प्रश्न - *दी, क्या भाग्य पर भरोसा करना चाहिए? या कर्म पर भरोसा करना चाहिए? भाग्य जरूरी है या नहीं? मार्गदर्शन करें*
उत्तर - आपके प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व आपको एक इसी सम्बन्धित कहानी सुनाती हूँ। ध्यान से सुनिए और समझिए..
एक राजा ने पुत्र के जन्म पर भोज का आयोजन किया और पूरे राज्य को निमंत्रण दिया।
सभी जनता के साथ उसके राज्य का सबसे बड़ा सज्जन पुरुष और सबसे कमीना दुर्जन पुरुष भी सम्मिलित हुए। राजा ख़ुशी में खज़ाना लुटा रहा था और संयोग और सौभाग्य वश सबसे बहुमूल्य करोड़ो अरबो का हीरा दुर्जन पुरुष को मिला, और संयोग और दुर्भाग्य से एक कार्यकर्ता जो की हीरे जवाहरात ढो रहा था उसकी थाल पैनी थी उसकी असवाधानी से बुरी तरह सर पर चोट सज्जन पुरुष को लगी और रक्त की धारा फूट पड़ी।
सारी भीड़ इकट्ठा होकर भगवान को दोष देने लगी। कि भगवान के घर अंधेर ही अंधेर है, सज्जन का सर फूटता है और दुर्जन मालामाल बनता है।
महाराज ने सबको शांत किया और राजज्योतिषी को बुलाया और उनके ऐसे भाग्य की जांच पड़ताल करने को कहा। राजज्योतिषी ने गणित ज्योतिष से उनके पूर्व जन्म का लेखा जोखा लेकर सबको उनके ऐसे भाग्य परिणीति के बारे में बताया।
सज्जन पुरुष पिछ्ले जन्म में कसाई था, लेकिन वो उस कसाई के काम से दुःखी रहता था। वो सज्जनों की तरह लोकसेवा करना चाहता था। इसलिए जब उसकी मृत्यु हुई तो इच्छा और सद्भावना के कारण इस जन्म में वो सज्जन के घर जन्मा, और लोकसेवा में अपना जीवन लगा दिया। पूर्व जन्म के कसाई रूप में जीवहत्या के कर्म के कारण कर्मफलनुसार(भाग्य) आज के दिन इसे मृत्युदण्ड मिलना निश्चित था। लेकिन इस जन्म में लोकसेवा और अच्छे कर्म के फल ने इसके मृत्युदण्ड के फ़ल को अत्यंत छोटा कर दिया। मात्र सर पर चोट और रक्त बहने से मृत्युदण्ड टल गया।
दुर्जन पुरुष पिछ्ले जन्म में पंडिताई करता था, लेकिन वो उस पंडिताई और लोकसेवा कार्यो से कम कमाई से दुःखी रहता था। वो किसी न किसी प्रकार से ज्यादा धन कमाना चाहता था। इसलिए जब उसकी मृत्यु हुई तो येनकेन प्रकारेण धन अर्जन करने इच्छा के कारण इस जन्म में वो दुर्जन के घर जन्मा, और ठगी और दुष्टकर्मो से धन अर्जन में अपना जीवन लगा दिया। पूर्व जन्म के पण्डित के रूप में लोकसेवा के कर्म के कारण कर्मफलनुसार(भाग्य) आज के दिन इसे धनधान्य और प्रजा से भरा राज्य मिलना निश्चित था, राजयोग था। लेकिन इस जन्म में ठगी और बुरे कर्म के फल ने इसके राजयोग के फ़ल को अत्यंत छोटा कर दिया। मात्र बहुमूल्य रत्न हीरा की ख़ुशी देकर वो राजयोग टल गया।
इस कहानी से आप समझ गए होंगे इस जन्म का भाग्य या प्रारब्ध पिछले जन्म का कर्मफ़ल होता है, जिसे इस जन्म के कर्मफ़ल से प्रभावित करके घटाया और बढ़ाया जा सकता है। टाला जा सकता है और नष्ट किया जा सकता है। अतः इससे सिद्ध होता है कि *भाग्य का निर्माण अपने हाथ में है।*
सफलता की देवी का प्रसन्न करने के लिए पुरुषार्थ की भेंट चढ़ानी पड़ती है। जो मनुष्य पुरुषार्थी नहीं है, प्रयत्न और परिश्रम में दृढ़ता नहीं रखता वह स्थायी सफलता का अधिकारी नहीं हो सकता। यदि अनायास किसी प्रकार कोई सम्पत्ति उसे प्राप्त हो भी जाय तो वह उससे संतोषजनक लाभ नहीं उठा सकता। वह ऐसे ही अनायास चली जाती है जैसे कि अनायास आई थी।
रोटी का स्वाद वह जानता है जिसने परिश्रम करने के पश्चात् क्षुधार्त होकर ग्रास तोड़ा हो। धन का उपयोग वह जानता है जिसने पसीना बहाकर कमाया हो। सफलता का मूल्याँकन वही कर सकता है जिसने अनेकों कठिनाइयों, बाधाओं और असफलताओं से संघर्ष किया हो। जो विपरीत परिस्थितियों और बाधाओं के बीच मुस्कराते रहना और हर असफलता के बाद दूने उत्साह से आगे बढ़ना जानता है। वस्तुतः वही विजयलक्ष्मी का अधिकारी होता है।
जो लोग सफलता के मार्ग में होने वाले विलम्ब की धैयपूर्वक प्रतीक्षा नहीं कर सकते, जो लोग अभीष्ट प्राप्ति के पथ में आने वाली बाधाओं से लड़ना नहीं जानते वे अपनी अयोग्यता और ओछेपन को बेचारे भाग्य के ऊपर थोप कर स्वयं निर्दोष बनने का उपहासास्पद प्रयत्न करते हैं। ऐसी आत्म वंचना से लाभ कुछ नहीं हानि अपार है। सबसे बड़ी हानि यह है कि अपने को अभागा मानने वाला मनुष्य आशा के प्रकाश से हाथ धो बैठता है और निराशा के अन्धकार में भटकते रहने के कारण इष्ट प्राप्ति से कोसों पीछे रह जाता है।
*ज्योतिषी केवल अतीत बता सकता है, भविष्य निर्धारित नहीं कर सकता। क्योंकि भविष्य का निर्माता मनुष्य स्वयं है, वो बुद्धिबल, आत्मविश्वास, साधना और अथक परिश्रम से अपने भविष्य का मनचाहा निर्माण कर सकता है।*
Reference - अखण्डज्योति , सितम्बर 1949
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आपके प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व आपको एक इसी सम्बन्धित कहानी सुनाती हूँ। ध्यान से सुनिए और समझिए..
एक राजा ने पुत्र के जन्म पर भोज का आयोजन किया और पूरे राज्य को निमंत्रण दिया।
सभी जनता के साथ उसके राज्य का सबसे बड़ा सज्जन पुरुष और सबसे कमीना दुर्जन पुरुष भी सम्मिलित हुए। राजा ख़ुशी में खज़ाना लुटा रहा था और संयोग और सौभाग्य वश सबसे बहुमूल्य करोड़ो अरबो का हीरा दुर्जन पुरुष को मिला, और संयोग और दुर्भाग्य से एक कार्यकर्ता जो की हीरे जवाहरात ढो रहा था उसकी थाल पैनी थी उसकी असवाधानी से बुरी तरह सर पर चोट सज्जन पुरुष को लगी और रक्त की धारा फूट पड़ी।
सारी भीड़ इकट्ठा होकर भगवान को दोष देने लगी। कि भगवान के घर अंधेर ही अंधेर है, सज्जन का सर फूटता है और दुर्जन मालामाल बनता है।
महाराज ने सबको शांत किया और राजज्योतिषी को बुलाया और उनके ऐसे भाग्य की जांच पड़ताल करने को कहा। राजज्योतिषी ने गणित ज्योतिष से उनके पूर्व जन्म का लेखा जोखा लेकर सबको उनके ऐसे भाग्य परिणीति के बारे में बताया।
सज्जन पुरुष पिछ्ले जन्म में कसाई था, लेकिन वो उस कसाई के काम से दुःखी रहता था। वो सज्जनों की तरह लोकसेवा करना चाहता था। इसलिए जब उसकी मृत्यु हुई तो इच्छा और सद्भावना के कारण इस जन्म में वो सज्जन के घर जन्मा, और लोकसेवा में अपना जीवन लगा दिया। पूर्व जन्म के कसाई रूप में जीवहत्या के कर्म के कारण कर्मफलनुसार(भाग्य) आज के दिन इसे मृत्युदण्ड मिलना निश्चित था। लेकिन इस जन्म में लोकसेवा और अच्छे कर्म के फल ने इसके मृत्युदण्ड के फ़ल को अत्यंत छोटा कर दिया। मात्र सर पर चोट और रक्त बहने से मृत्युदण्ड टल गया।
दुर्जन पुरुष पिछ्ले जन्म में पंडिताई करता था, लेकिन वो उस पंडिताई और लोकसेवा कार्यो से कम कमाई से दुःखी रहता था। वो किसी न किसी प्रकार से ज्यादा धन कमाना चाहता था। इसलिए जब उसकी मृत्यु हुई तो येनकेन प्रकारेण धन अर्जन करने इच्छा के कारण इस जन्म में वो दुर्जन के घर जन्मा, और ठगी और दुष्टकर्मो से धन अर्जन में अपना जीवन लगा दिया। पूर्व जन्म के पण्डित के रूप में लोकसेवा के कर्म के कारण कर्मफलनुसार(भाग्य) आज के दिन इसे धनधान्य और प्रजा से भरा राज्य मिलना निश्चित था, राजयोग था। लेकिन इस जन्म में ठगी और बुरे कर्म के फल ने इसके राजयोग के फ़ल को अत्यंत छोटा कर दिया। मात्र बहुमूल्य रत्न हीरा की ख़ुशी देकर वो राजयोग टल गया।
इस कहानी से आप समझ गए होंगे इस जन्म का भाग्य या प्रारब्ध पिछले जन्म का कर्मफ़ल होता है, जिसे इस जन्म के कर्मफ़ल से प्रभावित करके घटाया और बढ़ाया जा सकता है। टाला जा सकता है और नष्ट किया जा सकता है। अतः इससे सिद्ध होता है कि *भाग्य का निर्माण अपने हाथ में है।*
सफलता की देवी का प्रसन्न करने के लिए पुरुषार्थ की भेंट चढ़ानी पड़ती है। जो मनुष्य पुरुषार्थी नहीं है, प्रयत्न और परिश्रम में दृढ़ता नहीं रखता वह स्थायी सफलता का अधिकारी नहीं हो सकता। यदि अनायास किसी प्रकार कोई सम्पत्ति उसे प्राप्त हो भी जाय तो वह उससे संतोषजनक लाभ नहीं उठा सकता। वह ऐसे ही अनायास चली जाती है जैसे कि अनायास आई थी।
रोटी का स्वाद वह जानता है जिसने परिश्रम करने के पश्चात् क्षुधार्त होकर ग्रास तोड़ा हो। धन का उपयोग वह जानता है जिसने पसीना बहाकर कमाया हो। सफलता का मूल्याँकन वही कर सकता है जिसने अनेकों कठिनाइयों, बाधाओं और असफलताओं से संघर्ष किया हो। जो विपरीत परिस्थितियों और बाधाओं के बीच मुस्कराते रहना और हर असफलता के बाद दूने उत्साह से आगे बढ़ना जानता है। वस्तुतः वही विजयलक्ष्मी का अधिकारी होता है।
जो लोग सफलता के मार्ग में होने वाले विलम्ब की धैयपूर्वक प्रतीक्षा नहीं कर सकते, जो लोग अभीष्ट प्राप्ति के पथ में आने वाली बाधाओं से लड़ना नहीं जानते वे अपनी अयोग्यता और ओछेपन को बेचारे भाग्य के ऊपर थोप कर स्वयं निर्दोष बनने का उपहासास्पद प्रयत्न करते हैं। ऐसी आत्म वंचना से लाभ कुछ नहीं हानि अपार है। सबसे बड़ी हानि यह है कि अपने को अभागा मानने वाला मनुष्य आशा के प्रकाश से हाथ धो बैठता है और निराशा के अन्धकार में भटकते रहने के कारण इष्ट प्राप्ति से कोसों पीछे रह जाता है।
*ज्योतिषी केवल अतीत बता सकता है, भविष्य निर्धारित नहीं कर सकता। क्योंकि भविष्य का निर्माता मनुष्य स्वयं है, वो बुद्धिबल, आत्मविश्वास, साधना और अथक परिश्रम से अपने भविष्य का मनचाहा निर्माण कर सकता है।*
Reference - अखण्डज्योति , सितम्बर 1949
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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