*यू टर्न ले लीजिए*
यदि कोई जीवन लक्ष्य चुना था, उदाहरण सरकारी जॉब के लिए कम्पटीशन हेतु बहुत तैयारी की उसमें सफलता नहीं मिली तो क्या हुआ उसके लिए की गई तैयारी में ढेर सारी शिक्षा तो मिली है। पढ़ना कभी बेकार नहीं जाता। जानते है 34+ उम्र भी ज्यादा हो गयी तो क्या हुआ, इतिहास भरा पड़ा है कि बहुत लोगों ने लेट शुरुआत करके भी बड़े लक्ष्य हांसिल किये। सफल बने।
देखो जॉब कम है और अभ्यर्थी ज्यादा, अब केवल अधिक मेंहनत और बेस्ट होने भर से काम नहीं चलता। सुपर डुपर बेस्ट के साथ किस्मत का भी साथ देना जरूरी है, क्योंकि कई बार लॉटरी सिस्टम में किस्मत लगती है।
अब जॉब नहीं लगी तो क्या करें, *अपने जीवन मे यू टर्न* ले लीजिए। इसके लिए *गायत्री तपोभूमि मथुरा या शान्तिकुंज हरिद्वार* में से किसी भी जगह जाकर घर से दूर एकांत में *9 दिवसीय जीवन संजीवनी साधना* कीजिये। जो हुआ सो हुआ, अब वर्तमान स्टेटस से आगे प्राइवेट जॉब की ओर कैसे बढ़े और क्या करें? इस पर गहन चिंतन मनन करके 9 दिन के बाद नए सिरे से जिंदगी के सफर में आगे बढिये। स्वयं की योग्यता क्षमता का सकारात्मक आंकलन कीजिये।
*याद रखिये-*
सरकारी हो प्राइवेट नौकरी कोई भी आज के जमाने मे स्थायी नहीं
जब जिंदगी का ही कोई भरोसा नहीं तो नौकरी का क्या भरोसा करना
महंगी फ़रारी गाड़ी में चलो या मारुति अल्टो गाड़ी में रोड, मंजिल और रिश्ते वही रहते है।
घड़ी महंगी हो या सस्ती वक्त नहीं बदलता
जिंदगी में सुकून, मस्ती और शांति से जीने के लिए जीवन कम संसाधनों में भी आराम से जिया जा सकता है।
एक बार फ़ोर्ड के मालिक ने कहा था कि मैं अगले जन्म में मजदुर बनना चाहता हूँ, क्योंकि मैं बिना दवा के न सो सकता हूँ और न कुछ खा सकता हूँ। मेरा जीवन खोखला है, जबकि इन मजदूरों को देखो मोटे अन्न भी बड़े मजे से खा के चैन से सो सकते हैं। एक दिन मरना इन्हें भी है और मुझे भी। साथ मे ये भी कुछ नहीं ले जा पाएंगे और साथ मे मैं भी कुछ नहीं ले जा पाऊँगा।
अतः *क्या कहेंगे लोग वाली बीमारी से छुटकारा* पाइये, क्योंकि *कुछ तो लोग कहेंगे* और *लोगों का तो काम ही है कहना*। सफल हुए तो बोलेंगे मैं तो जानता था तुम कुछ न कुछ करोगे ही, असफ़ल हुए तो तुम्हारे रंग ढंग देख के ही मुझे पता लग गया था कि तुम कुछ कर नहीं सकते।
एडिसन स्कूल से निकाला गया बुद्धू बच्चा था, आज उसी बच्चे ने बड़े होकर दुनियां को रौशन किया। साथ मे सभी स्कूलों की पुस्तक में उसके आविष्कार को जरूर पढ़ाया जा सकता है।
अब या तो यू टर्न लो और सफर में आगे बढ़ो और सफल होने के लिए *जान लगा दो* या स्वयं को निराश हताश मानकर गाड़ी बन्द करके बैठ जाओ और *जाने दो*।
निर्णय तुम्हारा है, *जब जागो तभी सवेरा है।*
निम्नलिखित पुस्तक पढो और यूटर्न लाइफ में लो:-
1- निराशा को पास न फटकने दें
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- शक्तिमान बनिये
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- सफलता के सात सूत्र
7- आगे बढ़ने की तैयारी
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
यदि कोई जीवन लक्ष्य चुना था, उदाहरण सरकारी जॉब के लिए कम्पटीशन हेतु बहुत तैयारी की उसमें सफलता नहीं मिली तो क्या हुआ उसके लिए की गई तैयारी में ढेर सारी शिक्षा तो मिली है। पढ़ना कभी बेकार नहीं जाता। जानते है 34+ उम्र भी ज्यादा हो गयी तो क्या हुआ, इतिहास भरा पड़ा है कि बहुत लोगों ने लेट शुरुआत करके भी बड़े लक्ष्य हांसिल किये। सफल बने।
देखो जॉब कम है और अभ्यर्थी ज्यादा, अब केवल अधिक मेंहनत और बेस्ट होने भर से काम नहीं चलता। सुपर डुपर बेस्ट के साथ किस्मत का भी साथ देना जरूरी है, क्योंकि कई बार लॉटरी सिस्टम में किस्मत लगती है।
अब जॉब नहीं लगी तो क्या करें, *अपने जीवन मे यू टर्न* ले लीजिए। इसके लिए *गायत्री तपोभूमि मथुरा या शान्तिकुंज हरिद्वार* में से किसी भी जगह जाकर घर से दूर एकांत में *9 दिवसीय जीवन संजीवनी साधना* कीजिये। जो हुआ सो हुआ, अब वर्तमान स्टेटस से आगे प्राइवेट जॉब की ओर कैसे बढ़े और क्या करें? इस पर गहन चिंतन मनन करके 9 दिन के बाद नए सिरे से जिंदगी के सफर में आगे बढिये। स्वयं की योग्यता क्षमता का सकारात्मक आंकलन कीजिये।
*याद रखिये-*
सरकारी हो प्राइवेट नौकरी कोई भी आज के जमाने मे स्थायी नहीं
जब जिंदगी का ही कोई भरोसा नहीं तो नौकरी का क्या भरोसा करना
महंगी फ़रारी गाड़ी में चलो या मारुति अल्टो गाड़ी में रोड, मंजिल और रिश्ते वही रहते है।
घड़ी महंगी हो या सस्ती वक्त नहीं बदलता
जिंदगी में सुकून, मस्ती और शांति से जीने के लिए जीवन कम संसाधनों में भी आराम से जिया जा सकता है।
एक बार फ़ोर्ड के मालिक ने कहा था कि मैं अगले जन्म में मजदुर बनना चाहता हूँ, क्योंकि मैं बिना दवा के न सो सकता हूँ और न कुछ खा सकता हूँ। मेरा जीवन खोखला है, जबकि इन मजदूरों को देखो मोटे अन्न भी बड़े मजे से खा के चैन से सो सकते हैं। एक दिन मरना इन्हें भी है और मुझे भी। साथ मे ये भी कुछ नहीं ले जा पाएंगे और साथ मे मैं भी कुछ नहीं ले जा पाऊँगा।
अतः *क्या कहेंगे लोग वाली बीमारी से छुटकारा* पाइये, क्योंकि *कुछ तो लोग कहेंगे* और *लोगों का तो काम ही है कहना*। सफल हुए तो बोलेंगे मैं तो जानता था तुम कुछ न कुछ करोगे ही, असफ़ल हुए तो तुम्हारे रंग ढंग देख के ही मुझे पता लग गया था कि तुम कुछ कर नहीं सकते।
एडिसन स्कूल से निकाला गया बुद्धू बच्चा था, आज उसी बच्चे ने बड़े होकर दुनियां को रौशन किया। साथ मे सभी स्कूलों की पुस्तक में उसके आविष्कार को जरूर पढ़ाया जा सकता है।
अब या तो यू टर्न लो और सफर में आगे बढ़ो और सफल होने के लिए *जान लगा दो* या स्वयं को निराश हताश मानकर गाड़ी बन्द करके बैठ जाओ और *जाने दो*।
निर्णय तुम्हारा है, *जब जागो तभी सवेरा है।*
निम्नलिखित पुस्तक पढो और यूटर्न लाइफ में लो:-
1- निराशा को पास न फटकने दें
2- दृष्टिकोण ठीक रखें
3- शक्तिमान बनिये
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- सफलता के सात सूत्र
7- आगे बढ़ने की तैयारी
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment