प्रश्न - *दी प्रणाम! किसी क्रोधी व् अहंकारी व्यक्ति से जो किसी की न सुने उससे कैसे डील किया जाये,कृपया बताइये*
उत्तर - क्रोध और अहंकार भावनात्मक दृष्टिहीन और भावनात्मक मूक बधिर बना देता है। मन के समस्त द्वार बंद कर देता है। दूसरे की बात, भाव सम्वेदना, दूसरे का दर्द या तकलीफ़ कुछ भी उस तक नहीं पहुंचता। आंख होते हुए भी सही देख नहीं सकता और कान होते हुए सही सुन नहीं सकता।
क्रोध जब आता है, तो इंसान मल-मूत्र के प्रेशर की तरह महसूस करता है। तो बाथरूम यानि अपने से कमज़ोर व्यक्ति की तलाश करता है, जिस पर वह अपने मानसिक मल को निकाल कर हल्का हो सके।
मल-मूत्र हम कहीं भी नहीं करते उसी तरह क्रोधी व्यक्ति अपने बॉस या व्यवसाय या कस्टमर के लिए उतपन्न क्रोध घर लाता है, और अपने से कमज़ोर पत्नी-बच्चो और अन्य परिवार वालो पर निकालता है। वही सास या वही बहु क्रमशः अपनी बहू या सास को कष्ट दे पाती है जिसके मन मे मानसिक मल-मूत्र का भंडार हो। जिनके मन साफ और हृदय निर्मल होगा वो तो सिर्फ प्यार और खुशी ही बांट सकेगा।
जिस प्रकार मल-मूत्र के प्रेशर आये हुए व्यक्ति को आप बिठाकर ज्ञान नहीं दे सकते तब तक जब तक वो हल्का न हो जाये, उसी तरह क्रोधी व्यक्ति को ज्ञान नहीं दे सकते जब तक वो हल्का न हो जाये। तो क्रोध का जब प्रचण्ड आवेग हो उस वक्त मौन होकर उसके मानसिक मल के निष्कासन में व्यवधान न डालें। कोई व्यक्ति 24 घण्टे बाथरूम में नहीं रह सकता, उसी तरह कोई व्यक्ति 24 घण्टे क्रोध में नहीं रह सकता। जब पेट खराब हो तो आप उसका इलाज करते हैं उसी तरह मन खराब है तो आपको उसके इलाज की व्यवस्था सोचनी पड़ेगी।
इलाज तो आप तब कर पाएंगे जब वो इलाज लेने को तैयार हो। यदि वो कुछ सुनने समझने को तैयार नहीं तो उसका एकमात्र इलाज यज्ञ की धूम्र और गायत्री मंत्र की ध्वनि तरंग से सम्भव है। घर मे 40 दिनतक नित्य यज्ञ उस व्यक्ति के लिए कीजिये वो सम्मिलित हो या न हो, यज्ञ का धूम्र प्रत्येक कमरे में स्वतः पहुंच जाएगा। यज्ञ पूर्णाहुति के बाद हवनकुंड को सभी कमरों में घुमा दें और कलश के जल से शांतिपाठ कर दें। नित्य बलिवैश्व यज्ञ करें, साधना के बाद सूर्य भगवान को जल चढाकर बचे हुए जल से आटा गूंध कर रोटियां बनाये ।
गायत्री मंत्र बॉक्स बिल्कुल धीमे स्वर में पूजन गृह में बजा दें, आजकल व्हाट्सएप ग्रुप का जमाना है उनसे अनुरोध करके किसी गायत्री परिवार के ग्रुप में उन्हें जोड़ दें। उनके मोबाइल में रोज सुबह एक अच्छा विचार भेज दें।
एक डॉक्टर की तरह उनकी मानसिक पेट खराब होने का इलाज करें, आसपास शक्तिपीठ में यज्ञ आयोजन में साथ चलने हेतु अनुरोध करें।
उनके अहंकार में चोट न मारें, बल्कि उसी अहंकार को अपनी शक्ति बना लें। प्रसंशा कर करके उनसे गुरु कार्य करवाएं। भूलकर भी उन्हें डायरेक्ट ज्ञान देने की गलती न करें।
उनके लिए 24 हज़ार का गायत्री मंत्र अनुष्ठान कर दीजिए या 5 पुस्तिका मन्त्रलेखन कर दीजिए। धीरे धीरे उनके व्यवहार में परिवर्तन आएगा और सब ठीक हो जाएगा। क्रोध और अहंकार मानसिक बीमारी है और व्यक्तित्व की कमज़ोरी है। यदि ध्यान-स्वाध्याय और जप के लिए उन्हें प्रेरित कर सकेंगी तो बहुत अच्छा रहेगा। ज्यों ज्यों अच्छे विचारों की खुराक उनके मन मष्तिष्क में पहुंचेगी त्यों त्यों वो शांत होते चले जायेंगे। इस मनोविकार के इलाज में धैर्य और साहस का परिचय दें। उनके कारण आपके भीतर क्रोध उतपन्न नहीं होना चाहिए। क्योंकि क्रोधाग्नि में शांति का जल चाहिए, कटुवचन का बारूद नहीं।
आप स्वयं जप-स्वाध्याय-ध्यान नित्य स्वयं कीजिये और अपने मजबूत मन से उनका इलाज कीजिये। स्वयं को बुद्ध की तरह शांत करते जाइये, अंगुलिमाल की तरह क्रोधी भी आपके सम्पर्क में अहिंसक बनता चला जायेगा।
निम्नलिखित पुस्तकों का स्वाध्याय कीजिये:-
1- गृहस्थ एक तपोवन
2- मानसिक संतुलन
3- शक्तिसंचय के पथ पर
4- आगे बढ़ने की तैयारी
5- निराशा को पास न फटकने दें
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - क्रोध और अहंकार भावनात्मक दृष्टिहीन और भावनात्मक मूक बधिर बना देता है। मन के समस्त द्वार बंद कर देता है। दूसरे की बात, भाव सम्वेदना, दूसरे का दर्द या तकलीफ़ कुछ भी उस तक नहीं पहुंचता। आंख होते हुए भी सही देख नहीं सकता और कान होते हुए सही सुन नहीं सकता।
क्रोध जब आता है, तो इंसान मल-मूत्र के प्रेशर की तरह महसूस करता है। तो बाथरूम यानि अपने से कमज़ोर व्यक्ति की तलाश करता है, जिस पर वह अपने मानसिक मल को निकाल कर हल्का हो सके।
मल-मूत्र हम कहीं भी नहीं करते उसी तरह क्रोधी व्यक्ति अपने बॉस या व्यवसाय या कस्टमर के लिए उतपन्न क्रोध घर लाता है, और अपने से कमज़ोर पत्नी-बच्चो और अन्य परिवार वालो पर निकालता है। वही सास या वही बहु क्रमशः अपनी बहू या सास को कष्ट दे पाती है जिसके मन मे मानसिक मल-मूत्र का भंडार हो। जिनके मन साफ और हृदय निर्मल होगा वो तो सिर्फ प्यार और खुशी ही बांट सकेगा।
जिस प्रकार मल-मूत्र के प्रेशर आये हुए व्यक्ति को आप बिठाकर ज्ञान नहीं दे सकते तब तक जब तक वो हल्का न हो जाये, उसी तरह क्रोधी व्यक्ति को ज्ञान नहीं दे सकते जब तक वो हल्का न हो जाये। तो क्रोध का जब प्रचण्ड आवेग हो उस वक्त मौन होकर उसके मानसिक मल के निष्कासन में व्यवधान न डालें। कोई व्यक्ति 24 घण्टे बाथरूम में नहीं रह सकता, उसी तरह कोई व्यक्ति 24 घण्टे क्रोध में नहीं रह सकता। जब पेट खराब हो तो आप उसका इलाज करते हैं उसी तरह मन खराब है तो आपको उसके इलाज की व्यवस्था सोचनी पड़ेगी।
इलाज तो आप तब कर पाएंगे जब वो इलाज लेने को तैयार हो। यदि वो कुछ सुनने समझने को तैयार नहीं तो उसका एकमात्र इलाज यज्ञ की धूम्र और गायत्री मंत्र की ध्वनि तरंग से सम्भव है। घर मे 40 दिनतक नित्य यज्ञ उस व्यक्ति के लिए कीजिये वो सम्मिलित हो या न हो, यज्ञ का धूम्र प्रत्येक कमरे में स्वतः पहुंच जाएगा। यज्ञ पूर्णाहुति के बाद हवनकुंड को सभी कमरों में घुमा दें और कलश के जल से शांतिपाठ कर दें। नित्य बलिवैश्व यज्ञ करें, साधना के बाद सूर्य भगवान को जल चढाकर बचे हुए जल से आटा गूंध कर रोटियां बनाये ।
गायत्री मंत्र बॉक्स बिल्कुल धीमे स्वर में पूजन गृह में बजा दें, आजकल व्हाट्सएप ग्रुप का जमाना है उनसे अनुरोध करके किसी गायत्री परिवार के ग्रुप में उन्हें जोड़ दें। उनके मोबाइल में रोज सुबह एक अच्छा विचार भेज दें।
एक डॉक्टर की तरह उनकी मानसिक पेट खराब होने का इलाज करें, आसपास शक्तिपीठ में यज्ञ आयोजन में साथ चलने हेतु अनुरोध करें।
उनके अहंकार में चोट न मारें, बल्कि उसी अहंकार को अपनी शक्ति बना लें। प्रसंशा कर करके उनसे गुरु कार्य करवाएं। भूलकर भी उन्हें डायरेक्ट ज्ञान देने की गलती न करें।
उनके लिए 24 हज़ार का गायत्री मंत्र अनुष्ठान कर दीजिए या 5 पुस्तिका मन्त्रलेखन कर दीजिए। धीरे धीरे उनके व्यवहार में परिवर्तन आएगा और सब ठीक हो जाएगा। क्रोध और अहंकार मानसिक बीमारी है और व्यक्तित्व की कमज़ोरी है। यदि ध्यान-स्वाध्याय और जप के लिए उन्हें प्रेरित कर सकेंगी तो बहुत अच्छा रहेगा। ज्यों ज्यों अच्छे विचारों की खुराक उनके मन मष्तिष्क में पहुंचेगी त्यों त्यों वो शांत होते चले जायेंगे। इस मनोविकार के इलाज में धैर्य और साहस का परिचय दें। उनके कारण आपके भीतर क्रोध उतपन्न नहीं होना चाहिए। क्योंकि क्रोधाग्नि में शांति का जल चाहिए, कटुवचन का बारूद नहीं।
आप स्वयं जप-स्वाध्याय-ध्यान नित्य स्वयं कीजिये और अपने मजबूत मन से उनका इलाज कीजिये। स्वयं को बुद्ध की तरह शांत करते जाइये, अंगुलिमाल की तरह क्रोधी भी आपके सम्पर्क में अहिंसक बनता चला जायेगा।
निम्नलिखित पुस्तकों का स्वाध्याय कीजिये:-
1- गृहस्थ एक तपोवन
2- मानसिक संतुलन
3- शक्तिसंचय के पथ पर
4- आगे बढ़ने की तैयारी
5- निराशा को पास न फटकने दें
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment