Sunday, 19 August 2018

प्रश्न- *किसी भी अनुष्ठान की पूर्णाहुति यज्ञ द्वारा ही क्यों होती है? इसके बारे में थोड़ा विस्तार से बता दीजिए।*

प्रश्न-  *किसी  भी अनुष्ठान की पूर्णाहुति यज्ञ द्वारा ही क्यों होती है?  इसके बारे में थोड़ा विस्तार से बता दीजिए।*

उत्तर - धर्म ग्रंथों में आपने पढ़ा होगा और धार्मिक सीरियल में देखा होगा कि राक्षस अपना अधिपत्य पूर्ण सृष्टि में करने के लिए और देवशक्तियों को परास्त करने के लिए सर्वप्रथम शुरुआत ऋषिमुनियों के यज्ञ के विध्वंस से ही करते हैं। उन्हें बंदी बनाकर जबरजस्ती ऐसा यज्ञ करने को बोलते जिसमें मन्त्रों द्वारा असुरशक्तियो को यज्ञ का भाग मिले। और देवशक्तियां यज्ञ न मिलने के कारण कमज़ोर असहाय हो जाएं जिससे उन्हें परास्त करना आसान हो जाय।

*गायत्री और यज्ञ का अनिवार्य सम्बन्ध है। यज्ञ भारतीय संस्कृति का आदि प्रतीक है।* गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी कहा गया है तो यज्ञ को संस्कृति का पिता। भारतीय धर्मानुयायियों के जीवन में यज्ञ का बड़ा महत्व है। *कोई भी आध्यात्मिक कार्यक्रम या अनुष्ठान बिना सङ्कल्प के शुरू नहीं होता और बिना यज्ञ के पूरा नहीं होता।* साधनाओं में तो हवन और भी अनिवार्य है। जितने भी पाठ, पुरश्चरण, जप, साधन किये जाते हैं वे चाहे वेदोक्त हों चाहे तांत्रिक उनमें किसी न किसी रूप में यज्ञ, हवन अवश्य करना पड़ता है। प्रत्येक कथा, कीर्तन, व्रत, उपवास, पर्व, त्यौहार, उत्सव, उद्यापन सभी में यज्ञ अवश्य करना पड़ता है। इस प्रकार गायत्री उपासना में भी हवन आवश्यक है। अनुष्ठान या पुरश्चरण में जप से दसवां भाग हवन करने का विधान है। यदि इतना न बन पड़े तो शतांश [सौवां भाग] हवन करना चाहिए। गायत्री उपासना के साथ यज्ञ का युग्म बनता है। गायत्री को माता और यज्ञ को पिता माना गया है। इन्हीं दोनों के संयोग से मनुष्य का आध्यात्मिक जन्म होता है, जिसे द्विजत्व कहते हैं। द्विज का अर्थ है दूसरा जन्म। जैसे अपने शरीर को जन्म देने वाले माता, पिता की सेवा पूजा करना मनुष्य का कर्तव्य है, उसी प्रकार गायत्री माता और यज्ञ पिता की पूजा भी प्रत्येक द्विज का आवश्यक धर्म कर्तव्य है। *केवल अनुष्ठान तब तक अधूरा है जब तक उसका दशांश या शतांश मन्त्रों द्वारा यज्ञ न किया जाय। यज्ञ द्वारा ही अनुष्ठान के बाद देवताओं को उनका यज्ञ का भाग अर्पित होता है। एक तरह से देव शक्तियों को यज्ञ के माध्यम से आमंत्रित कर भोजन करवाते हैं। ज्यों ही यज्ञ द्वारा आप देवशक्तियों को यज्ञ का भाग अर्पित करेंगे वो तुष्ट होकर प्राण पर्जन्य की आपके ऊपर वर्षा करेंगी। इसलिए अनुष्ठान के बाद पूर्णाहुति अनिवार्य है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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