Sunday, 19 August 2018

प्रश्न - *आत्मा, प्राण और जीवात्मा के भेद बताइये? क्या यह तीनों एक है या भिन्न?*

प्रश्न - *आत्मा, प्राण और जीवात्मा के भेद बताइये? क्या यह तीनों एक है या भिन्न?*

उत्तर - एक लाइन में यदि उत्तर चाहते हैं तो आत्मा मूल तत्व और परमात्मा का अंश, जीवात्मा अर्थात उस आत्मा का धारण किया सूक्ष्म शरीर, प्राण अर्थात उस आत्मा का प्रकाश या यूं कहें उस आत्मा का गुण।

 *आइये इसे विस्तार से उदाहरण सहित क्रमशः भी समझते हैं*:-

👉🏼 *आत्मा* रूपी चैतन्य ऊर्जा को समझने के लिए पहले सांसारिक ऊर्जा समझते है।

एक पावरहाउस है, उससे बिजली विभिन्न घरों में सप्पलाई हुई, बिजली तो एक ही थी, मगर उस बिजली विभिन्न इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों ने अपनी शक्ति से  कहीं बल्ब (बल्ब में भी विभिन्न वाट के), किसी ने LED, किसी ने हीटर, किसी ने फ्रिज़ इत्यादि उपकरण चलाया।

इसी तरह पावरहाउस परमात्मा है, उसकी आत्मा ऊर्जा की सप्पलाई हुई, विभिन्न उपकरण मनुष्य, जीव, वनस्पति, पशु, पक्षी उस आत्म चेतना से सक्रिय हुए। अर्थात हमारे घर की बिजली पावरहाउस की बिजली का अंश है ठीक उसी तरह आत्मा परमात्मा का ही अंश हुई। आत्मा को जानोगे तो परमात्मा को स्वतः जान जाओगे। तत्वदर्शी इसीलिए परमात्मा को कण कण में देख और अनुभव कर पाते हैं। क्योंकि वो हमारी तरह स्थूल नहीं बल्कि उसके पीछे का सूक्ष्म देखते हैं। आत्मवत सर्वभूतेषु अनुभव कर पाते हैं।

👉🏼 *जीवात्मा* - आत्मा रूपी चैतन्य ऊर्जा का सूक्ष्म आवरण/शरीर को पावर धारण करने वाले तार या पॉवर बैंक की तरह समझें।

बिजली/विद्युत ऊर्जा को पॉवर बैंक में स्टोर करके कोई भी उपकरण चला सकते हो, एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकते हो। इसी तरह जीवात्मा रूपी छोटे छोटे पॉवर बैंक में आत्मा सूक्ष्म शरीर में रहती है। पॉवर बैंक ऊर्जा को स्टोर तो कर सकता है लेकिन उसे बिना उपकरण प्रभाव नहीं दिखा सकता, उसी तरह जीवात्मा को भी स्थूल शरीर रूपी उपकरण की आवश्यकता पड़ती है सक्रिय हो प्रभाव दिखाने के लिए।

जीवात्मा का स्थूल आवरण जो दृश्य है वो स्थूल शरीर है, उसके भीतर का जो स्थूल दृष्टि से परे शरीर है वो सूक्ष्म शरीर है, इसे कभी कभी प्रेत शरीर मे अनुभव भी किया जा सकता है। मरने पर और जन्म लेने से पूर्व आत्मा इसी  शरीर मे रहता है। इस शरीर मे संचित कर्म, प्रारब्ध, पुण्य, भावनाएं समस्त विद्यमान रहते हैं। सिद्ध योगी आत्माएं मोक्ष प्राप्त करती है अर्थात स्थूल के साथ साथ सूक्ष्म शरीर का भी त्याग कर देती हैं। इससे भी परे अत्यंत सूक्ष्म एक शरीर और है जिसे कारण शरीर कहते है इसमें ही सिद्ध आत्माएं रहती है। हम सबके पास स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर है। लेकिन कारण विकसित नहीं है, इसे विभिन्न साधनाओ से विकसित किया जा सकता है।

👉🏼 *प्राण* - प्राण आत्मा का ही गुण है, जैसे प्रकाश सूर्य का गुण है। जैसे अग्निकण/चिंगारी अग्नि का गुण हैं। बिना आत्मा के प्राण का कोई अस्तित्व ही नहीं है। आत्मा से प्राण बहता रहता/निर्झरित होता रहता है। उसी प्राण शक्ति से  पूरा शरीर सक्रिय रहता है।

जब मनुष्य किसी कारण वश कोमा में जाता है तो जिंदा तो रहता है लेकिन उसका प्राण प्रवाह डिस्टर्ब हो जाता है। जब इंसान को पैरालिसिस किसी अंग में होता है तो इसका अर्थ होता है इंसान जिंदा है तो आत्मा ने शरीर धारण किया हुआ है। लेकिन आत्मा से बहते प्राण का मार्ग अवरुद्ध हो गया है उस अंग के लिए, इसलिए वो काम नहीं कर रहा। प्राणिक चिकित्सा इसी प्राण प्रवाह के संचार पर कार्य करती है।

मोटे अर्थ पर यदि प्राण को दो भागों में बांटे तो एक अणु(एटम) है और दूसरा विभु(चेतन) है। ठीक उसी प्रकार अग्नि के ही दो भाग है एक मूल अग्नि(चेतन) और दूसरी उससे निकलती चिंगारी(एटम)। दोनों वस्तुतः एक ही है और एक से दूसरे का उद्भव माने या यूं कहें एक का गुण दूसरा है। इसी आधार पर कठोपनिषद और पँचकोशिय साधना पुस्तक में आत्मा के गुण को ही प्राण कहा गया है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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