Thursday, 24 May 2018

प्रश्न - *वेदमाता गायत्री का जो चित्र हम पूजा उपासना में प्रयुक्त करते है, उसका उद्गम एवं इतिहास प्रमाणिकता के साथ बताइये।*

प्रश्न - *वेदमाता गायत्री का जो चित्र हम पूजा उपासना में प्रयुक्त करते है, उसका उद्गम एवं इतिहास प्रमाणिकता के साथ बताइये।*

उत्तर - परम् पूज्य गुरुदेव वेदमूर्ति तपोनिष्ठ युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी मन्त्र दृष्टा और अध्यात्मक वैज्ञानिक थे।

देवी देवताओं की जो आप दुनियाँ भर में मूर्ति देखते हो, वो भक्त द्वारा सोची या देखी या कल्पना की हुई प्रतिमाएं है। उदाहरण साउथ में तिरुपति बालाजी की मूर्ति, बंगाल में मां काली की मूर्ति, उड़ीसा में जगन्नाथ जी की मूर्ति, वृंदावन में भगवान कृष्ण राधा की मूर्ति, समर्थगुरु रामदास जी द्वारा बनाई हनुमान जी की मूर्ति, बुद्ध की मूर्ति, गुरु नानक की फ़ोटो इत्यादि। ये मूर्ति और फ़ोटो साकार साधको को अध्यात्म में प्रवेश करने हेतु श्रद्धा जमाने हेतु श्रध्दा पूर्वक ध्यान के केंद्रीकरण में अत्यंत सहायक हैं। निराकार साधना कठिन है और साकार साधना सुगम।

इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए युगऋषि परम् पूज्य गुरुदेव ने प्राचीनकाल से चली आ रही गायत्री की निराकार साधना को साकार उपासना हेतु सरल सुगम बनाने हेतु माता की फोटो और मूर्ति का पूजन प्रारम्भ किया। मन्त्र दृष्टा और आध्यात्मिक शक्ति से सम्पन्न आध्यात्मिक रिसर्चर ऋषियों ने यह महान उत्तर दायित्व ऋषियों की संसद हिमालय में परमपूज्य गुरुदेव को सौंपा, जिनमें मुख्य गायत्री की दोनों उपासना धाराओं (साकार - निराकार) को जन सामान्य के लिए उपलब्ध करवाना। सभी स्तर के साधको को ध्यान में रखते हुए एक तरफ गायत्री सन्ध्या का सरलीकरण, गायत्री यज्ञ का सरलीकरण, उपासना-ध्यान के सरलीकरण का उत्तरदायित्व सौंपा, तो दूसरी तरफ उच्च स्तरीय साधनाओं, पँचकोशिय साधनाये, चन्द्रायण साधनाएं, सवित्रिकुण्डलनी जागरण साधनाओं को भी उपलब्ध कराने का उत्तरदायित्व सौंपा। गर्भ से मृत्यु तक की सँस्कार परम्पराओं अर्थात human spiritual brain programming का उत्तरदायित्व सौंपा, साथ ही दो नए सँस्कार बनाने को बोला - जन्मदिवस सँस्कार और विवाहदिवस सँस्कार। इन सब जिम्मेदारियों को देने के पीछे प्रमुख उद्देश्य मनुष्य में देवत्व की स्थापना और धरती पर स्वर्ग अवतरण सुनिश्चित करना अर्थात सतयुग की वापसी है। इस पूरे प्रोजेक्ट को युगनिर्माण योजना और विचारक्रांति अभियान का क्रमशः नाम भी दिया गया।

आतिशी सीसा सूर्य नहीं होता, लेकिन सूर्य की रॉशनी को केन्द्रीभूत करके रुई को सूर्य की रौशनी से जलाने में सक्षम होता है। इसी तरह सोलर उपकरण सूर्य की रौशनी से ऊर्जा लेकर अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को चलाने में सक्षम होते हैं। इसी तरह मूर्ति और फ़ोटो की प्राण प्रतिष्ठा से सविता की शक्ति को केन्द्रीभूत पूजन गृह में किया जाता है। साकार साधक सुगमता से अपनी भावना शक्ति को केन्द्रीभूत मूर्ति या फ़ोटो के माध्यम से कर पाता है।

वर्तमान युगीय विकृत चिंतन से उपजी समस्या के समाधान हेतु सद्चिन्तन और दिशानिर्देश-मार्गदर्शन हेतु युगऋषि ने 3200 पुस्तको का विशाल साहित्य खज़ाना विश्व को उपलब्ध करवाया।

 तीनों लोकों में व्याप्त गायत्री-सविता शक्ति(ॐ भूर्भुवः स्व:) का सब वरण (तत्सवितुर्वरेण्यं) अपनी बुद्धि (धीमहि) में करें, उनके दैवीय गुणों को जन जन स्वयं में धारण करें(भर्गो देवस्य) और सत्य मार्ग/सन्मार्ग की ओर अग्रसर हो(प्रचोदयात)। इस शिक्षण की शुरुआत नए साधको के घर वेदमाता गायत्री की प्रतिमा देवस्थापना करवा के परमपूज्य गुरुदेव ने सर्वप्रथम करवाया।  युगऋषि से पूर्व युगनिर्माण योजना जैसे विशाल प्रोजेक्ट-युग बदलने की बात और गायत्री माता की प्रतिमा की स्थापना का उल्लेख कही कोई इतिहास में/पुराणों में नहीं मिलता। कुछ ऋषि आध्यात्मिक इतिहास बनाते है और कुछ ऋषि आध्यात्मिक इतिहास पढ़ते पढ़ाते है। युगऋषि आध्यात्मिक इतिहास बनाने वाले हैं।

उम्मीद है आपको अध्यात्म विज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान युग की आवश्यकता  का संक्षेप में विवरण और गायत्री माता की प्रतिमा स्थापना की प्रेरणा की प्रमाणिकता पसन्द आएगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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