Sunday 15 July 2018

प्रश्न - *मुझे लगता है मैं व्यर्थ में कमाने में पड़ा हूँ, मुझे नौकरी छोड़ कर गुरुकार्य करना चाहिए।मेरा काम मे आजकल बिल्कुल मन नहीं करता और सबकुछ छोड़कर बस गुरुकार्य/मिशन में समर्पित होने का मन करता है। मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *मुझे लगता है मैं व्यर्थ में कमाने में पड़ा हूँ, मुझे नौकरी छोड़ कर गुरुकार्य करना चाहिए।मेरा काम मे आजकल बिल्कुल मन नहीं करता और सबकुछ छोड़कर बस गुरुकार्य/मिशन में समर्पित होने का मन करता है। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर- *सर्वप्रथम आपकी गुरुनिष्ठा को प्रणाम* 🙏🏻

*नौकरी तुरन्त छोड़ दें यदि*:-

1- आपके ऊपर घर परिवार का कोई सदस्य डिपेंडेंट नहीं है और भूखों नहीं मरेगा।

2- आप अविवाहित हों।

3- वृद्ध माता पिता की सेवा और देख रेख हेतु कोई अन्य भाई बहन हों।

4- यदि आपके मन में सन्यास सुदृढ है और भविष्य में कभी भी विवाह नहीं करेंगे, इसके लिए निश्चय अडिग है।

5- एक वक्त भोजन, भूमि शयन और कम से कम सुविधा में सन्यासियों की तरह जीवन व्यतीत कर सकते हो। विवेकानन्द की तरह योगी बन तप की अग्नि में नित्य स्नान करने को मन सुदृढ हो। भूखा कई दिनों तक रहना पड़े तो भी गम न करे।

यदि उपरोक्त में से एक भी कंडीशन फेल होती है। तो आपको जॉब नहीं छोड़नी चाहिए।

*गुरुकार्य हेतु सद्गृहस्थ स्वावलम्बी लोकसेवी की भूमिका निभानी होगी, जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।*

देखिए, बचपन मे कभी भी खेल छोड़कर किसी का भी मन स्कूल जाने का नहीं करता था। बड़े होने पर कभी मन घण्टों पढ़ने का भी नहीं करता था। जॉब भी एक जगह 8 बन्ध कर, इतने सारे तनावपूर्ण प्रेशर/दबाव में भला कौन ख़ुश होकर करता है? रोज सुबह दाढ़ी ब्लेड से बनाने का बोरिंग काम भला कौन आदमी ख़ुशी से करता होगा? सुबह किचन में रोज रोज खाना-बर्तन करने में कौन सी गृहणी मन से ख़ुशी महसूस करती होगी? खिलाड़ी भी क्या अत्यधिक दबाव वाले गेम को आनंद से खेलते होंगे जिसमे न परफॉर्म करने पर निकाले जाने का भय विद्यमान है। कौन सा सैनिक ख़ुशी ख़ुशी गर्म रेत पर, या हड्डी जमाने वाली ठंड में दुश्मनों और आतंकियों के बीच परिवार से दूर ड्यूटी निभाने में आनन्द महसूस कर रहा होगा? सांसारिक दृष्टि से देखें तो ऐसा लगेगा कि भला कौन से सन्यासी का मन हिमालय की हड्डी गलाने वाली ठंड में, एक पैर पर खड़ा होकर, भूखे प्यासे घण्टों तप करने पर आनन्दित होता होगा?

सत्य यह है, कि आनंदमय खुशियां देने वाला बिन दबाव का कोई कार्य इस दुनियां में है ही नहीं।

परिस्थिति सर्वत्र कठिन है, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण का व्यक्ति मनःस्थिति बदल के इतने दबाव में भी आनन्द के पल और कारण ढूंढ ही लेता है। तपस्वी ईश्वर सेवा का भाव लाकर और सैनिक देश सेवा का भाव लाते है तो ही उस काम मे गौरव अनुभव करके आनन्दित हो सकेंगे। हम सभी अन्य जॉब करने वाले भी जहां है वहीं दिया बन प्रकाशित हो अंधेरा दूर कर सकते है। घर, परिवार, ऑफिस और आसपास स्कूलों-अस्पतालों में अपना समय गुरुकार्य के लिये समयदान-अंशदान-प्रतिभादान दे सकते हैं। सकारात्मक बदलाव ला सकते है और गौरान्वित हो सकते है। इस सेवा भाव मे आनन्दित रह सकते है।

🙏🏻 *जरूरी नहीं वही दिया सराहा जाएगा जो मन्दिर में जलता है। अरे भगवान तो उस दिए ही ज्यादा सराहता है जो कहीं दूर अंधियारी गली में जलता है और लोगो को राह भटकने से बचाता है।*

जरूरी नहीं कि हर कोई ईश्वर द्वारा तभी सराहा जाएगा जब वो सन्यासी बन आश्रम में रहे और हिमालय में तप करे। उसे ईश्वर और परमपूज्य गुरुदेब द्वारा ज्यादा सराहा जाएगा जो ऑफिस के दबाव को झेलते हुए, बाह्य तप्त परिस्थिति में भी हिमालय सी शांति अपने मन मे उतारेगा, हर मनुष्य में देवत्व जगायेगा, उसे उपासना-साधना-आराधना से जोड़ेगा और हर घर मे देवस्थापना करवाएगा। धरती को हरी चुनर बृक्षारोपण द्वारा ओढायेगा और धरती को साफ स्वच्छ और सुंदर बनाएगा।

यदि आप जैसी सभी देवात्मा हिमालय में तपलीन हो जाएंगी, तो धरती का भार कौन उठाएगा और युगनिर्माण में कौन स्वयं को आहुत करेगा? कौन परमपूज्य गुरुदेव का अंग अवयव बनकर उनकी युगपिड़ा मिटायेगा?

ध्यान रखिये....गुरुकार्य युग निर्माण हेतु तप दान भी चाहिए, समयदान भी चाहिए, अंशदान भी चाहिए और प्रतिभादान भी चाहिए। सभी का महत्त्व बहुत है कोई भी दान और कार्य छोटा नहीं है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

1 comment:

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