प्रश्न- *सद्गुरु धारण किये बिना क्या उच्चस्तरीय साधनाएँ की जा सकती हैं?*
उत्तर - उच्च स्तरीय साधनाये अर्थात अर्थात अन्तःकरण के समुद्र का मंथन जिसमें रिद्धि सिद्धि मिलना और कोषों का जागरण होता है। नित्य उपासना द्वारा सवा लाख के तीन अनुष्ठान किये बिना उच्च स्तरीय साधनाये पहली बात try करनी ही नहीं चाहिए। कच्चे मटके में जल भरोगे तो टूट जाएगा। कच्चे शरीर में साधना करोगे तो शरीर शक्तियां सम्हाल न सकेगा।
सद्गुरु शिवस्वरूप होते हैं, जिस प्रकार समुद्र मंथन के समय पहले हलाहल विष निकला था, वैसे ही अन्तः मंथन में भी विषाक्त भावनाएं कामनाएं निकलती है साथ ही यदि इन्हें नहीं हैंडल किया गया तो कालनेमि के प्रभाव में साधक स्वयं को ही विषाक्त बना लेता है। बुद्धि भ्रम में पड़कर कपोल कल्पना में कुछ शारीरिक स्पंदन को ही अनुभूति को ही अमृत समझने की भूल कर बैठता है। केवल सद्गुरु ही यह मायाजाल काट सकता है जिसने कम से कम 24 लाख के नौ गायत्री अनुष्ठान महापुरुश्चरण किये हों। साधक की विषाक्त कामनाओं और वासनाओ का शमन कर सकता है, बुद्धि को शुद्ध करके साधना के सही मार्ग में पुनः स्थापित कर सकता है। कोष के जागरण के बाद लुटेरे राक्षस/पिशाच भी आते है ख़ज़ाने की शक्तियां लूटने। उस वक्त केवल सद्गुरु ही संरक्षण देता है। इसलिए कोषों का जागरण केवल आश्रम में करना चाहिए जो मन्त्र शक्ति से कीलित और सुरक्षित है। ऐसे सद्गुरु के संरक्षण में करना चाहिए जो सर्वसमर्थ हो।
चन्द्रायण साधनाएं और सवा लाख का जप उच्चस्तरीय साधनाओ हेतु मन और शरीर को पकाता है। साथ ही इस चन्द्रायण साधना से मानसिक मल और शारीरिक सफ़ाई होती है।
उच्चस्तरीय साधनाओं को करने के इच्छुक साधक गणों को उच्चस्तरीय साधनाओ हेतु शरीर तैयार करने के लिए कम से कम 3 पूर्ण चन्द्रायण सवा लाख जप विधिविधान के साथ करना चाहिए।🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - उच्च स्तरीय साधनाये अर्थात अर्थात अन्तःकरण के समुद्र का मंथन जिसमें रिद्धि सिद्धि मिलना और कोषों का जागरण होता है। नित्य उपासना द्वारा सवा लाख के तीन अनुष्ठान किये बिना उच्च स्तरीय साधनाये पहली बात try करनी ही नहीं चाहिए। कच्चे मटके में जल भरोगे तो टूट जाएगा। कच्चे शरीर में साधना करोगे तो शरीर शक्तियां सम्हाल न सकेगा।
सद्गुरु शिवस्वरूप होते हैं, जिस प्रकार समुद्र मंथन के समय पहले हलाहल विष निकला था, वैसे ही अन्तः मंथन में भी विषाक्त भावनाएं कामनाएं निकलती है साथ ही यदि इन्हें नहीं हैंडल किया गया तो कालनेमि के प्रभाव में साधक स्वयं को ही विषाक्त बना लेता है। बुद्धि भ्रम में पड़कर कपोल कल्पना में कुछ शारीरिक स्पंदन को ही अनुभूति को ही अमृत समझने की भूल कर बैठता है। केवल सद्गुरु ही यह मायाजाल काट सकता है जिसने कम से कम 24 लाख के नौ गायत्री अनुष्ठान महापुरुश्चरण किये हों। साधक की विषाक्त कामनाओं और वासनाओ का शमन कर सकता है, बुद्धि को शुद्ध करके साधना के सही मार्ग में पुनः स्थापित कर सकता है। कोष के जागरण के बाद लुटेरे राक्षस/पिशाच भी आते है ख़ज़ाने की शक्तियां लूटने। उस वक्त केवल सद्गुरु ही संरक्षण देता है। इसलिए कोषों का जागरण केवल आश्रम में करना चाहिए जो मन्त्र शक्ति से कीलित और सुरक्षित है। ऐसे सद्गुरु के संरक्षण में करना चाहिए जो सर्वसमर्थ हो।
चन्द्रायण साधनाएं और सवा लाख का जप उच्चस्तरीय साधनाओ हेतु मन और शरीर को पकाता है। साथ ही इस चन्द्रायण साधना से मानसिक मल और शारीरिक सफ़ाई होती है।
उच्चस्तरीय साधनाओं को करने के इच्छुक साधक गणों को उच्चस्तरीय साधनाओ हेतु शरीर तैयार करने के लिए कम से कम 3 पूर्ण चन्द्रायण सवा लाख जप विधिविधान के साथ करना चाहिए।🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment