*उपासना, साधना, आराधना*
*उपासना* में उपासना की चक्की में ध्यान प्रोसेस करना, इस चक्की को इस तरह समझें, शरीर स्थिर चक्की का नीचे का हिस्सा, मन्त्र जप चक्की का ऊपरी हिस्सा, और ध्यान जिसका करेंगें वो चक्की में प्रोसेस होगा।
अब चक्की में गेहूँ डालोगे तो आटा प्रोसेस होकर बनेगा, चना डालोगे तो बेसन प्रोसेस होकर निकलेगा।
अब यदि मन्त्र जप के वक्त सूर्य का ध्यान करते हैं तो सूर्य की सविता शक्ति का अंतर्चेतना में वरण होता चला जायेगा।
लेकिन यदि मन्त्र जप के समय मन्दिर के बाहर रखी चप्पल का ध्यान किया तो चप्पल अंतर्चेतना में प्रोसेस होकर प्रवेश करेगा।
इसलिए उपासना के फलवती होने में जप के साथ ध्यान का अत्यंत महत्त्व है।
*लेकिन साधना की क्या जरूरत फिर?* अंधी पीसे कुत्ता खाय वाली कहावत सुनी होगी, या छेद वाले घड़े में जल कैसे भरेंगे।
कुत्ता और छेद हमारे मनोविकार - काम क्रोध मद लोभ दम्भ दुर्भाव द्वेष हैं। इनसे बिना मुक्त हुए चरित्र में छेद बना रहेगा, और उपासना की शक्ति एक मार्ग से आकर इन छिद्रों से निकल जायेगी। तो इन मनोविकार छिद्रों/कुत्तों से उपासना की शक्ति को बचाना ही साधना है।
*आराधना क्यों?* - जो आध्यात्मिक सम्पदा कमाया वो लोकहित लगाया तो अनेकगुना पुण्यफलदायी होगा।
*तत्सवितुर्वरेण्यं* उस सर्वशक्तिमान से जुड़ने भर से काम नहीं चलता, इसके आगे *भर्गो देवस्य धीमहि* उसके गुणों को धारण करना और *प्रचोदयात* सत्कर्म करना और सन्मार्ग पर चलना भी अनिवार्य है। उसकी बनाई सृष्टि के सुसंचालन में सहयोगी बनना भी अनिवार्य है।
मान लो हॉस्पिटल से जुड़े तो चिकित्सा में सहयोगी बनना होगा कि नहीं, जिससे जुड़े हो उसकी सर्विस भी तो करनी पड़ेगी। मान लो डॉक्टर बनकर नहीं सर्विस हो रही तो एडमिनिस्ट्रेशन में सहयोग करो, नर्सिंग में करो कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा। नहीं तो असोसिएशन/जॉब रद्द हो जाएगी। सर्विस दिया तो सैलरी 100% आएगी।
*तत्सवितुर्वरेण्यं* - उस सविता से जुड़े हो तो उसकी सर्विस करनी होगी, कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा।
वेदमूर्ति के वेददूत तो बन ही सकते हैं,
*उस प्राणस्वरूप* - प्राणवान कार्यकर्ता,
*दुःख नाशक* - लोगो को सद्चिन्तन से दुःख मिटाने वाले, उत्साह भरने वाले,
*सुख स्वरूप* - आत्मीयता का विस्तार करने वाले,
*श्रेष्ठ तेजस्वी* - नित्य उपासना-साधना और आराधना से श्रेष्ठ तेजस्वी व्यक्ति बनने का प्रयास करना, गर्भ सँस्कार- बाल सँस्कार इत्यादि माध्यम से श्रेष्ठ तेजस्वी मानव रत्न गढ़ना
*पापनाशक* - कुरीतियों-रूढ़िवादी परम्पराओं, व्यसनमुक्ति, दहेजप्रथा, कन्या भ्रूणहत्या के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन, सँघर्षात्मक आंदोलन करना,
*देवस्वरूप परमात्मा* - देवता बनना, देने का भाव रखना, लोककल्याणार्थ जुटना
*को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करते हैं* - अन्तर्मन परमात्मा के परमज्ञान से आलोकित रखना, भूले भटको को राह दिखाना, जन सम्पर्क
*वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे* - जब सन्मार्ग मिल जाये तो औरों को भी सन्मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करना, राह दिखाना।
मन्त्र के भावार्थ से साथ क्या करना है, वह भी विचारणा होगा।
जब जुड़ गए उनसे तो उनके बनकर रहना,
सविता से जुड़कर, आलोकित रहना,
स्वयं दिया बन जलना,
भूले भटको को राह दिखाना,
उपासना साधना और आराधना का मर्म,
जन जन तक पहुंचाना।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
*उपासना* में उपासना की चक्की में ध्यान प्रोसेस करना, इस चक्की को इस तरह समझें, शरीर स्थिर चक्की का नीचे का हिस्सा, मन्त्र जप चक्की का ऊपरी हिस्सा, और ध्यान जिसका करेंगें वो चक्की में प्रोसेस होगा।
अब चक्की में गेहूँ डालोगे तो आटा प्रोसेस होकर बनेगा, चना डालोगे तो बेसन प्रोसेस होकर निकलेगा।
अब यदि मन्त्र जप के वक्त सूर्य का ध्यान करते हैं तो सूर्य की सविता शक्ति का अंतर्चेतना में वरण होता चला जायेगा।
लेकिन यदि मन्त्र जप के समय मन्दिर के बाहर रखी चप्पल का ध्यान किया तो चप्पल अंतर्चेतना में प्रोसेस होकर प्रवेश करेगा।
इसलिए उपासना के फलवती होने में जप के साथ ध्यान का अत्यंत महत्त्व है।
*लेकिन साधना की क्या जरूरत फिर?* अंधी पीसे कुत्ता खाय वाली कहावत सुनी होगी, या छेद वाले घड़े में जल कैसे भरेंगे।
कुत्ता और छेद हमारे मनोविकार - काम क्रोध मद लोभ दम्भ दुर्भाव द्वेष हैं। इनसे बिना मुक्त हुए चरित्र में छेद बना रहेगा, और उपासना की शक्ति एक मार्ग से आकर इन छिद्रों से निकल जायेगी। तो इन मनोविकार छिद्रों/कुत्तों से उपासना की शक्ति को बचाना ही साधना है।
*आराधना क्यों?* - जो आध्यात्मिक सम्पदा कमाया वो लोकहित लगाया तो अनेकगुना पुण्यफलदायी होगा।
*तत्सवितुर्वरेण्यं* उस सर्वशक्तिमान से जुड़ने भर से काम नहीं चलता, इसके आगे *भर्गो देवस्य धीमहि* उसके गुणों को धारण करना और *प्रचोदयात* सत्कर्म करना और सन्मार्ग पर चलना भी अनिवार्य है। उसकी बनाई सृष्टि के सुसंचालन में सहयोगी बनना भी अनिवार्य है।
मान लो हॉस्पिटल से जुड़े तो चिकित्सा में सहयोगी बनना होगा कि नहीं, जिससे जुड़े हो उसकी सर्विस भी तो करनी पड़ेगी। मान लो डॉक्टर बनकर नहीं सर्विस हो रही तो एडमिनिस्ट्रेशन में सहयोग करो, नर्सिंग में करो कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा। नहीं तो असोसिएशन/जॉब रद्द हो जाएगी। सर्विस दिया तो सैलरी 100% आएगी।
*तत्सवितुर्वरेण्यं* - उस सविता से जुड़े हो तो उसकी सर्विस करनी होगी, कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा।
वेदमूर्ति के वेददूत तो बन ही सकते हैं,
*उस प्राणस्वरूप* - प्राणवान कार्यकर्ता,
*दुःख नाशक* - लोगो को सद्चिन्तन से दुःख मिटाने वाले, उत्साह भरने वाले,
*सुख स्वरूप* - आत्मीयता का विस्तार करने वाले,
*श्रेष्ठ तेजस्वी* - नित्य उपासना-साधना और आराधना से श्रेष्ठ तेजस्वी व्यक्ति बनने का प्रयास करना, गर्भ सँस्कार- बाल सँस्कार इत्यादि माध्यम से श्रेष्ठ तेजस्वी मानव रत्न गढ़ना
*पापनाशक* - कुरीतियों-रूढ़िवादी परम्पराओं, व्यसनमुक्ति, दहेजप्रथा, कन्या भ्रूणहत्या के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन, सँघर्षात्मक आंदोलन करना,
*देवस्वरूप परमात्मा* - देवता बनना, देने का भाव रखना, लोककल्याणार्थ जुटना
*को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करते हैं* - अन्तर्मन परमात्मा के परमज्ञान से आलोकित रखना, भूले भटको को राह दिखाना, जन सम्पर्क
*वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे* - जब सन्मार्ग मिल जाये तो औरों को भी सन्मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करना, राह दिखाना।
मन्त्र के भावार्थ से साथ क्या करना है, वह भी विचारणा होगा।
जब जुड़ गए उनसे तो उनके बनकर रहना,
सविता से जुड़कर, आलोकित रहना,
स्वयं दिया बन जलना,
भूले भटको को राह दिखाना,
उपासना साधना और आराधना का मर्म,
जन जन तक पहुंचाना।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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