प्रश्न - *मेरा प्रश्न है कि यदि कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी से बिना किसी बात के एक महिने से बात नहीं करे तो क्या करना चाहिए? ब्रह्मचर्य के साथ एकमासीय व्रत-उपवास ज़्यादा करना क्या मेरी गलती है?*
उत्तर - सबसे पहली बात कोई भी बेवजह नाराज़ नहीं होता। दूसरा हमें कभी अपनी ग़लती नज़र ही नहीं आती। अपना बच्चा और अपनी गलती सबको समझ नहीं आता।
एक दिन की बारिश में बाढ़ नहीं आती। जब उस व्यक्ति का धैर्य टूटा तो वो मौन हो गया। समझाने की आपको सारी कोशिशें उसकी नाक़ाम हो गयी। क्योंकि आज भी आप उस बात को समझ न सकी और प्रश्न में बेवज़ह शब्द का उपयोग किया।
एक कारण यह भी हो सकता है कि उनका उनकी मर्जी के ख़िलाफ़ आपसे विवाह हुआ और उनके मन मे कोई और है।
गृहस्थ एक जिम्मेदारी है, शारीरिक सम्बंध के साथ मानसिक मित्रता के सम्बंध आपके रिश्ते में नहीं है। जिसे पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है।
पति के हृदय का रास्ता पेट से होकर गुजरता है। अतः प्रेम-आत्मीयता से भोजन बनाइये, बलिवैश्व यज्ञ करके भोजन परसिये। घर मे प्रेम-सौहार्द का वातावरण रखिये।
आपकी गलती हो या न हो, पहले स्वयं क्षमा मांग के बातें शुरू कीजिए। बात की तह तक जासूस की तरह जाइये कि आख़िर इनके मन मे चल क्या रहा है। कहीं कोई ऑफिस का तो टेंशन नहीं जो मैं समझ नहीं पा रही।
मित्रता धीरे धीरे बढ़ाइए, गायत्री महाविज्ञान में वर्णित सौभाग्यशाली स्त्रियों वाली साधना कीजिये। शुक्रवार को खीर बनाकर बलिवैश्व यज्ञ कीजिये। गुरुवार व्रत रखिये। कोई भी व्रत में ब्रह्मचर्य मन से रखिये, शरीर शव मानिए। यदि यह शरीर पति के काम मे आ रहा है तो आने दीजिये।
सेक्स एक मानसिक पॉटी है, जब इसका प्रबल वेग हो और उस वक्त आप किसी को ज्ञान देंगी तो वो आपका विरोधी बन जायेगा। भले ही वो आपके पूजा करने जाते वक्त ही क्यों न हो? सेक्स की पॉटी पति की यदि आपने बाधित की तो घर मे कलह मचेगा ही।
आप सन्त की तरह पुनः स्नान करके स्वच्छ कपड़ो में पुजन हेतु चली जाए। दो बार नहा लो क्या फर्क पड़ता है।
विश्वास मानिए वो गायत्री परिवार के कार्य मे स्वतः हाथ बटायेंगे, यदि आप उन्हें उनके कार्य मे बाधा नहीं देंगी तो...
समझदार बनिये और गृहस्थ और अध्यात्म में संतुलन बनाइये। हम सुधरेगें तो ही रिश्ते सुधरेंगे, परिवार सुधरेगा। युग सुधरेगा। पति को सुधारने में अपना समय नष्ट मत कीजिये। स्वयं को सुधारने में समय शक्ति खर्च कीजिये।
अध्यात्म सन्तुलन का नाम है, एक नियम सब पर लागू नहीं होते। आपसे बढ़िया कोई और आपको मार्गदर्शित नहीं कर सकता। गायत्री शक्ति को जागृत कीजिये सब स्वतः ठीक हो जाएगा। बिना सहर्ष अनुमति पुनः कोई ब्रह्मचर्य व्रत एक मासीय धारण न करें। हिन्दू धर्म मे पति हो या पुत्र, पत्नी या मां से भिक्षा अर्थात उसकी अनुमति से तपस्या करने जाता था। इसी तरह चन्द्रायण व्रत में ब्रह्मचर्य की अनुमति पति से लिये बिना अपनी ज़िद में व्रत न करें।
सभी गृहस्थों के अंदर इतना आत्मबल-ब्रह्मबल नहीं होता कि वो एक झटके में अपने जीवनसाथी को साधक बना सकें। मूर्तिकार यदि पत्थर में एक बार मे हथौड़ा मारेगा तो मूर्ति टूट जाएगी। लेकिन यदि वो नित्य हल्के हाथों से थोड़ा थोड़ा हथौड़ा चलाएगा तो वही पत्थर सुंदर मूर्ति का रूप ग्रहण करेगा।
लड़का हो या लड़की, जिसका भी जीवनसाथी पति या पत्नी गायत्री परिवार का न हो उसे जबरजस्ती गायत्री परिवार से न जोड़े।
धैर्य के साथ उसकी मानसिकता पर शनैः शनैः प्रहार करें।मानसिकता तोड़ना आसान नहीं है, सबसे पहले साहित्य से हमें जीवनसाथी को जोड़ना चाहिए। उन्हें यह धीरे धीरे समझाने में सफलता हासिल करिये कि गायत्री परिवार एक आध्यात्मिक संस्था है। धार्मिक संस्था नहीं। जब अध्यात्म का वैज्ञानिक-तात्विक दर्शन समझ मे आएगा तो वो स्वतः साधना से जुड़ेगा। आधुनिकता और सांसारिकता की चकाचौंध से अध्यात्म के स्वर्गीय आनंद में धीरे धीरे प्रवेश करवाइये। नित्य स्वाध्याय से अध्यात्म में प्रवेश के बाद स्वतः आपका जीवनसाथी आधुनिकता और पाश्चात्य का नर्क त्याग देगा। तब आप दोनों खुशी खुशी साथ मे अध्यात्म मार्ग में एक मासीय व्रत करे। आप दोनों पुस्तक - *आध्यात्मिक काम विज्ञान* जरूर पढ़ें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - सबसे पहली बात कोई भी बेवजह नाराज़ नहीं होता। दूसरा हमें कभी अपनी ग़लती नज़र ही नहीं आती। अपना बच्चा और अपनी गलती सबको समझ नहीं आता।
एक दिन की बारिश में बाढ़ नहीं आती। जब उस व्यक्ति का धैर्य टूटा तो वो मौन हो गया। समझाने की आपको सारी कोशिशें उसकी नाक़ाम हो गयी। क्योंकि आज भी आप उस बात को समझ न सकी और प्रश्न में बेवज़ह शब्द का उपयोग किया।
एक कारण यह भी हो सकता है कि उनका उनकी मर्जी के ख़िलाफ़ आपसे विवाह हुआ और उनके मन मे कोई और है।
गृहस्थ एक जिम्मेदारी है, शारीरिक सम्बंध के साथ मानसिक मित्रता के सम्बंध आपके रिश्ते में नहीं है। जिसे पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है।
पति के हृदय का रास्ता पेट से होकर गुजरता है। अतः प्रेम-आत्मीयता से भोजन बनाइये, बलिवैश्व यज्ञ करके भोजन परसिये। घर मे प्रेम-सौहार्द का वातावरण रखिये।
आपकी गलती हो या न हो, पहले स्वयं क्षमा मांग के बातें शुरू कीजिए। बात की तह तक जासूस की तरह जाइये कि आख़िर इनके मन मे चल क्या रहा है। कहीं कोई ऑफिस का तो टेंशन नहीं जो मैं समझ नहीं पा रही।
मित्रता धीरे धीरे बढ़ाइए, गायत्री महाविज्ञान में वर्णित सौभाग्यशाली स्त्रियों वाली साधना कीजिये। शुक्रवार को खीर बनाकर बलिवैश्व यज्ञ कीजिये। गुरुवार व्रत रखिये। कोई भी व्रत में ब्रह्मचर्य मन से रखिये, शरीर शव मानिए। यदि यह शरीर पति के काम मे आ रहा है तो आने दीजिये।
सेक्स एक मानसिक पॉटी है, जब इसका प्रबल वेग हो और उस वक्त आप किसी को ज्ञान देंगी तो वो आपका विरोधी बन जायेगा। भले ही वो आपके पूजा करने जाते वक्त ही क्यों न हो? सेक्स की पॉटी पति की यदि आपने बाधित की तो घर मे कलह मचेगा ही।
आप सन्त की तरह पुनः स्नान करके स्वच्छ कपड़ो में पुजन हेतु चली जाए। दो बार नहा लो क्या फर्क पड़ता है।
विश्वास मानिए वो गायत्री परिवार के कार्य मे स्वतः हाथ बटायेंगे, यदि आप उन्हें उनके कार्य मे बाधा नहीं देंगी तो...
समझदार बनिये और गृहस्थ और अध्यात्म में संतुलन बनाइये। हम सुधरेगें तो ही रिश्ते सुधरेंगे, परिवार सुधरेगा। युग सुधरेगा। पति को सुधारने में अपना समय नष्ट मत कीजिये। स्वयं को सुधारने में समय शक्ति खर्च कीजिये।
अध्यात्म सन्तुलन का नाम है, एक नियम सब पर लागू नहीं होते। आपसे बढ़िया कोई और आपको मार्गदर्शित नहीं कर सकता। गायत्री शक्ति को जागृत कीजिये सब स्वतः ठीक हो जाएगा। बिना सहर्ष अनुमति पुनः कोई ब्रह्मचर्य व्रत एक मासीय धारण न करें। हिन्दू धर्म मे पति हो या पुत्र, पत्नी या मां से भिक्षा अर्थात उसकी अनुमति से तपस्या करने जाता था। इसी तरह चन्द्रायण व्रत में ब्रह्मचर्य की अनुमति पति से लिये बिना अपनी ज़िद में व्रत न करें।
सभी गृहस्थों के अंदर इतना आत्मबल-ब्रह्मबल नहीं होता कि वो एक झटके में अपने जीवनसाथी को साधक बना सकें। मूर्तिकार यदि पत्थर में एक बार मे हथौड़ा मारेगा तो मूर्ति टूट जाएगी। लेकिन यदि वो नित्य हल्के हाथों से थोड़ा थोड़ा हथौड़ा चलाएगा तो वही पत्थर सुंदर मूर्ति का रूप ग्रहण करेगा।
लड़का हो या लड़की, जिसका भी जीवनसाथी पति या पत्नी गायत्री परिवार का न हो उसे जबरजस्ती गायत्री परिवार से न जोड़े।
धैर्य के साथ उसकी मानसिकता पर शनैः शनैः प्रहार करें।मानसिकता तोड़ना आसान नहीं है, सबसे पहले साहित्य से हमें जीवनसाथी को जोड़ना चाहिए। उन्हें यह धीरे धीरे समझाने में सफलता हासिल करिये कि गायत्री परिवार एक आध्यात्मिक संस्था है। धार्मिक संस्था नहीं। जब अध्यात्म का वैज्ञानिक-तात्विक दर्शन समझ मे आएगा तो वो स्वतः साधना से जुड़ेगा। आधुनिकता और सांसारिकता की चकाचौंध से अध्यात्म के स्वर्गीय आनंद में धीरे धीरे प्रवेश करवाइये। नित्य स्वाध्याय से अध्यात्म में प्रवेश के बाद स्वतः आपका जीवनसाथी आधुनिकता और पाश्चात्य का नर्क त्याग देगा। तब आप दोनों खुशी खुशी साथ मे अध्यात्म मार्ग में एक मासीय व्रत करे। आप दोनों पुस्तक - *आध्यात्मिक काम विज्ञान* जरूर पढ़ें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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