Monday 24 September 2018

कविता - माँ वन्दनीया

*माँ वन्दनीया*

हमने तो तुम्हें देखा ही नहीं,
स्थूल रूप में,
चेतना शक्ति में ही तुम्हें जाना,
सूक्ष्म रूप में।

हमारे लिए तो तुम माँ,
जगतजननी हो,
वात्सल्य से भरी,
ममतामयी हो।

तुम्हें पुकारने को,
बस माँ माँ कहते हैं,
बिन मंन्त्र के भी तुमसे,
सहज़ दिल की बात करते हैं।

तुम तो कण कण में,
समाई हुई हो,
तुममें गुरुदेव और तुम गुरुदेव में,
समाई हुई हो।

जन्मतिथि और महाप्रयाण,
यह तो तुम्हारी लीला मात्र है,
शिव-शक्ति रूप में तो,
तुम्हारा कैलाश में ही वास है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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