Thursday, 24 May 2018

कविता - *सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान*

*सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान*

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान,
जिस दिन से बनाया उसने इंसान,
छोटी छोटी सी बातों के लिए भी,
इंसान करता रहता था उन्हें परेशान।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान....

देवताओं की सभा बुलाई गई,
इंसानों से उपजी समस्या बताई गई,
पूँछा, कहाँ छुपे परमात्मा,
जहां इंसान उसे आसानी से ढूंढ न सके भाई।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान....

किसी ने ऊंची पहाड़ियां सुझाई,
किसी ने गहरे समुद्र की राह दिखाई,
परमात्मा ने कहा,
यहाँ तो इंसान,
कभी न कभी पहुंच जाएगा भाई।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान....

ग्रह नक्षत्रों तक भी,
इंसान पहुंचेगा भाई,
टेक्नोलॉजी और बुद्धिबल से,
कभी न कभी,
सर्वत्र पहुंचना आसान करेगा भाई।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान...

मनुष्य के हृदय में रहने की,
गुरुवृहस्पति ने युक्ति सुझाई,
परमात्मा को यह युक्ति,
बहुत ही ज्यादा पसन्द आई।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान..

तबसे मनुष्य सब जगह,
परमात्मा को ढूंढता है,
लेकिन हृदय के भीतर,
कभी नहीं झाँकता है,
कोई बिरला ही,
परमात्मा को ढूंढ पाता है,
जो अंतर्जगत में डूबकर
उस तक पहुंच पाता है।

सृष्टि का रचयिता हुआ परेशान...

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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