प्रश्न - *दी कभी कभी आत्महत्या करने का मन करता है, समस्या एक सुलझाओ कि दूसरी खड़ी। मैं अपने जीवन से तंग आ गयी हूँ, कब तक और कैसे स्वयं को समझाऊँ?मार्गदर्शन करें..*
उत्तर - आत्मीय प्यारी बहन, तुरन्त अविलम्ब आत्महत्या कर लो यदि निम्नलिखित कंडीशन आ गई हो और अपनाओ आत्महत्या का सरल उपाय - आज से ही कर दो अन्न-जल का त्याग:-
1- सोचने समझने की शक्ति चली गयी हो।
2- हाथ, पैर, आंख, कान और त्वचा ने काम करना बंद कर दिया हो।
3- मन की समस्त इच्छाओं का अंत हो गया हो, और आत्मसंतुष्ट महसूस कर रहे हो।
4- लौकिक सभी जिम्मेदारी पूर्ण हो गयी हो और मोह माया का आपने त्याग कर दिया हो।
5- मरने के बाद आपको किसी भी चीज़ का अफ़सोस नहीं हो।
यदि उपरोक्त में से एक भी कंडीशन फेल हो रही है, तो आपको मरना नहीं चाहिए बल्कि परेशानियों से मनोबल एकत्र करके निपटना चाहिए।
मरने के बाद शरीर नष्ट होगा, प्रारब्ध कर्म और परेशानियां खत्म नहीं होती। इसे ऐसे समझो कि लोन लिया था और चुका न सकने पर अपना वस्त्र-हुलिया बदल लिया तो क्या लोन चुक जायेगा नहीं न। इसी तरह शरीर रूपी वस्त्र बदलने से प्रारब्ध रूपी लोन न चुकेगा, उसके लिए परिश्रम करके लोन स्वयं को चुकाना ही पड़ेगा। *शाश्वत सत्य यह है कि हम(आत्मा) कभी मर ही नहीं सकते, केवल शरीर को मार/नष्ट कर सकते है*। शरीर से पूर्व भी हम थे, इस शरीर मे भी हम(आत्मा) हैं और इस शरीर के जाने के बाद भी रहेंगे। प्रारब्ध हो या पुण्यफ़ल का अकाउंट हमारी आत्मा से जुड़ा है, शरीर से नहीं हमेशा ध्यान रखना। तो बुद्धिमानी इसमें है कि प्रारब्ध के शमन हेतु प्रयास किया जाय।
*समस्या हेतु एक कहानी सुनो:-*
एक सन्त समुद्र के किनारे बैठे थे, तभी एक मछुआरा आया बोला आप नज़ारे देख रहे हो या आपको समुद्र में नहाना भी है?
सन्त बोले जब समुद्र की सभी लहरें शांत होंगी तब नहाऊंगा। मछुआरा बोला, ऐसा कभी न होगा। लहरों के बीच ही नहाना पड़ेगा। *सन्त बोले तुम लोग भी तो कहते हो समस्या शांत होंगी तभी जियोगे, समुद्र की लहर की तरह समस्या कभी शांत न होंगी और इन लहरों के बीच ही जीना भी पड़ेगा, और इन लहरों में ही नौकाएं भी उतारनी पड़ेगी।*
*लहरों से डरकर नौकाएं पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।*
*मनुष्य अपने सत्प्रयासों से अन्तःकरण में विवेक और संतोष जागृत कर स्थायी सुख-शांति और प्रशन्नता प्राप्त कर सकता है।*
दुनियाँ में सभी ताले चाबीयों के साथ ही बनते हैं, समस्या है तो समाधान भी होगा, तो समस्याओं के समाधान हेतु भी सांसारिक प्रयास और आध्यात्मिक प्रयास कीजिये। क्रिकेट खिलाड़ी की तरह प्रत्येक समस्या रूपी बॉल पर कभी एक रन, कभी दो, कभी चौका, कभी छक्का और कभी डॉट बॉल लेते रहें। जीवन का खेल खेलते रहें।
मरने की उतावली न करें, जीवन के खेल को एन्जॉय करें।
*निम्नलिखित पुस्तको का स्वाध्याय जीवन के खेल में दक्षता प्रदान करेगा*:-
1- निराशा को पास न फटकने दें
2- हम अशक्त क्यों? शशक्त बने
3- जीवन जीने की कला
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
याद रखिये, *मृत्यु आत्मा के एक और नए सफर की यात्रा है, तो इसकी भी तैयारी आवश्यक है।* जिस प्रकार एक देश से दूसरे देश जाने पर इस देश की करेंसी को दूसरे देश की करेंसी में बदलना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार इस संसार मे अध्यात्म और दान-पुण्य से हम करेंसी बदल लेते हैं, मृत्यु के बाद पुण्य रूपी करेंसी उपयोग में आती है।
मेरी प्यारी बहना, *समझ तो गए होंगे आत्मा कभी मर ही नहीं सकती। तो आत्महत्या तो सम्भव ही नहीं है। स्वयं के शरीर हत्या मात्र से समस्या का अंत नहीं होता।* तो यदि हत्या करने का मन हो रहा है, तो समस्याओं की हत्या समाधान द्वारा करें, मनोविकारों और कुविचारों की हत्या ध्यान-स्वाध्याय के हथियार से करें, उतावली की हत्या धैर्य के हथियार से करें, क्रोध की हत्या शांत मन से करें करें, असंतोष और इच्छाओं-वासनाओं की हत्या आध्यात्मिक मूल्यों से करें।
नित्य उपासना-साधना-आराधना द्वारा जीवन को सुव्यवस्थित बना के आत्म सन्तुष्टि और सुकून प्राप्त करें। ज्यादा से ज्यादा ध्यान और ज्यादा से ज्यादा स्वाध्याय करें। समस्याओं की लहरों के बीच ही जीवन का आनन्द लें, जैसे समुद्र की लहरों के बीच नहाते है।।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय प्यारी बहन, तुरन्त अविलम्ब आत्महत्या कर लो यदि निम्नलिखित कंडीशन आ गई हो और अपनाओ आत्महत्या का सरल उपाय - आज से ही कर दो अन्न-जल का त्याग:-
1- सोचने समझने की शक्ति चली गयी हो।
2- हाथ, पैर, आंख, कान और त्वचा ने काम करना बंद कर दिया हो।
3- मन की समस्त इच्छाओं का अंत हो गया हो, और आत्मसंतुष्ट महसूस कर रहे हो।
4- लौकिक सभी जिम्मेदारी पूर्ण हो गयी हो और मोह माया का आपने त्याग कर दिया हो।
5- मरने के बाद आपको किसी भी चीज़ का अफ़सोस नहीं हो।
यदि उपरोक्त में से एक भी कंडीशन फेल हो रही है, तो आपको मरना नहीं चाहिए बल्कि परेशानियों से मनोबल एकत्र करके निपटना चाहिए।
मरने के बाद शरीर नष्ट होगा, प्रारब्ध कर्म और परेशानियां खत्म नहीं होती। इसे ऐसे समझो कि लोन लिया था और चुका न सकने पर अपना वस्त्र-हुलिया बदल लिया तो क्या लोन चुक जायेगा नहीं न। इसी तरह शरीर रूपी वस्त्र बदलने से प्रारब्ध रूपी लोन न चुकेगा, उसके लिए परिश्रम करके लोन स्वयं को चुकाना ही पड़ेगा। *शाश्वत सत्य यह है कि हम(आत्मा) कभी मर ही नहीं सकते, केवल शरीर को मार/नष्ट कर सकते है*। शरीर से पूर्व भी हम थे, इस शरीर मे भी हम(आत्मा) हैं और इस शरीर के जाने के बाद भी रहेंगे। प्रारब्ध हो या पुण्यफ़ल का अकाउंट हमारी आत्मा से जुड़ा है, शरीर से नहीं हमेशा ध्यान रखना। तो बुद्धिमानी इसमें है कि प्रारब्ध के शमन हेतु प्रयास किया जाय।
*समस्या हेतु एक कहानी सुनो:-*
एक सन्त समुद्र के किनारे बैठे थे, तभी एक मछुआरा आया बोला आप नज़ारे देख रहे हो या आपको समुद्र में नहाना भी है?
सन्त बोले जब समुद्र की सभी लहरें शांत होंगी तब नहाऊंगा। मछुआरा बोला, ऐसा कभी न होगा। लहरों के बीच ही नहाना पड़ेगा। *सन्त बोले तुम लोग भी तो कहते हो समस्या शांत होंगी तभी जियोगे, समुद्र की लहर की तरह समस्या कभी शांत न होंगी और इन लहरों के बीच ही जीना भी पड़ेगा, और इन लहरों में ही नौकाएं भी उतारनी पड़ेगी।*
*लहरों से डरकर नौकाएं पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।*
*मनुष्य अपने सत्प्रयासों से अन्तःकरण में विवेक और संतोष जागृत कर स्थायी सुख-शांति और प्रशन्नता प्राप्त कर सकता है।*
दुनियाँ में सभी ताले चाबीयों के साथ ही बनते हैं, समस्या है तो समाधान भी होगा, तो समस्याओं के समाधान हेतु भी सांसारिक प्रयास और आध्यात्मिक प्रयास कीजिये। क्रिकेट खिलाड़ी की तरह प्रत्येक समस्या रूपी बॉल पर कभी एक रन, कभी दो, कभी चौका, कभी छक्का और कभी डॉट बॉल लेते रहें। जीवन का खेल खेलते रहें।
मरने की उतावली न करें, जीवन के खेल को एन्जॉय करें।
*निम्नलिखित पुस्तको का स्वाध्याय जीवन के खेल में दक्षता प्रदान करेगा*:-
1- निराशा को पास न फटकने दें
2- हम अशक्त क्यों? शशक्त बने
3- जीवन जीने की कला
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
याद रखिये, *मृत्यु आत्मा के एक और नए सफर की यात्रा है, तो इसकी भी तैयारी आवश्यक है।* जिस प्रकार एक देश से दूसरे देश जाने पर इस देश की करेंसी को दूसरे देश की करेंसी में बदलना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार इस संसार मे अध्यात्म और दान-पुण्य से हम करेंसी बदल लेते हैं, मृत्यु के बाद पुण्य रूपी करेंसी उपयोग में आती है।
मेरी प्यारी बहना, *समझ तो गए होंगे आत्मा कभी मर ही नहीं सकती। तो आत्महत्या तो सम्भव ही नहीं है। स्वयं के शरीर हत्या मात्र से समस्या का अंत नहीं होता।* तो यदि हत्या करने का मन हो रहा है, तो समस्याओं की हत्या समाधान द्वारा करें, मनोविकारों और कुविचारों की हत्या ध्यान-स्वाध्याय के हथियार से करें, उतावली की हत्या धैर्य के हथियार से करें, क्रोध की हत्या शांत मन से करें करें, असंतोष और इच्छाओं-वासनाओं की हत्या आध्यात्मिक मूल्यों से करें।
नित्य उपासना-साधना-आराधना द्वारा जीवन को सुव्यवस्थित बना के आत्म सन्तुष्टि और सुकून प्राप्त करें। ज्यादा से ज्यादा ध्यान और ज्यादा से ज्यादा स्वाध्याय करें। समस्याओं की लहरों के बीच ही जीवन का आनन्द लें, जैसे समुद्र की लहरों के बीच नहाते है।।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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