*👉🏼Kartik Rajaram - This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure.*
एक लड़का था। बहुत brilliant था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। ऐसे बच्चे आमतौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन हो गया IIT चेन्नई में। वहाँ से B Tech किया और आगे पढने अमेरिका चला गया। वहाँ आगे की पढ़ाई पूरी की। M.Tech बगैरह कुछ किया होगा फिर उसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निआ से MBA किया।
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अब इतना पढने के बाद तो वहाँ अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। सुनते हैं कि वहाँ भी हमेशा टॉप ही किया, और वहीं अमेरिका में नौकरी करने लगा। बताया जाता है कि 05 बेडरूम का घर था उसके पास।
शादी भी वहीं, चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हो गई। बताते हैं कि ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे, कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में।
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अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इससे आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। एक मनुष्य को और क्या चाहिए अपने जीवन में? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी-बच्चे, सुख ही सुख, इसके बाद हीरो-हेरोइन के मानिंद सुखपूर्वक वहाँ की साफ़-सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे...
.दूसरा परिदृश्य:
अब एक दोस्त हैं हमारे, भाई नीरज जाट जी। एक नंबर के घुमक्कड़ हैं, घर कम रहते हैं, सफ़र में ज्यादा रहते हैं। ऐसी-ऐसी जगह घूमने चल पड़ते हैं पैदल ही कि बता नहीं सकते, 04-06 दिन पहाड़ों पर घूमना, trekking करना आदि उनके लिए आम बात है। एक से बढ़कर एक दुर्गम स्थानों पर जाते हैं, और फिर आके किस्से सुनाते हैं, ब्लॉग लिखते हैं। उनका ब्लॉग पढ़ के मुझे थकावट हो जाती है, न रहने का ठिकाना न खाने का ठिकाना (मानों जिंदगी ही सफ़र में हो), फिर भी कोई टेंशन नहीं। चल पड़ते हैं घूमने, बैग कंधे पर लाद के। मेरी बीवी अक्सर मुझसे कहती है कि एक तो तुम पहले ही आवारा थे ऊपर से ऐसे दोस्त पाल लिए, नीरज जाट जैसे! जो न खुद घर रहते हैं और न दूसरों को रहने देते हैं!! बहला-फुसला के ले जाते हैं अपने साथ!!!
पर मुझे उनकी घुमक्कड़ी देख सुनके रश्क होता है, कितना रफ एंड टफ है यार ये आदमी! कितना जीवट है! बड़ी सख्त जान है!
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आइए अब जरा कहानी के पहले पात्र पर दुबारा आ जाते हैं। तो आप उस इंजिनियर लड़के का क्या फ्यूचर देखते हैं लाइफ में?
क्यों, सब बढ़िया ही दीखता है? पर नहीं, आज से तीन साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली! अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मारकर खुद को भी गोली मार ली! What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई???
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ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा justify किया अपने इस कदम को और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में! उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने study किया है! What went wrong?
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हुआ यूँ था कि अमेरिका की आर्थिक मंदी के दौर में उसकी नौकरी चली गई! बहुत दिन खाली बैठे रहे! नौकरियाँ ढूँढते रहे! फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली... मकान की किश्त भी टूट गयी... तो सड़क पे आने की नौबत आ गई! बताते हैं, कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पे तेल भरा! साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली...
ख़ुशी-ख़ुशी! उसकी बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गई, ख़ुशी ख़ुशी!! जी हाँ लिखा है उन्होंने- हम सब लोग बहुत खुश हैं, कि अब सब-कुछ ठीक हो जाएगा, सब कष्ट ख़त्म हो जाएँगे!!!
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*इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने :*
This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure.
यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए!
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आइए ज़रा उसके जीवन पर शुरु से नज़र डालते हैं! बहुत तेज़ था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया! ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आए, कोई गलती न हो उस से! गलती करना तो यूँ- मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया!!! और हमेशा फर्स्ट आने के लिए वो "सब-कुछ" करने को तत्पर रहते हैं,
फिर ऐसे बच्चे चूँकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेलकूद, घूमना फिरना, लड़ाई-झगडा, मार-पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है इन बेचारों को!
12 th करके निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारों पर, वहाँ से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी! अब तनख्वाह मोटी तो जिम्मेवारी भी उतनी ही विशाल! यानि बड़े-बड़े targets...
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कमबख्त ये दुनिया, बड़ी कठोर है और ये जिंदगी, अलग से इम्तहान लेती है! आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे! वहाँ कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता! ये जिंदगी अपना अलग question paper सेट करती है! और सवाल साले,सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट-पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है, कोई date sheet नहीं!
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एक बार एक बहुत बड़े स्कूल में हम लोग summer camp ले रहे थे दिल्ली में। Mercedeze और BMW में आते थे बच्चे वहाँ। तभी एक लड़की, रही होगी यही कोई 7-8 साल की, अचानक जोर-जोर से रोने लगी! हम लोग दौड़े, क्या हुआ भैया, देखा तो वो लड़की हल्का सा गिर गई थी। वहाँ ज़मीन कुछ गीली थी सो उसके हाथ में ज़रा सी गीली मिटटी लग गई थी और थोड़ी उसकी frock में भी!! बस!!! सो वो जार-जार रोए जा रही थी! खैर हमने उसके हाथ धोए और ये बताया कि कुछ नहीं हुआ बेटा, ये देखो, धुल गयी मिटटी खैर साहब, थोड़ी देर में high heels पहने उसकी माँ आ गई... और उसने हमारी बड़ी क्लास लगाई कि आप लोग ठीक से काम नहीं करते हो, लापरवाही करते हो, कैसे गिर गया बच्चा, अगर कुछ हो जाता तो? इतना बड़ा हादसा, भगवान न करे किसी और के साथ हो जीवन में...!!!
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एक और आँखों देखी घटना बताता हूँ कि कैसे माँ-बाप स्वयं अपने बच्चों को spoil करते हैं!
हम लोग एक स्कूल में एक और कैंप लगा रहे थे, बच्चे स्कूल बस से आते थे। ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी तो एक बच्चा गिर गया और उसके माथे पे हल्की सी चोट लग गई, यही कोई एक सेन्टीमीटर का हल्का सा कट! अब वो बच्चा जोर-जोर से रोने लगा, बस यूँ समझ लीजे, चिंघाड़-चिंघाड़ के, क्योंकि उसने वो खून देख लिया अपने हाथ पे! खैर मामूली सी बात थी, हमने उसे फर्स्ट ऐड दे के बैठा दिया! तभी, यही कोई 10 मिनट बीते होंगे, उस बच्चे के माँ बाप पहुँच गए स्कूल... और फिर वहाँ जो रोआ-राट मची... वो बच्चा जितनी जोर से रोता, उसकी माँ उससे भी ज्यादा जोर से चिंघाड़ती और एक तरफ़ उसका बाप जोर-जोर से चिल्ला रहा था, पागलों की तरह! मेरे बच्चे को सर में चोट लगी है, आप लोग अभी तक हॉस्पिटल ले के नहीं गए? अरे ये तो न्यूरो का केस है सर में चोट लगी है!!!
मेरा एक दोस्त जो वहाँ PTI था उसके साथ हम उसे एक स्थानीय neurology के हॉस्पिटल में ले गए। अब अस्पताल वालों को तो बकरा चाहिए काटने के लिए! वहाँ पर भी उस लड़के का बाप CT Scan, Plastic surgery न जाने क्या-क्या बक रहा था! पर finally उस अस्पताल के doctors ने एक BANDAID लगा के भेज दिया।
एक और किस्सा उसी स्कूल का, एक श्रीमान जी सुबह-सुबह आ के लड़ रहे थे, क्या हुआ भैया, स्कूल बस नहीं आई, हमें आना पड़ा छोड़ने! बाद में पता चला श्रीमानजी का घर स्कूल से बमुश्किल 200 मीटर दूर, उसी कालोनी में तीन सड़क छोड़ के था और लड़का उनका 10 साल का था!!
क्या बनाना चाहते हैं आजकल के माँ-बाप अपने बच्चों को? ये spoon fed बच्चे जीवन के संघर्षों को कैसे या कितना झेल पाएँगे?
अगले परिदृश्य पर गौर फरमाएँ-
आज से लगभग 15 साल पहले, मेरा बड़ा बेटा 4-5 साल का था, अपने खेत पे जा रहे थे हम। बरसात का season था, धान के खेतों में पानी भरा था। मेरे बेटे ने मुझसे कहा, पापा, मुझे गोदी उठा लो. मैंने कहा कुछ नहीं होता बेटा, पैदल चलो और वो चलने लगा और थोड़ी ही देर बाद पानी में गिर गया! कपडे सब कीचड में सन गए! अब वो रोने लगा, मैंने फिर कहा कुछ नहीं हुआ बेटा, उठो, वो वहीं बैठा-बैठा रो रहा था! उसने मेरी तरफ हाथ बढाए, मैंने कहा अरे पहले उठो तो और वो उठ खड़ा हुआ! मैंने उसे सिर्फ अपनी ऊँगली थमाई और वो उसे पकड़ के ऊपर आ गया। हम फिर चल पड़े। थोड़ी देर बाद वो फिर गिर गया, पर अबकी बार उसकी प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी। उसने सिर्फ इतना ही कहा, अर्रे... और हम सब हँस दिए, वो भी हँसने लगा... फिर अपने आप उठा और ऊपर आ गया। मुझे याद है उस साल हम दोनों बाप-बेटे बीसों बार उस खेत पे गए होंगे, वो उसके बाद वहाँ से आते-जाते कभी नहीं गिरा!
कल मैं मेरे वह मित्र, नीरज जाट जी की करेरी झील की trekking वाली पोस्ट पढ़ रहा था। 04 दिन उस सुनसान बियाबान में रहे, जिसमें रास्ता तक का पता नहीं चलता, और वो भी इतनी बारिश और ओला वृष्टि में, ऊपर से लेकर नीचे तक भीगे हुए, भूखे/प्यासे, न रहने का आसरा न सोने का ठिकाना!!! उस कीचड भरे मंदिर के कमरे में, उस बिना chain वाले स्लीपिंग बैग में, रात बिता के भी, कितने खुश थे वो। इतना संघर्षशील आदमी भला क्या जीवन में कभी हार मानेगा?
कार्तिक राजाराम! जीहाँ, यही नाम था उस लड़के का। काश उसे भी बचपन में गिरने की, गिर-गिर के उठने की, बार-बार हारने की, और हार के बार-बार जीतने की ट्रेनिंग मिली होती!!!
कठोपनिषद में एक मंत्र है, उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो। शुरू से ही अपने बच्चों को इतना कोमल, इतना सुकुमार मत बनाइए कि वो इस ज़ालिम दुनिया के झटके बर्दाश्त ही ना कर सके!!
एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था- एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जाकर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया, उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह! अभी थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा! किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िए आते दिखे!! वह बहुत देर तक वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, फिर किसी तरह माँ के पास वापस पहुँचा तो बोला, माँ, वहाँ तो बहुत खतरनाक जंगल है!!!
Mom, there is a jungle out there.
"इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिए।"
(किसी अन्य की पोस्ट जो मुझे खूब भायी)
साभार
एक लड़का था। बहुत brilliant था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। ऐसे बच्चे आमतौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन हो गया IIT चेन्नई में। वहाँ से B Tech किया और आगे पढने अमेरिका चला गया। वहाँ आगे की पढ़ाई पूरी की। M.Tech बगैरह कुछ किया होगा फिर उसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निआ से MBA किया।
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अब इतना पढने के बाद तो वहाँ अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। सुनते हैं कि वहाँ भी हमेशा टॉप ही किया, और वहीं अमेरिका में नौकरी करने लगा। बताया जाता है कि 05 बेडरूम का घर था उसके पास।
शादी भी वहीं, चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हो गई। बताते हैं कि ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे, कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में।
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अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इससे आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। एक मनुष्य को और क्या चाहिए अपने जीवन में? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी-बच्चे, सुख ही सुख, इसके बाद हीरो-हेरोइन के मानिंद सुखपूर्वक वहाँ की साफ़-सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे...
.दूसरा परिदृश्य:
अब एक दोस्त हैं हमारे, भाई नीरज जाट जी। एक नंबर के घुमक्कड़ हैं, घर कम रहते हैं, सफ़र में ज्यादा रहते हैं। ऐसी-ऐसी जगह घूमने चल पड़ते हैं पैदल ही कि बता नहीं सकते, 04-06 दिन पहाड़ों पर घूमना, trekking करना आदि उनके लिए आम बात है। एक से बढ़कर एक दुर्गम स्थानों पर जाते हैं, और फिर आके किस्से सुनाते हैं, ब्लॉग लिखते हैं। उनका ब्लॉग पढ़ के मुझे थकावट हो जाती है, न रहने का ठिकाना न खाने का ठिकाना (मानों जिंदगी ही सफ़र में हो), फिर भी कोई टेंशन नहीं। चल पड़ते हैं घूमने, बैग कंधे पर लाद के। मेरी बीवी अक्सर मुझसे कहती है कि एक तो तुम पहले ही आवारा थे ऊपर से ऐसे दोस्त पाल लिए, नीरज जाट जैसे! जो न खुद घर रहते हैं और न दूसरों को रहने देते हैं!! बहला-फुसला के ले जाते हैं अपने साथ!!!
पर मुझे उनकी घुमक्कड़ी देख सुनके रश्क होता है, कितना रफ एंड टफ है यार ये आदमी! कितना जीवट है! बड़ी सख्त जान है!
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आइए अब जरा कहानी के पहले पात्र पर दुबारा आ जाते हैं। तो आप उस इंजिनियर लड़के का क्या फ्यूचर देखते हैं लाइफ में?
क्यों, सब बढ़िया ही दीखता है? पर नहीं, आज से तीन साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली! अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मारकर खुद को भी गोली मार ली! What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई???
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ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा justify किया अपने इस कदम को और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में! उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने study किया है! What went wrong?
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हुआ यूँ था कि अमेरिका की आर्थिक मंदी के दौर में उसकी नौकरी चली गई! बहुत दिन खाली बैठे रहे! नौकरियाँ ढूँढते रहे! फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली... मकान की किश्त भी टूट गयी... तो सड़क पे आने की नौबत आ गई! बताते हैं, कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पे तेल भरा! साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली...
ख़ुशी-ख़ुशी! उसकी बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गई, ख़ुशी ख़ुशी!! जी हाँ लिखा है उन्होंने- हम सब लोग बहुत खुश हैं, कि अब सब-कुछ ठीक हो जाएगा, सब कष्ट ख़त्म हो जाएँगे!!!
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*इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने :*
This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure.
यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए!
.
आइए ज़रा उसके जीवन पर शुरु से नज़र डालते हैं! बहुत तेज़ था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया! ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आए, कोई गलती न हो उस से! गलती करना तो यूँ- मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया!!! और हमेशा फर्स्ट आने के लिए वो "सब-कुछ" करने को तत्पर रहते हैं,
फिर ऐसे बच्चे चूँकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेलकूद, घूमना फिरना, लड़ाई-झगडा, मार-पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है इन बेचारों को!
12 th करके निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारों पर, वहाँ से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी! अब तनख्वाह मोटी तो जिम्मेवारी भी उतनी ही विशाल! यानि बड़े-बड़े targets...
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कमबख्त ये दुनिया, बड़ी कठोर है और ये जिंदगी, अलग से इम्तहान लेती है! आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे! वहाँ कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता! ये जिंदगी अपना अलग question paper सेट करती है! और सवाल साले,सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट-पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है, कोई date sheet नहीं!
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एक बार एक बहुत बड़े स्कूल में हम लोग summer camp ले रहे थे दिल्ली में। Mercedeze और BMW में आते थे बच्चे वहाँ। तभी एक लड़की, रही होगी यही कोई 7-8 साल की, अचानक जोर-जोर से रोने लगी! हम लोग दौड़े, क्या हुआ भैया, देखा तो वो लड़की हल्का सा गिर गई थी। वहाँ ज़मीन कुछ गीली थी सो उसके हाथ में ज़रा सी गीली मिटटी लग गई थी और थोड़ी उसकी frock में भी!! बस!!! सो वो जार-जार रोए जा रही थी! खैर हमने उसके हाथ धोए और ये बताया कि कुछ नहीं हुआ बेटा, ये देखो, धुल गयी मिटटी खैर साहब, थोड़ी देर में high heels पहने उसकी माँ आ गई... और उसने हमारी बड़ी क्लास लगाई कि आप लोग ठीक से काम नहीं करते हो, लापरवाही करते हो, कैसे गिर गया बच्चा, अगर कुछ हो जाता तो? इतना बड़ा हादसा, भगवान न करे किसी और के साथ हो जीवन में...!!!
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एक और आँखों देखी घटना बताता हूँ कि कैसे माँ-बाप स्वयं अपने बच्चों को spoil करते हैं!
हम लोग एक स्कूल में एक और कैंप लगा रहे थे, बच्चे स्कूल बस से आते थे। ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी तो एक बच्चा गिर गया और उसके माथे पे हल्की सी चोट लग गई, यही कोई एक सेन्टीमीटर का हल्का सा कट! अब वो बच्चा जोर-जोर से रोने लगा, बस यूँ समझ लीजे, चिंघाड़-चिंघाड़ के, क्योंकि उसने वो खून देख लिया अपने हाथ पे! खैर मामूली सी बात थी, हमने उसे फर्स्ट ऐड दे के बैठा दिया! तभी, यही कोई 10 मिनट बीते होंगे, उस बच्चे के माँ बाप पहुँच गए स्कूल... और फिर वहाँ जो रोआ-राट मची... वो बच्चा जितनी जोर से रोता, उसकी माँ उससे भी ज्यादा जोर से चिंघाड़ती और एक तरफ़ उसका बाप जोर-जोर से चिल्ला रहा था, पागलों की तरह! मेरे बच्चे को सर में चोट लगी है, आप लोग अभी तक हॉस्पिटल ले के नहीं गए? अरे ये तो न्यूरो का केस है सर में चोट लगी है!!!
मेरा एक दोस्त जो वहाँ PTI था उसके साथ हम उसे एक स्थानीय neurology के हॉस्पिटल में ले गए। अब अस्पताल वालों को तो बकरा चाहिए काटने के लिए! वहाँ पर भी उस लड़के का बाप CT Scan, Plastic surgery न जाने क्या-क्या बक रहा था! पर finally उस अस्पताल के doctors ने एक BANDAID लगा के भेज दिया।
एक और किस्सा उसी स्कूल का, एक श्रीमान जी सुबह-सुबह आ के लड़ रहे थे, क्या हुआ भैया, स्कूल बस नहीं आई, हमें आना पड़ा छोड़ने! बाद में पता चला श्रीमानजी का घर स्कूल से बमुश्किल 200 मीटर दूर, उसी कालोनी में तीन सड़क छोड़ के था और लड़का उनका 10 साल का था!!
क्या बनाना चाहते हैं आजकल के माँ-बाप अपने बच्चों को? ये spoon fed बच्चे जीवन के संघर्षों को कैसे या कितना झेल पाएँगे?
अगले परिदृश्य पर गौर फरमाएँ-
आज से लगभग 15 साल पहले, मेरा बड़ा बेटा 4-5 साल का था, अपने खेत पे जा रहे थे हम। बरसात का season था, धान के खेतों में पानी भरा था। मेरे बेटे ने मुझसे कहा, पापा, मुझे गोदी उठा लो. मैंने कहा कुछ नहीं होता बेटा, पैदल चलो और वो चलने लगा और थोड़ी ही देर बाद पानी में गिर गया! कपडे सब कीचड में सन गए! अब वो रोने लगा, मैंने फिर कहा कुछ नहीं हुआ बेटा, उठो, वो वहीं बैठा-बैठा रो रहा था! उसने मेरी तरफ हाथ बढाए, मैंने कहा अरे पहले उठो तो और वो उठ खड़ा हुआ! मैंने उसे सिर्फ अपनी ऊँगली थमाई और वो उसे पकड़ के ऊपर आ गया। हम फिर चल पड़े। थोड़ी देर बाद वो फिर गिर गया, पर अबकी बार उसकी प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी। उसने सिर्फ इतना ही कहा, अर्रे... और हम सब हँस दिए, वो भी हँसने लगा... फिर अपने आप उठा और ऊपर आ गया। मुझे याद है उस साल हम दोनों बाप-बेटे बीसों बार उस खेत पे गए होंगे, वो उसके बाद वहाँ से आते-जाते कभी नहीं गिरा!
कल मैं मेरे वह मित्र, नीरज जाट जी की करेरी झील की trekking वाली पोस्ट पढ़ रहा था। 04 दिन उस सुनसान बियाबान में रहे, जिसमें रास्ता तक का पता नहीं चलता, और वो भी इतनी बारिश और ओला वृष्टि में, ऊपर से लेकर नीचे तक भीगे हुए, भूखे/प्यासे, न रहने का आसरा न सोने का ठिकाना!!! उस कीचड भरे मंदिर के कमरे में, उस बिना chain वाले स्लीपिंग बैग में, रात बिता के भी, कितने खुश थे वो। इतना संघर्षशील आदमी भला क्या जीवन में कभी हार मानेगा?
कार्तिक राजाराम! जीहाँ, यही नाम था उस लड़के का। काश उसे भी बचपन में गिरने की, गिर-गिर के उठने की, बार-बार हारने की, और हार के बार-बार जीतने की ट्रेनिंग मिली होती!!!
कठोपनिषद में एक मंत्र है, उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो। शुरू से ही अपने बच्चों को इतना कोमल, इतना सुकुमार मत बनाइए कि वो इस ज़ालिम दुनिया के झटके बर्दाश्त ही ना कर सके!!
एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था- एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जाकर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया, उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह! अभी थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा! किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िए आते दिखे!! वह बहुत देर तक वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, फिर किसी तरह माँ के पास वापस पहुँचा तो बोला, माँ, वहाँ तो बहुत खतरनाक जंगल है!!!
Mom, there is a jungle out there.
"इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिए।"
(किसी अन्य की पोस्ट जो मुझे खूब भायी)
साभार
Ya right sir
ReplyDeleteAwesome and right thoughts
ReplyDeletejewan me jab tak thokar nhi khao ge tab tak kuch nhi ho ga
ReplyDeleteNice explanation to know own life and others life.
ReplyDeleteAsli success to gir kar uthna hai.
ReplyDeleteSahi hai sir
ReplyDeleteEs blog m ek baat nahi likhi aur wo ye ki jab kartik rajaram ne suicide kiya us waqt bhi unke account m 1million dollar the ...paisa problem nahi tha unki suicide ka ..problem thi to failure ko accept na karna...by the superb post and thanks for sharing
ReplyDeleteसफलता की जननी असफलता है।
ReplyDelete