प्रश्न - *दी, हम लोग यज्ञ करवाते हैं। इसकी जानकारी आस-पड़ोस में सबको हो गयी है। अतः सब घर में सुख-शांति के लिए और अन्य अवसरों पर हमसे यज्ञ तो करवाते हैं। लेकिन नियमित गायत्री साधना और युगसाहित्य का स्वाध्याय नहीं करते। किसी समस्या पर कोई शॉर्टकट समाधान चाहते हैं। आत्मकल्याण के लिए कुछ नहीं करते और न हीं लोकहित कुछ करना चाहते हैं। घण्टों टीवी देखने और अन्य पर्सनल कार्यो में खर्च करते है। इन्हें प्रेरित करने का और सही राह पर लाने का कोई उपाय है तो बताइए।*
उत्तर - आत्मीय भाई, आपकी चिंता जायज है।
आप एक आध्यात्मिक चिकित्सक की तरह रोग समझ रहे हो और समाधान भी आपके पास है। लेकिन समाधान क्योंकि टाइम टेकिंग है और थोड़ा शुरू में बोरिंग इसलिए जनता उसे स्वीकार नहीं कर रही।
उदाहरण - एक योग के प्रशिक्षक के पास कुछ स्त्रीयां और कुछ पुरुष आये और उन्होंने बताया कि घुटनों में दर्द शुरू हो गया है। तो योग प्रशिक्षक ने बताया कि बहन भाइयो रात को आंतो में भोजन पचता है और बड़ी देर जमा रहने के कारण उसमें गैस उठती है। और पूरे शरीर में फैलती है। जोड़ो में वो गैस स्टोर होती है और खून का संचरण रोक देती है। अतः यदि आप प्रज्ञा योग और पैरों के योग सुबह दो ग्लास जल खाली पेट पीकर करेंगी तो आपके घुटने का दर्द ठीक हो जाएगा। अब नियमित यह अभ्यास डाल लें।
अब जो बुद्धमती स्त्री और बुद्धिमान पुरूष थे उन्होंने बात मानी और रोगमुक्त हो गए।
कुछ ओवर स्मार्ट और शॉर्टकट की चाह रखने वाले और सुबह देर तक सोना और सुबह बेड टी पीने वालों को यह सुबह योग-व्यायाम की बात नहीं जमी। लेकिन दर्द से छुटकारा तो चाहते थे, एलोपैथी के पास गए। भरपेट पेनकिलर खाया। फिर स्थिति बिगड़ने पर घुटना बदलवाया। घोर कष्ट पाया।
योग-व्यायाम अपनाने वालों को केवल आलस्य और देर तक सोने की आदत छोड़नी पड़ी, और अन्यो को जीवन भर अपने पैरों पर चलने की चाहत छोड़नी पड़ी। बिस्तर पर ही पड़े रहना पड़ा।
यही हाल मानसिक स्वास्थ्य और सांसारिक समस्या का है। जब हम गायत्री परिवार के परिजन योग प्रशिक्षक की तरह आसान उपाय सुखी रहने का और आनन्दमय जीवन व्यतीत करने का लोगों को बताते हैं:- उन्हें नित्य गायत्री जप, ध्यान, प्राणायाम और स्वाध्याय करने को कहते है। उत्तम क्वालिटी का मानसिक आहार - युगसाहित्य के रूप में देते हैं। तो उन्हें यह योग की तरह टाइम टेकिंग और बोरिंग प्रोसेस लगता है।
उन्हें किसान की तरह खेत में सरसों बोने की प्रोसेस नहीं सीखनी। उन्हें तो हथेली में जादूगर की तरह क्विक सरसों उगाना है। खुद ही विचार करो क्या जादू के सरसों से तेल निकलेगा और किचन में खाना पक सकेगा? क्या एलोपैथी के पेनकिलर से घुटने का इलाज संभव है? क्या ढोंगी बाबाओं के जादुई शॉर्टकट से आध्यात्मिक सफलता मिलेगी? पेप्सी की जगह कोला पीने से ××× बाबा के कहने पर कृपा बरसेगी? नहीं न...
हमारा काम है लोगों को ज्ञान गंगा तक ले जाना, जल को हम जबरजस्ती नहीं पीला सकते। पीना तो उन्हें ही पड़ेगा। योग प्रशिक्षक योग सिखा सकता है, लोगों को योगाभ्यास रोज स्वयं ही करना पड़ेगा। हम गायत्री साधना-जप और ध्यान सीखा सकते है, लोगों को नित्य साधना तो स्वयं ही करना पड़ेगा। हम अखण्डज्योति पत्रिका और युग साहित्य लोगों तक पहुंचा सकते है, पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। लेकिन पढ़ना तो उन्हें ही पड़ेगा।
हमारे हाथ मे केवल प्रयास है, लोगों के भले के लिए उन्हें प्रत्येक तथ्यों को प्रमाण सहित समझाइए। इसके बाद भी वो नहीं करते तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ दीजिए। अपनी आत्मा में बोझ मत लीजिये।
आप यदि 100 लोगों तक भी आध्यात्मिक मानसिक स्वास्थ्य के , आनन्दमय जीवन का फार्मूला पहुंचाते हैं यदि उसमे से 10 भी आपकी बात मानकर अपना आत्मकल्याण करते हैं। तो आपकी मेहनत सफल है। 10 की खुशी मनाइए और 90 लोगों के न जुड़ने का शोक मत मनाइए। आपने ज्ञान गंगा तक 100 लोगों को ले गए, तो आपको 100 के प्रयास का पुण्यफ़ल मिलेगा। 10 ने पिया तो उनका भला हुआ, जिन्होंने नहीं पिया तो उसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते।
एक सत्य घटना एक ऑफिस में मेडीक्लेम पॉलिसी ऑप्शनल थी, HR ने सबको प्रेरित किया, लेकिन कुछ लोग 6000 रुपये सालाना खर्च नहीं करना चाहते थे नहीं लिए। बहुत से लोगों ने लिया। जिन्होंने नहीं लिया वो बोले हम तो स्वस्थ है हमे क्या जरूरत। फिर क्या उनमें से एक को हार्ट अटैक आया, यदि मेडीक्लेम पॉलिसी ली होती तो ख़र्च कम्पनी उठाती। लेकिन 6 लाख रुपये हॉस्पिटल का खर्च और ऑपरेशन के बाद का ख़र्च घर गिरवी रख के दिया।
गायत्री साधना एक आध्यात्मिक मेडीक्लेम पॉलिसी है, जो स्वस्थ है और सुखी है उनके लिए भी लेना जरूरी है। साधना जरूरी है, जिससे यदि भविष्य में कोई प्रारब्ध आना हो तो उसका भी सहज समाधान हो सके। गायत्री उपासना एक मानसिक योग भी है, अभी यदि स्वस्थ है तो भी नित्य मानसिक योग करें। जिससे भविष्य में कभी रोगी न हों।
यह चयन ऑप्शनल है, आप केवल प्रेरित कर सकते हैं। जबजस्ती किसी को फ़ोर्स करके नहीं करवा सकते।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, आपकी चिंता जायज है।
आप एक आध्यात्मिक चिकित्सक की तरह रोग समझ रहे हो और समाधान भी आपके पास है। लेकिन समाधान क्योंकि टाइम टेकिंग है और थोड़ा शुरू में बोरिंग इसलिए जनता उसे स्वीकार नहीं कर रही।
उदाहरण - एक योग के प्रशिक्षक के पास कुछ स्त्रीयां और कुछ पुरुष आये और उन्होंने बताया कि घुटनों में दर्द शुरू हो गया है। तो योग प्रशिक्षक ने बताया कि बहन भाइयो रात को आंतो में भोजन पचता है और बड़ी देर जमा रहने के कारण उसमें गैस उठती है। और पूरे शरीर में फैलती है। जोड़ो में वो गैस स्टोर होती है और खून का संचरण रोक देती है। अतः यदि आप प्रज्ञा योग और पैरों के योग सुबह दो ग्लास जल खाली पेट पीकर करेंगी तो आपके घुटने का दर्द ठीक हो जाएगा। अब नियमित यह अभ्यास डाल लें।
अब जो बुद्धमती स्त्री और बुद्धिमान पुरूष थे उन्होंने बात मानी और रोगमुक्त हो गए।
कुछ ओवर स्मार्ट और शॉर्टकट की चाह रखने वाले और सुबह देर तक सोना और सुबह बेड टी पीने वालों को यह सुबह योग-व्यायाम की बात नहीं जमी। लेकिन दर्द से छुटकारा तो चाहते थे, एलोपैथी के पास गए। भरपेट पेनकिलर खाया। फिर स्थिति बिगड़ने पर घुटना बदलवाया। घोर कष्ट पाया।
योग-व्यायाम अपनाने वालों को केवल आलस्य और देर तक सोने की आदत छोड़नी पड़ी, और अन्यो को जीवन भर अपने पैरों पर चलने की चाहत छोड़नी पड़ी। बिस्तर पर ही पड़े रहना पड़ा।
यही हाल मानसिक स्वास्थ्य और सांसारिक समस्या का है। जब हम गायत्री परिवार के परिजन योग प्रशिक्षक की तरह आसान उपाय सुखी रहने का और आनन्दमय जीवन व्यतीत करने का लोगों को बताते हैं:- उन्हें नित्य गायत्री जप, ध्यान, प्राणायाम और स्वाध्याय करने को कहते है। उत्तम क्वालिटी का मानसिक आहार - युगसाहित्य के रूप में देते हैं। तो उन्हें यह योग की तरह टाइम टेकिंग और बोरिंग प्रोसेस लगता है।
उन्हें किसान की तरह खेत में सरसों बोने की प्रोसेस नहीं सीखनी। उन्हें तो हथेली में जादूगर की तरह क्विक सरसों उगाना है। खुद ही विचार करो क्या जादू के सरसों से तेल निकलेगा और किचन में खाना पक सकेगा? क्या एलोपैथी के पेनकिलर से घुटने का इलाज संभव है? क्या ढोंगी बाबाओं के जादुई शॉर्टकट से आध्यात्मिक सफलता मिलेगी? पेप्सी की जगह कोला पीने से ××× बाबा के कहने पर कृपा बरसेगी? नहीं न...
हमारा काम है लोगों को ज्ञान गंगा तक ले जाना, जल को हम जबरजस्ती नहीं पीला सकते। पीना तो उन्हें ही पड़ेगा। योग प्रशिक्षक योग सिखा सकता है, लोगों को योगाभ्यास रोज स्वयं ही करना पड़ेगा। हम गायत्री साधना-जप और ध्यान सीखा सकते है, लोगों को नित्य साधना तो स्वयं ही करना पड़ेगा। हम अखण्डज्योति पत्रिका और युग साहित्य लोगों तक पहुंचा सकते है, पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। लेकिन पढ़ना तो उन्हें ही पड़ेगा।
हमारे हाथ मे केवल प्रयास है, लोगों के भले के लिए उन्हें प्रत्येक तथ्यों को प्रमाण सहित समझाइए। इसके बाद भी वो नहीं करते तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ दीजिए। अपनी आत्मा में बोझ मत लीजिये।
आप यदि 100 लोगों तक भी आध्यात्मिक मानसिक स्वास्थ्य के , आनन्दमय जीवन का फार्मूला पहुंचाते हैं यदि उसमे से 10 भी आपकी बात मानकर अपना आत्मकल्याण करते हैं। तो आपकी मेहनत सफल है। 10 की खुशी मनाइए और 90 लोगों के न जुड़ने का शोक मत मनाइए। आपने ज्ञान गंगा तक 100 लोगों को ले गए, तो आपको 100 के प्रयास का पुण्यफ़ल मिलेगा। 10 ने पिया तो उनका भला हुआ, जिन्होंने नहीं पिया तो उसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते।
एक सत्य घटना एक ऑफिस में मेडीक्लेम पॉलिसी ऑप्शनल थी, HR ने सबको प्रेरित किया, लेकिन कुछ लोग 6000 रुपये सालाना खर्च नहीं करना चाहते थे नहीं लिए। बहुत से लोगों ने लिया। जिन्होंने नहीं लिया वो बोले हम तो स्वस्थ है हमे क्या जरूरत। फिर क्या उनमें से एक को हार्ट अटैक आया, यदि मेडीक्लेम पॉलिसी ली होती तो ख़र्च कम्पनी उठाती। लेकिन 6 लाख रुपये हॉस्पिटल का खर्च और ऑपरेशन के बाद का ख़र्च घर गिरवी रख के दिया।
गायत्री साधना एक आध्यात्मिक मेडीक्लेम पॉलिसी है, जो स्वस्थ है और सुखी है उनके लिए भी लेना जरूरी है। साधना जरूरी है, जिससे यदि भविष्य में कोई प्रारब्ध आना हो तो उसका भी सहज समाधान हो सके। गायत्री उपासना एक मानसिक योग भी है, अभी यदि स्वस्थ है तो भी नित्य मानसिक योग करें। जिससे भविष्य में कभी रोगी न हों।
यह चयन ऑप्शनल है, आप केवल प्रेरित कर सकते हैं। जबजस्ती किसी को फ़ोर्स करके नहीं करवा सकते।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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