प्रश्न - *बाल सँस्कार शाला चलाने हेतु स्वयं की तैयारी के लिए क्या करूँ?*
उत्तर - बुझा हुआ दीपक कोई दूसरे दीपक को नहीं जला सकता। अतः सबसे पहले दिया बनना होगा:- पात्रता का विकास, आत्मीयता का स्नेह, आत्म अनुशासन से संयमित जीवन और प्रखर विचारों को बोलती प्राणवान वाणी और व्यक्तित्व बनाना होगा। साथ ही शिक्षक की भूमिका निभाने के लिए जीवन भर एक अच्छा गुरुदेव का शिष्य बनना होगा।
दत्तात्रेय की तरह सीखने वाला दृष्टिकोण विकसित करना होगा, कुछ भी चेतन या जड़ पदार्थ देखो तो उससे कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करो- उदाहरण ग्लास कहती है - पात्रता विकसित करो, मटका कहता है रूप का नही गुणों का महत्त्व होता है। यदि प्यास लगी हो तो लोग सोने के मटके के कड़वे पानी को पीने की जगह मिट्टी के मटके का शीतल जल ही पीना पसन्द करेंगे। पेंसिल कहती है जीवन में अपना प्रभाव छोड़ने के लिए कटर रूपी कठिनाई को तो झेलना ही पड़ेगा। बाहर से पेंसिल सुंदर है या नहीं फर्क नहीं पड़ता क्योंकि फ़र्क उसके इनर से पड़ेगा इत्यादि।
*शब्दो मे प्राण साधना से आएगा, तो वर्ष में कम से कम दो नवरात्र के अनुष्ठान और एक चन्द्रायण साधना अवश्य करनी चाहिए। सप्ताह में गुरुवार या रविवार का व्रत अवश्य करना चाहिए। दैनिक उपासना साधना आराधना क्रम भी अपनाएं।*
*स्वयं के ज्ञान के ख़ज़ाने को भरने के लिए नित्य गुरुदेब का लिखा बाल साहित्य पढ़े और उसके नोट बनायें।*
ब्रह्मा जी ने सृजन हेतु गायत्री शक्ति को धारण किया और सृजन में लगने हेतु साधन सामग्री हेतु सावित्री शक्ति का उपयोग लिया।
इसी तरह बाल सँस्कार शाला में जीवन विद्या (गायत्री) के साथ साथ सांसारिक शिक्षा(सावित्री) की सन्तुलित व्यवस्था रखें।
खेल खेल में या कहानियों के माध्यम से या एक्टिविटी के माध्यम से अध्यात्म विद्या को विद्यार्थी के भीतर प्रवेश करवाएं।
दर्पण में देखकर या मोबाईल में स्वयं की रिकॉर्डिग करें, किसी भी बात को रोचक और प्रभावी ढंग से व्यक्त करने का अभ्यास करें। जिससे क्लास में बच्चे बोर न हों।
ध्यान में बैठें और बचपन से अबतक के स्वयं का आत्म निरीक्षण करें कि किस चीज़ में आप बेस्ट हो, जिसके लिए आपको सराहा गया हो। वो बेस्ट गुण बच्चो में विकसित करें। बचपन से अबतक किसी बुरी आदत को छोड़ने में सफ़लता पाई हो तो वो मनोबल बढ़ाने वाली विधि बच्चो को बताएं।
स्वयं को बच्चे रूप में कल्पना कीजिये और सोचिए कि यदि आप बाल सँस्कार शाला में पढ़ने जाते तो आपको किस टाइप की टीचर, क्लास और पढ़ाने का तरीका अच्छा लगता। वो ही तरीका आप स्वयं अपनाये।
कुछ पुस्तकें बाल सँस्कार शाला के शिक्षक बनने के तौर पर पढ़े:-
1- दृष्टिकोण ठीक रखे
2- निराशा को पास न फटकने दें
3- आगे बढ़ने की तैयारी
4- शक्तिवान बनिये
5- अधिकतम अंक कैसे पाएं
6- बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि
7- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
8- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
9- मित्रभाव बढ़ाने की कला
10- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
11- मानसिक संतुलन
12- बाल सँस्कार शाला मार्गदर्शिका
जब स्वयं उपरोक्त विधियों से ज्ञान दीपक बन गुरुदेव की चेतना धारण कर प्रकाशित हो जाएंगी। तो जलते हुए दीपक से नन्हे नन्हे दिए बाल सँस्कार शाला के माध्यम से रौशन करती जायेंगी।
वो होश किसी काम का नहीं जिनमें जोश न हो, और वो जोश भी किसी काम का नहीं जिनमे होश न हों। अतः दोनों पर ध्यान दें।
देवसंस्कृति विश्वविद्यालय और देश के विभिन्न दिया टीम द्वारा अपलोड की नृत्य नाटिका को डाउनलोड कर लें और बच्चो से करवाएं, उदाहरण - वृक्ष के दर्द को दिया कोलकाता टीम ने प्रस्तुत किया जिसे देखकर मैं स्वयं रो पड़ी।
https://youtu.be/qu66A8kTJZQ
इसी तरह इनडोर और आउटडोर गेम यूट्यूब से बच्चों के लिए डाउनलोड करके उन्हें सिखाएं।
जब कहानी सुनाये तो उस कहानी से मिलने वाली शिक्षा को बच्चो के वर्तमान जीवन से कनेक्ट करवाएं। उदाहरण - खरगोश और कछुआ की रेस वाली कहानी, खरगोश अर्थात ज्यादा इंटेलिजेंट बच्चा और कछुआ अर्थात कम इंटेलिजेंट बच्चा, एग्जाम की रेस में वो जीतेगा जो अनवरत मेहनत करेगा।
उपासना में जब रोज ध्यान की गहराई में उतरेंगी तो स्वतः नए आइडिया आएंगे और वो बाल सँस्कार शाला को सफ़ल बनाएंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - बुझा हुआ दीपक कोई दूसरे दीपक को नहीं जला सकता। अतः सबसे पहले दिया बनना होगा:- पात्रता का विकास, आत्मीयता का स्नेह, आत्म अनुशासन से संयमित जीवन और प्रखर विचारों को बोलती प्राणवान वाणी और व्यक्तित्व बनाना होगा। साथ ही शिक्षक की भूमिका निभाने के लिए जीवन भर एक अच्छा गुरुदेव का शिष्य बनना होगा।
दत्तात्रेय की तरह सीखने वाला दृष्टिकोण विकसित करना होगा, कुछ भी चेतन या जड़ पदार्थ देखो तो उससे कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करो- उदाहरण ग्लास कहती है - पात्रता विकसित करो, मटका कहता है रूप का नही गुणों का महत्त्व होता है। यदि प्यास लगी हो तो लोग सोने के मटके के कड़वे पानी को पीने की जगह मिट्टी के मटके का शीतल जल ही पीना पसन्द करेंगे। पेंसिल कहती है जीवन में अपना प्रभाव छोड़ने के लिए कटर रूपी कठिनाई को तो झेलना ही पड़ेगा। बाहर से पेंसिल सुंदर है या नहीं फर्क नहीं पड़ता क्योंकि फ़र्क उसके इनर से पड़ेगा इत्यादि।
*शब्दो मे प्राण साधना से आएगा, तो वर्ष में कम से कम दो नवरात्र के अनुष्ठान और एक चन्द्रायण साधना अवश्य करनी चाहिए। सप्ताह में गुरुवार या रविवार का व्रत अवश्य करना चाहिए। दैनिक उपासना साधना आराधना क्रम भी अपनाएं।*
*स्वयं के ज्ञान के ख़ज़ाने को भरने के लिए नित्य गुरुदेब का लिखा बाल साहित्य पढ़े और उसके नोट बनायें।*
ब्रह्मा जी ने सृजन हेतु गायत्री शक्ति को धारण किया और सृजन में लगने हेतु साधन सामग्री हेतु सावित्री शक्ति का उपयोग लिया।
इसी तरह बाल सँस्कार शाला में जीवन विद्या (गायत्री) के साथ साथ सांसारिक शिक्षा(सावित्री) की सन्तुलित व्यवस्था रखें।
खेल खेल में या कहानियों के माध्यम से या एक्टिविटी के माध्यम से अध्यात्म विद्या को विद्यार्थी के भीतर प्रवेश करवाएं।
दर्पण में देखकर या मोबाईल में स्वयं की रिकॉर्डिग करें, किसी भी बात को रोचक और प्रभावी ढंग से व्यक्त करने का अभ्यास करें। जिससे क्लास में बच्चे बोर न हों।
ध्यान में बैठें और बचपन से अबतक के स्वयं का आत्म निरीक्षण करें कि किस चीज़ में आप बेस्ट हो, जिसके लिए आपको सराहा गया हो। वो बेस्ट गुण बच्चो में विकसित करें। बचपन से अबतक किसी बुरी आदत को छोड़ने में सफ़लता पाई हो तो वो मनोबल बढ़ाने वाली विधि बच्चो को बताएं।
स्वयं को बच्चे रूप में कल्पना कीजिये और सोचिए कि यदि आप बाल सँस्कार शाला में पढ़ने जाते तो आपको किस टाइप की टीचर, क्लास और पढ़ाने का तरीका अच्छा लगता। वो ही तरीका आप स्वयं अपनाये।
कुछ पुस्तकें बाल सँस्कार शाला के शिक्षक बनने के तौर पर पढ़े:-
1- दृष्टिकोण ठीक रखे
2- निराशा को पास न फटकने दें
3- आगे बढ़ने की तैयारी
4- शक्तिवान बनिये
5- अधिकतम अंक कैसे पाएं
6- बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि
7- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
8- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
9- मित्रभाव बढ़ाने की कला
10- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
11- मानसिक संतुलन
12- बाल सँस्कार शाला मार्गदर्शिका
जब स्वयं उपरोक्त विधियों से ज्ञान दीपक बन गुरुदेव की चेतना धारण कर प्रकाशित हो जाएंगी। तो जलते हुए दीपक से नन्हे नन्हे दिए बाल सँस्कार शाला के माध्यम से रौशन करती जायेंगी।
वो होश किसी काम का नहीं जिनमें जोश न हो, और वो जोश भी किसी काम का नहीं जिनमे होश न हों। अतः दोनों पर ध्यान दें।
देवसंस्कृति विश्वविद्यालय और देश के विभिन्न दिया टीम द्वारा अपलोड की नृत्य नाटिका को डाउनलोड कर लें और बच्चो से करवाएं, उदाहरण - वृक्ष के दर्द को दिया कोलकाता टीम ने प्रस्तुत किया जिसे देखकर मैं स्वयं रो पड़ी।
https://youtu.be/qu66A8kTJZQ
इसी तरह इनडोर और आउटडोर गेम यूट्यूब से बच्चों के लिए डाउनलोड करके उन्हें सिखाएं।
जब कहानी सुनाये तो उस कहानी से मिलने वाली शिक्षा को बच्चो के वर्तमान जीवन से कनेक्ट करवाएं। उदाहरण - खरगोश और कछुआ की रेस वाली कहानी, खरगोश अर्थात ज्यादा इंटेलिजेंट बच्चा और कछुआ अर्थात कम इंटेलिजेंट बच्चा, एग्जाम की रेस में वो जीतेगा जो अनवरत मेहनत करेगा।
उपासना में जब रोज ध्यान की गहराई में उतरेंगी तो स्वतः नए आइडिया आएंगे और वो बाल सँस्कार शाला को सफ़ल बनाएंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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