प्रश्न - *दी, मैंने अपने जीवन में कुछ ऐसी गलतियां की है जो मुझे नहीं करनी चाहिए थी। जिनका अब मुझे पश्चाताप है। जब भी उन गलतियों की याद आती है मन खिन्न हो जाता है, नकारात्मक विचारों से मन भर जाता है और लगता है कि मेरा तो नरक जाना निश्चित है तो पूजा पाठ करके क्या फ़ायदा... क्या करूँ...मार्गदर्शन करें*
उत्तर - *रत्नाकर और अंगुलिमाल दोनों डाकू थे। जिस पल उन्होंने नारद और बुद्ध की प्रेरणा से स्वयं को बदलने का निश्चय किया। उस पल से उन्होंने अंधेरे से प्रकाश की ओर आध्यात्मिक यात्रा और तपस्या प्रारंभ कर दी। अथक परिश्रम और तपबल से डाकू रत्नाकर महर्षि बाल्मीकि बन गए, और अंगुलिमाल बौद्ध भिक्षुक अहिंसक बन गए।*
जब सीता जी के गर्भ में लवकुश थे तब उन्होंने उस समय के श्रेष्ठ तपस्वियों की तुलना में महर्षि बाल्मीकि का आश्रम चुना रहने के लिए। अर्थात वो उस समय सबसे महर्षि की चेतना इतनी सर्वश्रेष्ठ हो चुके थी कि स्वयं आद्यशक्ति ने उन्हें चुना।
ऐसे अनेक कुख्यात डाकू परमपूज्य गुरुदेब की प्रेरणा से बदल गए। सरकार को आत्मसमर्पण करके, सज़ा काट के अब वो पीले साधारण कपड़ो में घर घर अखण्डज्योति पत्रिका बांटते हैं।
तो *जब ये लोग पश्चाताप और तपस्या से इतनी बड़ी गलती करने वाले बदल सकते हैं तो फिर हम और आप जैसे लोग भी अपनी गलतियों से उबर सकते हैं। प्रायश्चित कर सकते हैं। महान बन सकते है।*
परीक्षा हेतु पढ़कर एग्जाम दोगे तो पास भी हो सकते हो और फेल भी, तो 50-50% चांसेस हैं। लेकिन यदि पढोगे ही नहीं और एग्जाम दोगे ही नहीं तो 100% फेल ही हो। अतः अंधेरे में निराश होकर बैठने का कोई फ़ायदा नहीं, जब तक श्वांस है प्रकाश की ओर बढ़ते रहो।
*तपस्वी के पास आत्मसंतुष्टि होती है और चैन की नींद। तपस्वी विपन्न हो सकता है लेकिन कभी खिन्न नहीं होता। तप के साथ अंतर प्रशन्न रहता ही है।*
*पापी सम्पन्न हो सकता है लेकिन कभी अंतर से प्रशन्न नहीं हो सकता, पाप के साथ संताप रहता ही है। बिस्तर आलीशान होता है लेकिन चैन की नींद नहीं होती।*
हम सभी मनुष्य चार प्रकार की यात्राएं कर रहे हैं:-
1- अंधेरे से प्रकाश की ओर
2- अंधेरे से अंधेरे की ओर
3- प्रकाश से प्रकाश की ओर
4- प्रकाश से अंधेरे की ओर
*अब यदि हमें पता चल गया कि हम अँधेरे में है तो प्रकाश की ओर गुरुचरणों में समर्पित होकर निरन्तर चलना प्रारम्भ कर दो, एक न एक दिन कभी न कभी प्रकाश तक पहुंच जाओगे ही।* कहते है *कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती*। क्या पता तुम्हारी चेतना के ग्रो करने की स्पीड कितनी है, हो सकता है कुछ वर्षों में तुम हम सबसे आगे चेतना के शिखर तक पहुंच जाओ।
चलो फ़िर सैड मूड का त्याग करो और लग जाते है अपनी प्रारब्ध की कडाहियो को मांजने में, पापकर्मो को जलाने में, एक न एक दिन सफल होंगे ही। मन ही मन गीत गाते रहो - *हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन, मन में पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन।*😊
साधारण अग्नि हो या और तप की अग्नि हो, जो भी कुछ चाहो उसमें जला सकते हो। सामान कम होगा तो कम अग्नि में जल जायेगा और ज्यादा होगा तो ज्यादा अग्नि चाहिए और ज्यादा देर तक चाहिए। तो तप की अग्नि अनवरत जलाते रहो और पापों को जलाते रहो। उपसना-साधना-आराधना करते रहो।
हो सके तो 9 दिवसीय जीवन सँजीवनी साधना शान्तिकुंज हरिद्वार या गायत्री तपोभूमि मथुरा में करके आओ। दोनों तीर्थ क्षेत्र में रहना और भोजन निःशुल्क है। *तीर्थ क्षेत्र की तप ऊर्जा से कनेक्ट होने के बाद आत्मबल स्वतः बढ़ जाता है। पुण्य के बढ़ने पर पाप स्वतः घटने लगता है।*
तुम चेतना के शिखर तक शीघ्र पहुंचो, तुम्हारा अन्तःकरण शीघ्र प्रकाशित हो यही शुभकामनाएं है, इसके लिए सबसे पहले गुरुदेब के प्रति भक्ति और समर्पण बढ़ाना आवश्यक है और निम्नलिखित साहित्य भी पढ़ो और अपना आत्मज्ञान बढ़ाओ:-
1- चेतना की शिखर यात्रा भाग 1 से 3
2- ऋषि युग्म की झलक झांकी
3- अद्भुत आश्चर्य किंतु सत्य
4- पापनाशिनी चन्द्रायण कल्प साधना
5- मैं क्या हूँ?
6- निराशा को पास न फटकने दें
7- प्रसुप्ति से जागृति की ओर
8- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
9- दृष्टिकोण ठीक रखें
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - *रत्नाकर और अंगुलिमाल दोनों डाकू थे। जिस पल उन्होंने नारद और बुद्ध की प्रेरणा से स्वयं को बदलने का निश्चय किया। उस पल से उन्होंने अंधेरे से प्रकाश की ओर आध्यात्मिक यात्रा और तपस्या प्रारंभ कर दी। अथक परिश्रम और तपबल से डाकू रत्नाकर महर्षि बाल्मीकि बन गए, और अंगुलिमाल बौद्ध भिक्षुक अहिंसक बन गए।*
जब सीता जी के गर्भ में लवकुश थे तब उन्होंने उस समय के श्रेष्ठ तपस्वियों की तुलना में महर्षि बाल्मीकि का आश्रम चुना रहने के लिए। अर्थात वो उस समय सबसे महर्षि की चेतना इतनी सर्वश्रेष्ठ हो चुके थी कि स्वयं आद्यशक्ति ने उन्हें चुना।
ऐसे अनेक कुख्यात डाकू परमपूज्य गुरुदेब की प्रेरणा से बदल गए। सरकार को आत्मसमर्पण करके, सज़ा काट के अब वो पीले साधारण कपड़ो में घर घर अखण्डज्योति पत्रिका बांटते हैं।
तो *जब ये लोग पश्चाताप और तपस्या से इतनी बड़ी गलती करने वाले बदल सकते हैं तो फिर हम और आप जैसे लोग भी अपनी गलतियों से उबर सकते हैं। प्रायश्चित कर सकते हैं। महान बन सकते है।*
परीक्षा हेतु पढ़कर एग्जाम दोगे तो पास भी हो सकते हो और फेल भी, तो 50-50% चांसेस हैं। लेकिन यदि पढोगे ही नहीं और एग्जाम दोगे ही नहीं तो 100% फेल ही हो। अतः अंधेरे में निराश होकर बैठने का कोई फ़ायदा नहीं, जब तक श्वांस है प्रकाश की ओर बढ़ते रहो।
*तपस्वी के पास आत्मसंतुष्टि होती है और चैन की नींद। तपस्वी विपन्न हो सकता है लेकिन कभी खिन्न नहीं होता। तप के साथ अंतर प्रशन्न रहता ही है।*
*पापी सम्पन्न हो सकता है लेकिन कभी अंतर से प्रशन्न नहीं हो सकता, पाप के साथ संताप रहता ही है। बिस्तर आलीशान होता है लेकिन चैन की नींद नहीं होती।*
हम सभी मनुष्य चार प्रकार की यात्राएं कर रहे हैं:-
1- अंधेरे से प्रकाश की ओर
2- अंधेरे से अंधेरे की ओर
3- प्रकाश से प्रकाश की ओर
4- प्रकाश से अंधेरे की ओर
*अब यदि हमें पता चल गया कि हम अँधेरे में है तो प्रकाश की ओर गुरुचरणों में समर्पित होकर निरन्तर चलना प्रारम्भ कर दो, एक न एक दिन कभी न कभी प्रकाश तक पहुंच जाओगे ही।* कहते है *कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती*। क्या पता तुम्हारी चेतना के ग्रो करने की स्पीड कितनी है, हो सकता है कुछ वर्षों में तुम हम सबसे आगे चेतना के शिखर तक पहुंच जाओ।
चलो फ़िर सैड मूड का त्याग करो और लग जाते है अपनी प्रारब्ध की कडाहियो को मांजने में, पापकर्मो को जलाने में, एक न एक दिन सफल होंगे ही। मन ही मन गीत गाते रहो - *हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन, मन में पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन।*😊
साधारण अग्नि हो या और तप की अग्नि हो, जो भी कुछ चाहो उसमें जला सकते हो। सामान कम होगा तो कम अग्नि में जल जायेगा और ज्यादा होगा तो ज्यादा अग्नि चाहिए और ज्यादा देर तक चाहिए। तो तप की अग्नि अनवरत जलाते रहो और पापों को जलाते रहो। उपसना-साधना-आराधना करते रहो।
हो सके तो 9 दिवसीय जीवन सँजीवनी साधना शान्तिकुंज हरिद्वार या गायत्री तपोभूमि मथुरा में करके आओ। दोनों तीर्थ क्षेत्र में रहना और भोजन निःशुल्क है। *तीर्थ क्षेत्र की तप ऊर्जा से कनेक्ट होने के बाद आत्मबल स्वतः बढ़ जाता है। पुण्य के बढ़ने पर पाप स्वतः घटने लगता है।*
तुम चेतना के शिखर तक शीघ्र पहुंचो, तुम्हारा अन्तःकरण शीघ्र प्रकाशित हो यही शुभकामनाएं है, इसके लिए सबसे पहले गुरुदेब के प्रति भक्ति और समर्पण बढ़ाना आवश्यक है और निम्नलिखित साहित्य भी पढ़ो और अपना आत्मज्ञान बढ़ाओ:-
1- चेतना की शिखर यात्रा भाग 1 से 3
2- ऋषि युग्म की झलक झांकी
3- अद्भुत आश्चर्य किंतु सत्य
4- पापनाशिनी चन्द्रायण कल्प साधना
5- मैं क्या हूँ?
6- निराशा को पास न फटकने दें
7- प्रसुप्ति से जागृति की ओर
8- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
9- दृष्टिकोण ठीक रखें
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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