Saturday, 26 May 2018

प्रश्न - *कृष्ण की बहन सुभद्रा और महारथी अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की अल्पायु में मृत्यु क्यो हुई? भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन के बेटे को मरने से क्यों नहीं बचाया?

प्रश्न - *कृष्ण की बहन सुभद्रा और महारथी अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की अल्पायु में मृत्यु क्यो हुई? भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन के बेटे को मरने से क्यों नहीं बचाया? सुदर्शन चक्र अभिमन्यु की रक्षार्थ क्यों नहीं भेजा, जबकि ब्रह्मास्त्र से अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र की रक्षा उत्तरा के गर्भ में किया? कृपया उत्तर बतायें*

उत्तर - सुभद्रा ने अपने भाई भगवान श्रीकृष्ण से महाभारत युद्ध के बाद पूँछा - हे केशव तुमने अर्जुन को अनेकों बार मौत से बचाया,अस्वस्थामा द्वारा चलाये ब्रह्मास्त्र से हमारे पौत्र परीक्षित की उत्तरा के गर्भ में तुमने रक्षा की। तुम्हारे बिना महाभारत युध्द जीतना असम्भव था, तो तुमने मेरे पुत्र अभिमन्यु को क्यों नहीं बचाया?

श्री कृष्ण ने जवाब दिया, मानता हूँ मैं नियंता विधाता हूँ। लेकिन मैं भी नियमो से बंधा हूँ। जब जब मैं अवतार लेता हूँ मेरे साथ समस्त देवी देवता या उनके पुत्र धर्म की रक्षा हेतु मेरा साथ देने जन्म लेते हैं। चन्द्रमा के पुत्र वर्चा को भी धरती पर मेरे साथ जन्म लेना था। लेकिन वो पुत्रमोह में अपने महापराक्रमी पुत्र वर्चा को को महाभारत के भीषण युद्ध हेतु भेजने को तैयार नहीं हो रहे थे। लेकिन देवताओं के आग्रह और कर्तव्य के कारण भेजने से पूर्व एक शर्त रखी। जैसे ही पुत्र का महाभारत युद्ध मे कार्य खत्म हो जाये तो उसे वापस हमारे पास भेज दिया जाय। साथ ही उसके पुत्र को कौरव वंश का उत्तराधिकारी बनाया जाय। मुझ नियंता ने यह स्वीकार लिया। चक्रव्यूह तोड़ने के बाद अभिमन्यु का कार्यक्षेत्र सम्पन्न हो चुका था, शर्तानुसार उसे वापस चन्द्रमा के पास जाना था, वर्चा भी वापस चन्द्रमा के पास जाना चाहते थे। अतः मैं चाहकर भी उसे नियमो के बंधन के कारण न रोक सका। क्योंकि परीक्षित की आत्मा की जीवन यात्रा शेष थी। इसलिए उसे मैं बचा सकता था।

मैं नियंता उसी आत्मा की रक्षा करके जान बचा सकता हूँ जो आत्मा धरती पर रहना चाहती है।  इसलिए जब दिव्यात्मायें मेरे  लिए मेरे कार्यहेतु जन्म लेती है, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करके, अल्पायु में विभिन्न दुर्घटनाओं में या बीमारियों में चले जाते हैं। दुर्घटना या बीमारी भी पूर्वजन्मों के कुछ लेखा जोखा को ही कम्प्लीट करती है।

जैसे बहन मैं अपनी मृत्यु के लिए बलि की आत्मा का आह्वान करूंगा, क्योंकि श्रीराम अवतार में मैंने उसे छिपकर बालि रूप में मारा था। मेरा कार्य इस धरती पर समाप्त होते ही वो मुझे विषबुझा तीर मारेगा जिससे मेरी मृत्यु होगी।

सुभद्रा की शंका का समाधान हुआ।

अब हम सब स्वयं की समझते है हम सब भी परमपूज्य गुरुदेव का युगनिर्माण में साथ देने आए हैं। जब जिसका कार्य और दी हुई जिम्मेदारी समाप्त होगी हम सब एक एक करके अपने लोको में चले जायेंगे। जहां से आये है वहां चले जायेंगे। जिंदगी के रंगमंच में कितने मिनट, कितने घण्टों और कितने वर्षों का रोल मिला है बस उस रोल को बेहतर करके इस संसार से विदा लेना होगा।

कोई अल्पायु में छोड़कर हमारे बीच से जाए तो समझ लेना, रंगमंच में उसका रोल/अभिनय खत्म हो गया और अब पर्दा गिर गया और वो अपने घर विश्राम हेतु गया, जहाँ से आया था वहां गया। उसके जाने के बाद उसके बेहतरीन रोल के लिए या तो तालियाँ बजेगी या अच्छा रोल न करने पर जमाने से गालियां पड़ेंगी। रोल/अभिनय/कर्म करने वाला तो गया, अब जमाना उसके रोल/कर्म/अभिनय को ही याद रखेगा।

आत्मा अनन्त यात्री है, एक फ़िल्म/नाटक पूरी होने पर, दूसरी फिल्म/नाटक जब विधाता देगा पुनः ज्वाइन करेगा और अपना बेस्ट अभिनय करेगा।

https://youtu.be/yEeoVA4ePHM

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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