*विचारों में क्रांति हेतु -धन्यवाद गुरुदेव*
गुरुवर तुम्हारी गूढ़ बातें,
मैं अज्ञानी थी जो समझ न पाई,
जीवन जीने की कला का सूत्र,
मैं अज्ञानी थी जो समझ न पाई।
दूसरों को सुधारने में,
स्वयं ही उलझती रही,
व्यर्थ के झमेलों में,
बेवजह फंसती रही
जिस दिन से तुम्हारा बतलाया,
*स्वयं सुधार का सूत्र* अपनाया,
मेरी सारी उलझने,
स्वतः सुलझती गयी।
मेरी जिन्दगीं में खुशियां,
स्वतः बढ़ती गयी।
जब तक दूसरों से,
बहुत सारी अपेक्षाये रखती रही,
दूसरों को अपने अनुसार,
चलाने की कुचेष्टा करती रही,
सारे रिश्ते बिखरते गए,
रेत की तरह फ़िसलते गए,
जिस दिन से तुम्हारा बतलाया,
*स्वयं के व्यवहार में बदलाव का सूत्र* अपनाया,
केवल स्वयं से की अपेक्षा,
*जो जैसा था उसे वैसा स्वीकारा*
मेरे सारे बिगड़े रिश्ते,
स्वतः बनते चले गए,
मन में सुकून के पल,
नित बढ़ते चले गए।
जब तक परिस्थिति को दोष देती रही,
और दूसरों पर दोष मढ़ती रही,
परिस्थितियां बद से बदतर बनती गयी,
मन में कुढ़न सड़न बढ़ती गयी,
असफलताएं मिलती रहीं,
दुष्चिंताएं बढ़ती रही,
जिस दिन से तुम्हारा बतलाया,
*दृष्टिकोण ठीक रखने का सूत्र*,
और *मनःस्थिति बदलने का सूत्र* अपनाया,
केवल स्वयं को ही,
अपनी असफलता -सफलता के लिए,
जिम्मेदार ठहराया,
स्वयं के उद्धार का बेड़ा,
संकल्प बल से उठाया,
अपनी योग्यता-पात्रता बढ़ाने में,
पूरा ध्यान लगाया,
मनःस्थिति बदलते ही,
परिस्थितियां बदलने लगी,
नज़रें बदलते ही,
नज़ारे बदलने लगे,
सूझबूझ सामर्थ्य बढ़ने लगा,
हर मंजिल आसान लगने लगी,
ज्यों ज्यों मन मे आत्मिविश्वास बढ़ता गया,
त्यों त्यों मन में आनंद का सागर भरता गया।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
गुरुवर तुम्हारी गूढ़ बातें,
मैं अज्ञानी थी जो समझ न पाई,
जीवन जीने की कला का सूत्र,
मैं अज्ञानी थी जो समझ न पाई।
दूसरों को सुधारने में,
स्वयं ही उलझती रही,
व्यर्थ के झमेलों में,
बेवजह फंसती रही
जिस दिन से तुम्हारा बतलाया,
*स्वयं सुधार का सूत्र* अपनाया,
मेरी सारी उलझने,
स्वतः सुलझती गयी।
मेरी जिन्दगीं में खुशियां,
स्वतः बढ़ती गयी।
जब तक दूसरों से,
बहुत सारी अपेक्षाये रखती रही,
दूसरों को अपने अनुसार,
चलाने की कुचेष्टा करती रही,
सारे रिश्ते बिखरते गए,
रेत की तरह फ़िसलते गए,
जिस दिन से तुम्हारा बतलाया,
*स्वयं के व्यवहार में बदलाव का सूत्र* अपनाया,
केवल स्वयं से की अपेक्षा,
*जो जैसा था उसे वैसा स्वीकारा*
मेरे सारे बिगड़े रिश्ते,
स्वतः बनते चले गए,
मन में सुकून के पल,
नित बढ़ते चले गए।
जब तक परिस्थिति को दोष देती रही,
और दूसरों पर दोष मढ़ती रही,
परिस्थितियां बद से बदतर बनती गयी,
मन में कुढ़न सड़न बढ़ती गयी,
असफलताएं मिलती रहीं,
दुष्चिंताएं बढ़ती रही,
जिस दिन से तुम्हारा बतलाया,
*दृष्टिकोण ठीक रखने का सूत्र*,
और *मनःस्थिति बदलने का सूत्र* अपनाया,
केवल स्वयं को ही,
अपनी असफलता -सफलता के लिए,
जिम्मेदार ठहराया,
स्वयं के उद्धार का बेड़ा,
संकल्प बल से उठाया,
अपनी योग्यता-पात्रता बढ़ाने में,
पूरा ध्यान लगाया,
मनःस्थिति बदलते ही,
परिस्थितियां बदलने लगी,
नज़रें बदलते ही,
नज़ारे बदलने लगे,
सूझबूझ सामर्थ्य बढ़ने लगा,
हर मंजिल आसान लगने लगी,
ज्यों ज्यों मन मे आत्मिविश्वास बढ़ता गया,
त्यों त्यों मन में आनंद का सागर भरता गया।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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