Wednesday 26 September 2018

मंन्त्र विज्ञान सम्बन्धी शंका समाधान* प्रश्न - *मंन्त्र भी तो शब्द ही तो हैं, एक तरह से संस्कृत भाषा के वाक्य फ़िर इनके जप से हमें लाभ कैसे मिल सकता है? यज्ञ में भी मंन्त्र प्रयोग के बिना भी हवन करने पर क्या लाभ न मिलेगा?*

*मंन्त्र विज्ञान सम्बन्धी शंका समाधान*

प्रश्न - *मंन्त्र भी तो शब्द ही तो हैं, एक तरह से संस्कृत भाषा के वाक्य फ़िर इनके जप से हमें लाभ कैसे मिल सकता है? यज्ञ में भी मंन्त्र प्रयोग के बिना भी हवन करने पर क्या लाभ न मिलेगा?*

उत्तर - ध्वनि ही मूल है, ध्वनि का गुंथन वर्ण है, वर्ण स्वर और व्यंजन का संयोजन शब्द, और शब्द का संयोजन वाक्य बनता है। ठीक उसी तरह जैसे गेंहूँ मूल है लेकिन उसे पीस कर और विभिन्न गूंथने की प्रक्रिया और विभिन्न बनाने की प्रक्रिया अपनाने पर रोटी, पूड़ी, पराँठे, मालपुए इत्यादि बनते हैं। पकने पर उसका प्रभाव बढ़ जाता है।

ईंट का मूल मिट्टी ही है, लेकिन मिट्टी से मारने पर चोट न लगेगी। उसी मिट्टी को विधवत पकाकर ईंट बनाने पर उसका रूपांतरण ठोस में हो जाता है। इससे मजबूत घर भी बन सकता है और इससे मारने पर चोट भी लग सकती है।

यद्यपि यह सच है कि एक गेंहू के कण से रोटी नहीं बन सकती। एक मिट्टी के कण से ईंट नहीं बन सकती, निश्चित संख्या चाहिए। उसी तरह केवल एक बार मंन्त्र जप से प्रभाव नहीं दिखेगा। उसे विधिवत निश्चित संख्या में ध्यानपूर्वक जपना पड़ेगा।

*इसी तरह ध्वनियों के आध्यात्मिक वैज्ञानिक गुंथन, अर्थ, ध्वनि तरंग का वैज्ञानिक विश्लेषण करके और पर्यावरण, वातारण और अन्तःकरण पर पड़ने वाले प्रभाव, स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर पर पढ़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करके इसे ऋषियों ने बनाया है। अतः मंन्त्र अत्यंत प्रभावशाली होते है। तप द्वारा ये और अधिक ऊर्जावान बन जाते हैं।*

*शब्द शक्ति का महत्व विज्ञाननुमोदित है। स्थूल, श्रव्य, शब्द भी बड़ा काम करते हैं फिर सूक्ष्म कर्णातीत अश्रव्य ध्वनियों का महत्व तो और भी अधिक है। मंत्र का उच्चारण तो धीमा ही होता है उससे अतीन्द्रिय शब्द शक्ति को ही प्रचंड परिमाण में उत्पन्न किया जाता है।*

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्यजी ने *शब्द ब्रह्म* और इसकी वैज्ञानिकता पर एक वांग्मय औऱ कई पुस्तको में इस पर लेख लिखा है। अखण्डज्योति पत्रिका में भी विभिन्न लेख लिखे है। उनके ही बिंदुओं का संकलन हम यहां करके मंन्त्र विज्ञान समझा रहे हैं।

टेलीफ़ोन, टेपरिकॉर्डर और रेडियो  इत्यादि ध्वनि यंत्र यह सिद्ध कर चुके हैं कि शब्द कभी मरता नहीं है। इसे कहीं भी भेजा जा सकता है और सुना जा सकता है। ध्वनि से उतपन्न ऊर्जा को यंत्रों के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में बदलकर कोई भी उपकरण भी चलाया जा सकता है। विज्ञान यह भी सिद्ध कर चुका है कि एक प्रकार की एनर्जी को दूसरे प्रकार की एनर्जी में बदल सकते हैं।

विज्ञान ने ध्वनि तरंगों में सन्निहित असाधारण शक्ति को समझा है और उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के क्रिया-कलापों को पूरा करना अथवा लाभ उठाना आरम्भ किया है। वस्तुओं की मोटाई नापने-धातुओं के गुण दोष परखने का काम अब ध्वनि तरंगें ही प्रधान रूप में पूरा करती है। कार्बन ब्लैक का उत्पादन वस्त्रों की धुलाई, रासायनिक सम्मिश्रण, कागज की लुगदी, गीलेपन को सुखाना, धातुओं की ढलाई, प्लास्टिक धागों का निर्माण प्रभृति उद्योगों में ध्वनि तरंगों के उपयोग से एक नया व्यावसायिक अध्याय आरम्भ हुआ है।

इलेक्ट्रोनिक्स के उच्च विज्ञानी ऐसा यंत्र बनाने में सफल नहीं हो सके जो श्रवण शक्ति की दृष्टि से कान के समान संवेदनशील हो। कानों की जो झिल्ली आवाज पकड़कर मस्तिष्क तक पहुँचाती है उसकी मुटाई एक इंच के ढाई हजारवें हिस्से के बराबर है, फिर भी वह कोई चार लाख प्रकार के शब्द भेद पहचान सकती है और उनका अंतर कर सकती है। अपनी, गाय की या मोटर की आवाज को हम अलग से पहचान लेते हैं और उनका अंतर कर सकते हैं यद्यपि लगभग वैसी ही आवाज दूसरी गायों की या मोटरों की होती है, पर जो थोड़ा सा भी अंतर उनमें रहता है, अपने कान के लिए उतने से ही अंतर कर सकना और पहचान सकना संभव हो जाता है। कितनी दूर से, किस दिशा से, किस मनुष्य की आवाज आ रही है, यह पहचानने में हमें कुछ कठिनाई नहीं होती। यह कान की सूक्ष्म संवेदनशीलता का ही चमत्कार है। टेलीफोन यंत्र इतनी बारीकियाँ नहीं पकड़ सकता है।

श्रवण शक्ति का पूरी तरह संबंध मानसिक एकाग्रता से है। जब ध्यान यदि कहीं गहरे चिंतन में डूबा हो या कोई मनोरंजक दृश्य देख रहा हो, तो ध्यान न होने पर हमें कोई पुकारे तो भी हमें कुछ भी सुनाई नहीं देता।

मनुष्य के कान केवल उन्हीं ध्वनि तरंगों को अनुभव कर सकते हैं जिनकी संख्या प्रति सैकिण्ड 20 से लेकर 20 सहस्र डेसिबल तक की होती है। इससे कम और अधिक संख्या वाले ध्वनि प्रवाह होते तो हैं, पर वे मनुष्य की कर्णेन्द्रिय द्वारा नहीं सुने जा सकते।

इस तथ्य को समझने पर उच्चारण का जितना महत्त्व है उससे ज्यादा मानसिक जप का महत्व समझ में आता है। सदैव उच्चारण आवश्यक नहीं। मानसिक शक्ति का प्रयोग करके ध्यान भूमिका में सूक्ष्म जिव्हा द्वारा मन ही मन जो जप किया जाता है, उसमें भी ध्वनि तरंगें भली प्रकार उठती रहती हैं। अपना प्रभाव दिखाती हैं।

अकेला गायत्री मंत्र ही सभी उपलब्धियाँ प्रदान करने में समर्थ है जो अन्य बहुत सी साधनाओं के करने से प्राप्त होती हैं। इस मंत्र की साधना को सफल बनाने में चार तथ्यों का समावेश है। 1-शब्द शक्ति 2-मानसिक एकाग्रता 3-चारित्रिक श्रेष्ठता और 4-अटूट श्रद्धा।

गायत्री मंत्र से कितने ही प्रकार के चमत्कार एवं वरदान उपलब्ध हो सकते हैं। यह सत्य है, पर उसके साथ यह तथ्य भी जुड़ा हुआ है। वह मंत्र उपरोक्त चार परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुआ होना चाहिए।

गायत्री मंत्र का प्रथम आधार है शब्द शक्ति। इस में अक्षरों का गुँथन एक ऐसे विशिष्ट क्रम से किया गया है जो शब्द शास्त्र के गूढ़ सिद्धान्तों पर आधारित है। यों अर्थ की दृष्टि से गायत्री मंत्र सरल है। उसमें परमात्मा से सद्बुद्धि की याचना की गई है। इस शिक्षा को भी समझना चाहिए, पर मंत्र की शक्ति मात्र इस शिक्षा में नहीं, उसकी शब्द रचना से भी जुड़ी हुई है। वाद्य यंत्रों का अमुक क्रम से बजाने पर ध्वनि प्रवाह निस्सृत होता है। कण्ठ को अमुक आरोह-अवरोहों के अनुरूप उतार चढ़ाव के स्वरों से युक्त करके जो ध्वनि प्रवाह बनता है उसे गायन कहते हैं। ठीक इसी प्रकार मुख से उच्चारित मंत्र को अमुक शब्द क्रम के अनुसार बार-बार लगातार संचालन करने से जो विशेष प्रकार का ध्वनि प्रवाह विनिर्मित होता है वही मंत्र की भौतिक क्षमता है। मुख से उच्चारित मंत्राक्षर सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करते हैं। उसमें सन्निहित तीन ग्रंथियों, षटचक्रों-षोडश मातृकाओं, चौबीस उपत्यिकाओं एवं चौरासी नाड़ियों को झंकृत करने में मंत्र का उच्चारण क्रम बहुत काम करता है। दिव्य शक्ति के प्रादुर्भूत होने में यह शब्दोच्चार भी एक बहुत बड़ा कारण एवं माध्यम है।

महर्षि पातंजलि के *सादृश्य और आन्तर्य* के सिद्धांत के अनुसार मंन्त्र जिस प्रकार का जपा जाता है वैसी ही सादृश्य ऊर्जा ब्रह्मांड से साधक की ओर आकर्षित होती है। यज्ञ में भी इसी सिद्धांत के अनुसार औषधियों की कारण शक्ति और ब्रह्माण्ड की सादृश्य एनर्जी को आकर्षित किया जाता है और लाभ उठाया जाता है। निश्चित संख्या में जप करना अनिवार्य होता है।

अत्यंत आधुनिक सरल शब्दों में ब्रह्मांड के गूगल से वही डेटा एनर्जी आपतक पहुंचेगा जो आप मंन्त्र द्वारा सर्च कमांड में भेजोगे।

उम्मीद करती हूं मंन्त्र जप से क्यों लाभ मिलता है यह आपको समझ आ गया होगा। और अधिक जानकारी के लिए युगऋषि का साहित्य पढ़िये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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