*दो अक्टूबर - व्यसनमुक्ति यज्ञ*
अखिलविश्व गायत्री परिवार आप सबका जंतर-मंतर पर नशामुक्ति-व्यसनमुक्ति यज्ञ में आह्वाहन करता है। सभी 2 अक्टूबर दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक कार्यक्रम में समय से पहुंचे। सभी धर्म सम्प्रदाय का आह्वाहन हैं।
सरकार नशे के निषेध के नियम और कानून बनाती, माता-पिता नशा न करने के लिए प्रेरित करते हैं, *लेकिन क्या कभी किसी ने युवामन के उस दर्द को समझा है या समझने की कोशिश की है? जिस कारण युवा नशे की गर्त में गिरता है?*
*आइये युवाओं में बढ़ती नशे के प्रति रुचि का कारण निवारण समझते हैं:-*
*कारण और निवारण* - बच्चा एक सुखद संसार का स्वप्न देखते हुए मस्ती करते हुए युवा होता है। बचपन में मात्र एक बार रोने पर जिद पूरी की जाती थी, और प्यार से चुप करवाया जाता था। लेकिन युवा होने पर अब तो पूरा संसार रुला रहा है। कम्पटीशन एग्जाम की टेंशन, जॉब मिलने में कठिनाई, व्यवसाय खड़े करने में कठिनाई, रिश्तों में बढ़ता स्वार्थ, बड़ी मछली छोटी मछली को खाने में जहां लगी हो वहां भयग्रस्त युवा इस विकट पीड़ादायक परिस्थिति से पलायन करना चाहता है।
यह हम सब जानते हैं कि हम देवत्व और पशुत्व के बीच के जीव हैं। अतः वर्तमान जीवन से दूर जाना है तो दो ही मार्ग हैं:- या तो कदम देवत्व की ओर बढ़ाएं या कदम पशुत्व की ओर बढ़ाएं।
देवत्व पहाड़ी है, और पशुवत खाई है, यह सभी जानते हैं ।
पशुवत बनना आसान है, गहरी खाई में गिरने में अत्यंत कम वक्त लगता है, पहाड़ी चढ़ने में वक्त लगता है। नशे में थोड़ी देर के लिए मनुष्यवत अवस्था से मन का पलायन हो जाता है। जिस प्रकार कुत्ते को जॉब और समाज की कोई टेंशन नहीं, वैसे ही नशे में डूबा पशुवत मन समाजिक व्यवस्था को भूलकर बुद्धि से परे चला जाता है। और केवल पशुवत शरीर के अनुभव में रहता है। तुरन्त पशुवत अवस्था में पहुंचकर युवा सोचता है कि वो टेंशनमुक्त हो गया। लेकिन टेंशन तो बढ़ती रहती है, टेंशन का कारण तो जहां था वहीं अभी भी है। जब नशा उतरने पर पुनः मनुष्यवत का बोध होता है तो पुनः पलायन हेतु नशे में डूबना चाहता है। इधर शरीर इस जहरीले रसायन को पचाने लगता है, तो पहले जो कम मात्रा में नशे से काम चल जाता था, उसे बढाना पड़ता है। इस तरह नशे के सेवन से वो लाचार-बीमार होकर समाज से अलग थलग पड़ जाता है। अब खाई से पुनः मनुष्य की अवस्था मे आने हेतु चढ़ाई चढ़ने पड़ेगी। मनुष्य से देवत्व वाली यात्रा का ही नियम अपनाना पड़ेगा। अतः मनुष्यवत बनने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। पुनः मातापिता, परिवारजन, समाज को टीमवर्क से दुर्गति में पड़े पशुवत युवा को मुख्यधारा में लाना होगा।
*पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, 3200 अनमोल साहित्य के लेखक, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के फाउंडर, अखिलविश्व गायत्री परिवार के संस्थापक - युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं*- पहाड़ी चढ़ना थोड़ा कठिन कार्य है लेकिन असम्भव नहीं। शुरू में बोरिंग लगता है, लेकिन कुछ समय पश्चात इसके परिणाम आने लगते हैं और परमशान्ति मिलती है। देवत्व की ऊंचाई में चढ़कर मनुष्यत्व की कठिनाई को आसानी से अवलोकन करके हल किया जा सकता है। बालक निर्माण एक टीम वर्क है। इसके लिए माता-पिता, परिवारजन, शिक्षक और समाज को एकजुट होकर आध्यात्मिक वातावरण विनिर्मित करना पड़ेगा, युगनिर्माण करना होगा। बचपन से बच्चे को ध्यान और स्वाध्याय से जोड़ना होगा, जिससे बड़े होते होते वो देवत्व की चढ़ाई चढ़ने में अभ्यस्त हो जाये और उसे अध्यात्म के सुखद अनुभव मिलने लगे और मन को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सके। सन्तुलित आनन्दित और सद्बुध्दि युक्त युवा मन कभी नशे का सेवन नहीं करेगा।
युगऋषि ने मनुष्य से देवत्व की ओर बढ़ने की विधिव्यवस्था आसान तरीके से 3200 साहित्य के रूप में उपलब्ध करवाया है। अतः युवा के मनोविज्ञान को समझे और अपने बच्चे में देवत्व जगाने और उसके भावनात्मक निर्माण में आज से ही जुट जाएं। और समाज के सदस्य होने के नाते अपने आसपास के युवाओं को भी नशे से बचायें- उनकी भावनात्मक काउंसलिंग करें, ध्यान-योग-प्राणयाम-स्वाध्याय से जोड़े।
आइये नशामुक्ति यज्ञ हेतु जंतर मंतर में उपस्थित होकर अपनी भावनात्मक आहुति दीजिये। अच्छी सोच-भले लोगो को एकजुट होने का समय आ गया है।
*हम तो जा रहे हैं जंतर मंतर...और क्या आप आएंगे? हमे जरूर कन्फर्म करें...*
सभी जंतर मंतर पर कुछ पॉकेट पुस्तक यदि सम्भव हो तो बांटने हेतु जरूर लेकर आये:-
1- मानसिक संतुलन
2- सफल जीवन की दिशा धारा
3- प्राणघातक व्यसन
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- निराशा को पास न फटकने दें
7- कठिनाइयों डरे नहीं लड़े
8- शक्तिवान बनिये
9- दृष्टिकोण ठीक रखें
10- पुरानी अखण्डज्योति पत्रिका
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
अखिलविश्व गायत्री परिवार आप सबका जंतर-मंतर पर नशामुक्ति-व्यसनमुक्ति यज्ञ में आह्वाहन करता है। सभी 2 अक्टूबर दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक कार्यक्रम में समय से पहुंचे। सभी धर्म सम्प्रदाय का आह्वाहन हैं।
सरकार नशे के निषेध के नियम और कानून बनाती, माता-पिता नशा न करने के लिए प्रेरित करते हैं, *लेकिन क्या कभी किसी ने युवामन के उस दर्द को समझा है या समझने की कोशिश की है? जिस कारण युवा नशे की गर्त में गिरता है?*
*आइये युवाओं में बढ़ती नशे के प्रति रुचि का कारण निवारण समझते हैं:-*
*कारण और निवारण* - बच्चा एक सुखद संसार का स्वप्न देखते हुए मस्ती करते हुए युवा होता है। बचपन में मात्र एक बार रोने पर जिद पूरी की जाती थी, और प्यार से चुप करवाया जाता था। लेकिन युवा होने पर अब तो पूरा संसार रुला रहा है। कम्पटीशन एग्जाम की टेंशन, जॉब मिलने में कठिनाई, व्यवसाय खड़े करने में कठिनाई, रिश्तों में बढ़ता स्वार्थ, बड़ी मछली छोटी मछली को खाने में जहां लगी हो वहां भयग्रस्त युवा इस विकट पीड़ादायक परिस्थिति से पलायन करना चाहता है।
यह हम सब जानते हैं कि हम देवत्व और पशुत्व के बीच के जीव हैं। अतः वर्तमान जीवन से दूर जाना है तो दो ही मार्ग हैं:- या तो कदम देवत्व की ओर बढ़ाएं या कदम पशुत्व की ओर बढ़ाएं।
देवत्व पहाड़ी है, और पशुवत खाई है, यह सभी जानते हैं ।
पशुवत बनना आसान है, गहरी खाई में गिरने में अत्यंत कम वक्त लगता है, पहाड़ी चढ़ने में वक्त लगता है। नशे में थोड़ी देर के लिए मनुष्यवत अवस्था से मन का पलायन हो जाता है। जिस प्रकार कुत्ते को जॉब और समाज की कोई टेंशन नहीं, वैसे ही नशे में डूबा पशुवत मन समाजिक व्यवस्था को भूलकर बुद्धि से परे चला जाता है। और केवल पशुवत शरीर के अनुभव में रहता है। तुरन्त पशुवत अवस्था में पहुंचकर युवा सोचता है कि वो टेंशनमुक्त हो गया। लेकिन टेंशन तो बढ़ती रहती है, टेंशन का कारण तो जहां था वहीं अभी भी है। जब नशा उतरने पर पुनः मनुष्यवत का बोध होता है तो पुनः पलायन हेतु नशे में डूबना चाहता है। इधर शरीर इस जहरीले रसायन को पचाने लगता है, तो पहले जो कम मात्रा में नशे से काम चल जाता था, उसे बढाना पड़ता है। इस तरह नशे के सेवन से वो लाचार-बीमार होकर समाज से अलग थलग पड़ जाता है। अब खाई से पुनः मनुष्य की अवस्था मे आने हेतु चढ़ाई चढ़ने पड़ेगी। मनुष्य से देवत्व वाली यात्रा का ही नियम अपनाना पड़ेगा। अतः मनुष्यवत बनने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। पुनः मातापिता, परिवारजन, समाज को टीमवर्क से दुर्गति में पड़े पशुवत युवा को मुख्यधारा में लाना होगा।
*पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, 3200 अनमोल साहित्य के लेखक, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के फाउंडर, अखिलविश्व गायत्री परिवार के संस्थापक - युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं*- पहाड़ी चढ़ना थोड़ा कठिन कार्य है लेकिन असम्भव नहीं। शुरू में बोरिंग लगता है, लेकिन कुछ समय पश्चात इसके परिणाम आने लगते हैं और परमशान्ति मिलती है। देवत्व की ऊंचाई में चढ़कर मनुष्यत्व की कठिनाई को आसानी से अवलोकन करके हल किया जा सकता है। बालक निर्माण एक टीम वर्क है। इसके लिए माता-पिता, परिवारजन, शिक्षक और समाज को एकजुट होकर आध्यात्मिक वातावरण विनिर्मित करना पड़ेगा, युगनिर्माण करना होगा। बचपन से बच्चे को ध्यान और स्वाध्याय से जोड़ना होगा, जिससे बड़े होते होते वो देवत्व की चढ़ाई चढ़ने में अभ्यस्त हो जाये और उसे अध्यात्म के सुखद अनुभव मिलने लगे और मन को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सके। सन्तुलित आनन्दित और सद्बुध्दि युक्त युवा मन कभी नशे का सेवन नहीं करेगा।
युगऋषि ने मनुष्य से देवत्व की ओर बढ़ने की विधिव्यवस्था आसान तरीके से 3200 साहित्य के रूप में उपलब्ध करवाया है। अतः युवा के मनोविज्ञान को समझे और अपने बच्चे में देवत्व जगाने और उसके भावनात्मक निर्माण में आज से ही जुट जाएं। और समाज के सदस्य होने के नाते अपने आसपास के युवाओं को भी नशे से बचायें- उनकी भावनात्मक काउंसलिंग करें, ध्यान-योग-प्राणयाम-स्वाध्याय से जोड़े।
आइये नशामुक्ति यज्ञ हेतु जंतर मंतर में उपस्थित होकर अपनी भावनात्मक आहुति दीजिये। अच्छी सोच-भले लोगो को एकजुट होने का समय आ गया है।
*हम तो जा रहे हैं जंतर मंतर...और क्या आप आएंगे? हमे जरूर कन्फर्म करें...*
सभी जंतर मंतर पर कुछ पॉकेट पुस्तक यदि सम्भव हो तो बांटने हेतु जरूर लेकर आये:-
1- मानसिक संतुलन
2- सफल जीवन की दिशा धारा
3- प्राणघातक व्यसन
4- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- निराशा को पास न फटकने दें
7- कठिनाइयों डरे नहीं लड़े
8- शक्तिवान बनिये
9- दृष्टिकोण ठीक रखें
10- पुरानी अखण्डज्योति पत्रिका
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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