Wednesday, 6 June 2018

प्रश्न - *गुरुमन्त्र किसे कहते हैं?*

प्रश्न - *गुरुमन्त्र किसे कहते हैं?*

उत्तर - गुरु दीक्षा के समय गुरु शिष्य को एक प्रधान विचार देते हैं। यह विचार-मंत्र-कहलाता है, गुरु द्वारा देने के कारण इसे गुरु मन्त्र कहते हैं। मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ, सर्वोपरि मंत्र गायत्री है, क्योंकि इसमें ज्ञान-साँसारिक ज्ञान, विज्ञान-आध्यात्मिक ज्ञान इस प्रकार भरा हुआ है जैसे बिन्दु में सिन्धु। जल की एक बूँद में वे सब तत्व मौजूद होते हैं जो समुद्र की विशाल जल राशि में होते हैं। बीज में वृक्ष का संपूर्ण आधार छिपा होता है, वीर्य की एक बूँद में सारे शरीर का ढाँचा सन्निहित रहता है। गायत्री मंत्र 24 अक्षर का है पर इसके गर्भ में ज्ञान विज्ञान के अनन्त भण्डागार छिपे पड़े हैं। इससे बड़ा कोई मंत्र नहीं, इसलिए इस वेदमाता को गुरु मंत्र के रूप में अन्तस्तल में धारण करना अधिक मंगलमय होता है। दीक्षा और गुरु मंत्र ग्रहण करने की विधि के साथ आरंभ की हुई गायत्री उपासना विशेष फलवती होती है, ऐसा शास्त्र का मत है।

अध्यात्मिक जगत में गुरु का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। जन्म देने वाली माता और पालन करने वाले पिता के पश्चात् सुसंस्कृत बनाने वाले गुरु का ही स्थान है। भारतीय समाज में “निगुरा” एक गाली समझी जाती है। जिनका गुरु नहीं उसे असंस्कृत, अविकसित माना जाता है। कारण यह है कि गुरु के बिना मनोभूमि का ठीक प्रकार निर्माण नहीं हो पाता। माता, पिता कितने ही सुशिक्षित क्यों न हों पर वे अपने बालकों का उचित निर्माण करने में समर्थ नहीं होते। उन्हें अपने बालकों के प्रति स्वाभाविक मोह, पक्षपात, स्नेह होता है, इस अति के कारण बालक के प्रति उनकी निष्पक्ष दृष्टि नहीं रहती, वे उसे ठीक प्रकार समझ नहीं पाते, या समझने की स्थिति में नहीं होते।

वेदों के ज्ञान का सार गायत्री मंत्र द्वारा गुरु शिष्य को कलियुग की कामधेनु सौंपता है, साथ ही ब्रह्म में रमने वाला साधक शिष्य इस कामधेनु के पयपान से इस लोक में तृप्ति और इस लोक से मुक्ति दोनों पाता है।

Reference Book - अखण्डज्योति मई 1948

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