प्रश्न - *उपासना के बाद क्रोध बहुत आता है? खुद को सम्हाल नहीं पाती, और शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। मार्गदर्शन करें..*
उत्तर - प्यारी आत्मीय बहन, उपासना के समय जप हेतु शरीर आपका बैठता है और मन आपके मानसिक घावों को कुरेदता है। पुरानी यादें और बातें आपको दुःखी करती हैं, इसलिए ध्यान नहीं लगता। उपासना के बाद क्रोध आता है। जब ध्यान लगा ही नहीं तो उपासना पूरी कैसे हुई? भगवान के पास बैठा शरीर लेकिन चित्त तो पूजन कक्ष में था ही नहीं, वो तो घटनाओं को कुरेदने में टाइम ट्रैवेल कर रहा था।
मुझे नहीं पता कि आपके जीवन की क्या कठिनाई है, लेकिन क्योंकि मैं human psychology से ग्रेजुएट हूँ और गुरुदेब का मनोविज्ञान पर लिखा साहित्य पढ़ा है, इसलिए दावे के साथ बता सकती हूँ कि आप अपने वर्तमान जीवन से असंतुष्ट है। जो और जिस प्रकार का जीवन आप चाहती थी ठीक उसके विपरीत जीवन जी रही हैं। इसलिए बहुत सारा अन्तर्मन में फ्रस्ट्रेशन का कूड़ा करकट भरा है, उपासना के वक्त वो ऊपर उठता है और जो क्रोध रूप में बाहर आता है।
याद रखिये...हम जो चाहते है वो नहीं मिलता, हम जिस योग्य होते हैं वो हमें मिलता है।
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, आनंदमय जीवन का राजमार्ग आप अभी भी प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए आपको अपना नकारात्मक दृष्टिकोण(attitude) बदलकर सकारात्मक दृष्टिकोण जीवन के प्रति अपनाना होगा।
*सत्य घटना के द्वारा उदाहरण देकर समझाती हूँ*:-
परिस्थिति और प्रारब्ध ने *अरुणिमा सिन्हा* से उससे एक पैर छीन लिया, असीम कष्ट पूरी रात झेला, बिना बेहोशी के इंजेक्शन के ऑपरेशन करवाया।
लेकिन इस दुःखद घटना पर उसकी *प्रतिक्रिया और दृष्टिकोण सकारात्मक* था, इसलिए उसने एवरेस्ट की चोटी पर पर्वतारोहण जिसे दो पैर वाले नहीं कर पाते, उसे उसने एक नकली पैर से करके दिखाया। उच्च मनोबल और मनःस्थिति से सुनहरा भविष्य स्वर्ग रच डाला।
यदि वो इस घटना पर नकारात्मक प्रतिक्रिया देती, नकारात्मक दृष्टिकोण रखती तो उम्र भर भगवान, इंसान और दुनियाँ को कोसने में निकाल देती, frustrate रहती, किच किच करती, गुस्सा निकालती। निम्न मनोबल और कमज़ोर मनःस्थिति से स्वयं के लिए अपाहिज़ होने का रोना रोती, अपने लिए नर्क रच डालती।
जब मधुमक्खी भी फूलों से पराग निकाल सकती है तो हम मनुष्य इतने दिमागदार होकर दोषरोपण में क्यों व्यस्त हैं?, गुस्सा स्वयं के नकारापन, मानसिक दिवालियापन और अक्षमता की निशानी है। संक्षेप में कहें तो नकारात्मक दृष्टिकोण से उपजी मानसिक विकृति गुस्सा है। क्रोध एक ऐसी आग है जो दूसरों से पहले स्वयं को जलाती है। अतः जिंदगी में बदलाव चाहती है और सचमुच अरुणिमा सिन्हा की तरह विपरीत परिस्थिति में भी स्वयं के लिए आनन्दमय स्वर्ग का निर्माण करना चाहती है तो निम्नलिखित पुस्तकें पढ़े और जीवन मे अपनाएं:-
1- निराशा को पास न फटकने दें
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
4- मन के हारे हार है मन के जीते जीत
5- मानसिक संतुलन
6- हम अशक्त क्यों? शशक्त बनें
7- शक्तिवान बनिये
8- गहना कर्मणो गतिः
9- आवेशग्रस्त होने से अपार हानि
10- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
11- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
12- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
13- मित्रभाव बढ़ाने की कला
14- गृहस्थ एक तपोवन
15- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
बिना जीवन लक्ष्य के जीने का अर्थ नीरस जीवन है, ऐसी यात्रा है कि जाना कहाँ है पता नहीं और बस पर बैठ गए हैं। लक्ष्य जीवन मे होना बहुत जरूरी है।
*न संघर्ष न तकलीफें फिर क्या मजा है जीने में*
तूफान भी रूक जाएगा जब लक्ष्य रहेगा सीने में
*पसीने की स्हायी से लिखे पन्ने कभी कोरे नहीं होते*
जो करते है मेहनत दर मेहनत उनके सपने कभी अधूरे नहीं होते
बिना विलेन और कठिनाई को कोई फ़िल्म हिट नहीं होती, कोई जीवन निखरता नहीं है।
देखो प्यारी बहन मैं एक चिकित्सक की तरह दवा बता सकती हूँ और राह दिखा सकती हूँ। लेकिन दवा बिन खाये रोग खत्म न होगा, उपरोक्त पुस्तको को पढ़े बिना आप फ्रस्ट्रेशन से मुक्त न हो सकेंगी। मानसिक स्वास्थ्य और आनंदमय जीवन का कोई शॉर्टकट इस संसार मे उपलब्ध नहीं है, अतः स्वाध्याय तो करना ही पड़ेगा।
*आपका शीघ्र जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनें यही महाकाल से प्रार्थना है*, समस्त पुस्तक निम्नलिखित लिंक पर जाकर फ्री डाउनलोड कर पढ़े:-
http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Aaveshgrast_Hone_Se_Apar_Hani_Hindi
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - प्यारी आत्मीय बहन, उपासना के समय जप हेतु शरीर आपका बैठता है और मन आपके मानसिक घावों को कुरेदता है। पुरानी यादें और बातें आपको दुःखी करती हैं, इसलिए ध्यान नहीं लगता। उपासना के बाद क्रोध आता है। जब ध्यान लगा ही नहीं तो उपासना पूरी कैसे हुई? भगवान के पास बैठा शरीर लेकिन चित्त तो पूजन कक्ष में था ही नहीं, वो तो घटनाओं को कुरेदने में टाइम ट्रैवेल कर रहा था।
मुझे नहीं पता कि आपके जीवन की क्या कठिनाई है, लेकिन क्योंकि मैं human psychology से ग्रेजुएट हूँ और गुरुदेब का मनोविज्ञान पर लिखा साहित्य पढ़ा है, इसलिए दावे के साथ बता सकती हूँ कि आप अपने वर्तमान जीवन से असंतुष्ट है। जो और जिस प्रकार का जीवन आप चाहती थी ठीक उसके विपरीत जीवन जी रही हैं। इसलिए बहुत सारा अन्तर्मन में फ्रस्ट्रेशन का कूड़ा करकट भरा है, उपासना के वक्त वो ऊपर उठता है और जो क्रोध रूप में बाहर आता है।
याद रखिये...हम जो चाहते है वो नहीं मिलता, हम जिस योग्य होते हैं वो हमें मिलता है।
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, आनंदमय जीवन का राजमार्ग आप अभी भी प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए आपको अपना नकारात्मक दृष्टिकोण(attitude) बदलकर सकारात्मक दृष्टिकोण जीवन के प्रति अपनाना होगा।
*सत्य घटना के द्वारा उदाहरण देकर समझाती हूँ*:-
परिस्थिति और प्रारब्ध ने *अरुणिमा सिन्हा* से उससे एक पैर छीन लिया, असीम कष्ट पूरी रात झेला, बिना बेहोशी के इंजेक्शन के ऑपरेशन करवाया।
लेकिन इस दुःखद घटना पर उसकी *प्रतिक्रिया और दृष्टिकोण सकारात्मक* था, इसलिए उसने एवरेस्ट की चोटी पर पर्वतारोहण जिसे दो पैर वाले नहीं कर पाते, उसे उसने एक नकली पैर से करके दिखाया। उच्च मनोबल और मनःस्थिति से सुनहरा भविष्य स्वर्ग रच डाला।
यदि वो इस घटना पर नकारात्मक प्रतिक्रिया देती, नकारात्मक दृष्टिकोण रखती तो उम्र भर भगवान, इंसान और दुनियाँ को कोसने में निकाल देती, frustrate रहती, किच किच करती, गुस्सा निकालती। निम्न मनोबल और कमज़ोर मनःस्थिति से स्वयं के लिए अपाहिज़ होने का रोना रोती, अपने लिए नर्क रच डालती।
जब मधुमक्खी भी फूलों से पराग निकाल सकती है तो हम मनुष्य इतने दिमागदार होकर दोषरोपण में क्यों व्यस्त हैं?, गुस्सा स्वयं के नकारापन, मानसिक दिवालियापन और अक्षमता की निशानी है। संक्षेप में कहें तो नकारात्मक दृष्टिकोण से उपजी मानसिक विकृति गुस्सा है। क्रोध एक ऐसी आग है जो दूसरों से पहले स्वयं को जलाती है। अतः जिंदगी में बदलाव चाहती है और सचमुच अरुणिमा सिन्हा की तरह विपरीत परिस्थिति में भी स्वयं के लिए आनन्दमय स्वर्ग का निर्माण करना चाहती है तो निम्नलिखित पुस्तकें पढ़े और जीवन मे अपनाएं:-
1- निराशा को पास न फटकने दें
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
4- मन के हारे हार है मन के जीते जीत
5- मानसिक संतुलन
6- हम अशक्त क्यों? शशक्त बनें
7- शक्तिवान बनिये
8- गहना कर्मणो गतिः
9- आवेशग्रस्त होने से अपार हानि
10- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
11- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
12- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
13- मित्रभाव बढ़ाने की कला
14- गृहस्थ एक तपोवन
15- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
बिना जीवन लक्ष्य के जीने का अर्थ नीरस जीवन है, ऐसी यात्रा है कि जाना कहाँ है पता नहीं और बस पर बैठ गए हैं। लक्ष्य जीवन मे होना बहुत जरूरी है।
*न संघर्ष न तकलीफें फिर क्या मजा है जीने में*
तूफान भी रूक जाएगा जब लक्ष्य रहेगा सीने में
*पसीने की स्हायी से लिखे पन्ने कभी कोरे नहीं होते*
जो करते है मेहनत दर मेहनत उनके सपने कभी अधूरे नहीं होते
बिना विलेन और कठिनाई को कोई फ़िल्म हिट नहीं होती, कोई जीवन निखरता नहीं है।
देखो प्यारी बहन मैं एक चिकित्सक की तरह दवा बता सकती हूँ और राह दिखा सकती हूँ। लेकिन दवा बिन खाये रोग खत्म न होगा, उपरोक्त पुस्तको को पढ़े बिना आप फ्रस्ट्रेशन से मुक्त न हो सकेंगी। मानसिक स्वास्थ्य और आनंदमय जीवन का कोई शॉर्टकट इस संसार मे उपलब्ध नहीं है, अतः स्वाध्याय तो करना ही पड़ेगा।
*आपका शीघ्र जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनें यही महाकाल से प्रार्थना है*, समस्त पुस्तक निम्नलिखित लिंक पर जाकर फ्री डाउनलोड कर पढ़े:-
http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Aaveshgrast_Hone_Se_Apar_Hani_Hindi
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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