है तो इसका मतलब हम जिंदा है।😇
😇😇😇😇 तो ख़ुद तय कर लो जिंदा रहके बुराई सुनना है या मरकर दो अच्छे शब्द सुनना है😂😂😂😂😂😂😂
हम तो जिंदा रहकर बुराई के मजे ले रहे है। आप भी स्वयं की होती बुराई में ख़ुश हो। जो बुराई करते है वो वास्तव में हमारे प्रारब्ध को भोगते है। अपने लक्ष्य पर बढ़े चलो। शक्तिवान मन से और शरीर से बनो। नित्य जप-ध्यान-प्राणायाम करो, सोने से पूर्व उपरोक्त बताई पुस्तको का स्वाध्याय करो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
*बचपन मे मेरे माता-पिता जब मेरी तुलना अन्य बच्चों से करते थे, तो भी मैं दुःखी होती थी, लेकिन मैंने माता-पिता को जवाब नहीं दिया, कुछ वर्षो से डिप्रेशन की दवाई भी ले रही हूँ ।*
उत्तर - तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने से पहले एक घटना सुनाती हूँ, एक लड़की पानी से बहुत डरती थी। नदी-तलाब-समुद्र कहीं भी नहीं जाती। तब उसे एक मनोवैज्ञानिक के पास ले गए, तब हिप्नोटाइज़ करके पता लगाया कि बचपन में उसकी माँ उसे टब में नहला रही थी तभी कोई दरवाज़े पर आ गया वो उससे बातें करने लगी। और बच्ची पानी मे डूबने लगी बड़ी मुश्किल से टब को गिरा के वो स्वयं को बचाई जिसमें उसे चोट लग गई थी। अब यह घटना लड़की भूल गयी लेकिन डर मन मे बना रहा।
तब डॉक्टर उसे पुनः बाथरूम में बड़े टब में नर्स के साथ ले गया। टब में पानी भरवाया और बोला देखो अगर पानी भर भी गया तो तुम कभी डूबोगी नहीं क्योंकि तुम्हारे पैर और शरीर बड़ा हो गया है। तुम अब बलशाली हो। तब लड़की को अहसास हुआ और वो डर भाग गया। वो पानी से डरना बन्द कर दी।
तुम बचपन से एक घुटन में जीती आयी हो क्योंकि तुमने अपने कानों से सुना कि लोग जिनमे तुम्हारे अपने भी है तुम्हारी बुराई कर रहे हैं, दूसरे बच्चों से तुम्हारी तुलना कर रहे हैं। इससे तुम्हारे सम्वेदनशील हृदय में आघात लगा, क्योंकि तुमने अपने हिस्से की कोशिश करके सबको ख़ुश करने की कोशिश की थी। इसलिए ज्यादा दुःखी हुई। स्कूल कॉलेज में भी इसी परिस्थिति का सामना करने पर भी वहां भी उन्हें दो टूक जवाब न दे पाई।
तुमने उस दर्द और घुटन को बाहर आने नहीं दिया, और यह बात उनलोगों से न कह पाई कि मेरी तुलना किसी से मत करो। मैं जैसी हूँ मुझे वैसा स्वीकारो। मैं बेस्ट हूँ। कोई मेरी बुराई करे मुझे पसंद नहीं।
यह घुटन तुम्हें चुभती है, पुराने बुरे अनुभव नए रिश्तों और मित्रो के साथ सम्बन्ध में भी संदेह उतपन्न कर रहे हैं।
अब तुम क्योंकि गर्म दूध से जल गई हो इसलिए ठंडी छाछ को भी पीने से डर रही हो।
*जो भय और फ़ोबिया तुम्हारे भीतर है, इसे तुम्हें ही निकालना होगा। दवा डर को भुला देती है, डर को मिटाती नहीं*
दर्पण के सामने खड़ी होकर स्वयं को अच्छे से देखो
कुछ प्रश्न स्वयं से पूंछो -
1- क्या मैं अंधी हूँ?
2- क्या मैं लूली हूँ?
3- क्या मैं लँगड़ी हूँ?
4- क्या मैं बहरी हूँ?
5- शारीरक रूप से क्या मैं अपाहिज हूँ?
6- क्या मुझे पढ़ना-लिखना नहीं आता?
7- क्या मुझमे सोचने समझने की शक्ति नहीं?
यदि मैं शारीरिक रूप से सक्षम और मानसिक रूप से सोच समझ रखने वाली बुद्धि रखती हूं? तो फिर मैं दुःखी क्यों हूँ?
अगर कोई मुझे कुत्ता बोलेगा तो क्या मेरी पूंछ निकल आएगी और मैं कुत्ता बन जाऊंगी?
कोई मुझे गधा बोलेगा तो क्या मैं ढेंचू ढेंचू करने लगूंगी नहीं न...
फिर कोई मुझे कुछ भी कहे पीठ पीछे मेरा क्या जाता है।
मैं जो हूँ वो हूँ? मै संसार की सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हूँ। I m the best... This is my life... I will enjoy god gifted life...Today is my day...
तीन माला गायत्री जपते हुए स्वयं के भीतर गायत्री का आह्वान करो। बुद्धि-बल-धन की कामना करो।
जिस प्रकार कुत्ते के भौंकने से हाथी विचलित नहीं होता वैसे ही तुम भी किसी के कुछ भी सोचने/भोंकने से विचलित मत हो
अपने भीतर के डर से लड़ो, विजयी भव।
इसके लिए गुरुदेव की कुछ पुस्तके जैसे - *मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले*, *दृष्टिकोण ठीक रखें*, *शक्तिसंचय के पथ पर*, *सफल जीवन की दिशा धारा*, *मानसिक संतुलन* , *निराशा को पास न फटकने दें*
अपने जीवन लक्ष्यं को बनाओ और उस ओर अग्रसर हो। स्वयं को पत्र लिखकर स्वयं के भीतर चल रहे विचारो के तूफान को समझो और उसे शांत करो। स्वयं की चिकित्सा स्वयं करो। भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है।
एक बात और 🤩🤩🤩
केवल मरने के बाद ही लोग लाश पर अच्छे शब्द बोलते है😇
हमारी बुराई हो रही है तो इसका मतलब हम जिंदा है।😇
😇😇😇😇 तो ख़ुद तय कर लो जिंदा रहके बुराई सुनना है या मरकर दो अच्छे शब्द सुनना है😂😂😂😂😂😂😂
हम तो जिंदा रहकर बुराई के मजे ले रहे है। आप भी स्वयं की होती बुराई में ख़ुश हो। जो बुराई करते है वो वास्तव में हमारे प्रारब्ध को भोगते है। अपने लक्ष्य पर बढ़े चलो। शक्तिवान मन से और शरीर से बनो। नित्य जप-ध्यान-प्राणायाम करो, सोने से पूर्व उपरोक्त बताई पुस्तको का स्वाध्याय करो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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