प्रश्न - *दी, वर्तमान कम्पनी में मैं अक्टूबर 2008 से हूँ, लगभग 10 वर्ष हो गए। इस कम्पनी की सफ़लता के लिए मैंने कितनी मेहनत की, कितने sacrifice/त्याग किये, लेकिन आज कॉस्ट कटिंग में मुझे ही कम्पनी छोड़ने को बोल दिया गया, इन्होंने मुझे दूध में मक्खी की तरह निकाल दिया। मेरी कम्पनी ने मेरी मेहनत को एक झटके में भुला दिया। पिछले 4 वर्ष से मेरी सैलरी में इन लोगों ने इंक्रीमेंट भी नहीं किया। जिस ऑफिस में मैं कभी राज किया करता था आज उसे छोड़ते हुए मुझे बहुत दुःख हो रहा है। मैं इस दुःख और पीड़ा से कैसे उबरूं? मार्गदर्शन करें...*
उत्तर - आत्मीय भाई, मुझे आपके कष्ट की अनुभूति है।
लेकिन आइये समझते हैं, दुःख का मूल कारण:-
👉🏼कम्पनी से आपका क्या अभिप्राय है? कम्पनी में काम करने वाले लोग या कम्पनी का मालिक या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर या कम्पनी के शेयरहोल्डर या आपका मैनेजर? आप किसे कम्पनी कह कर सम्बोधित कर रहे हैं और किसने आपकी कद्र नहीं की?
👉🏼कम्पनी समाज की तरह वर्चुअल है, और काम करने वाले लोग रियल है। कम्पनी में काम करने वाले लोग पिछले 10 साल में कितने आये और कितने गए। कम्पनी का मालिक केवल उन्हीं को याद रखेगा जिससे अक्सर उसकी बातचीत होती होगी, शायद आप कबसे कम्पनी में है उसे याद भी न होगा। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को भी शायद ही याद होंगे। कम्पनी के शेयरहोल्डर को भी कम्पनी में आपके वजूद का कोई पता नहीं। आपका मैनेजर भी पिछले दस साल में दो चार तो बदल ही गए होंगे, आपकी टीम सदस्य भी बदले होंगे। पिछले दस साल में या तो कम्पनी का भवन बदल गया होगा या उसका इंटीरियर चेंज जरूर हुआ होगा।
स्वयं विचार कीजिये ऐसा कौन कम्पनी में उच्चपदासीन व्यक्ति है जो आपके दस वर्षों की मेहनत का साक्षी है और जिसे आपकी कद्र करनी चाहिए।
जगत मिथ्या है, यहां कुछ भी स्थायी नहीं, फिर मोह कैसा? दुःख किस बात का?
अगले चरण में यह समझते है पिछले 4 वर्ष से सैलरी नहीं बढ़ी। आधुनिक तेजी से बदलती टेक्नोलॉजी की बाढ़ और आउट सोर्सिंग तेज़ी से लोगों की जॉब सुरसा की तरह खा रहा है। एक वक्त कोडक फोटोग्राफी की दुनियां का बादशाह था। लाखो एम्प्लोयी जॉबलेस हो गए, केवल डिजिटल कैमरा के आते ही। एयरटेल टेलीकॉम में राज कर रहा था, लेकिन मुकेश अम्बानी के 4G जियो के आते ही एयरटेल की बादशाहत ख़त्म, बाक़ी टेलीकॉम कम्पनियों को मर्जर करना पड़ रहा है। लाखों जॉबलेस होंगें।
परिवर्तन संसार का नियम है, यहां कुछ भी स्थायी नहीं। जिसने भी इन कम्पनियों को दस से बीस वर्ष दिए होंगे उन्हें भी निकलना पड़ेगा। कॉस्ट कटिंग की मार ज्यादा सैलरी वाले पुराने एम्प्लोयी पर सबसे पहले पड़ती है। घाटे में चल रही कम्पनियां अपने अस्तित्व को बचा नहीं पा रही तो सैलरी कहाँ से बढ़ाएंगी। जूनियर एम्प्लोयी की सैलरी छोटी होती है, उनका उत्साह वर्धन दो चार हज़ार बढ़ाने पर संभव है इसलिए हो जाता है। इसलिए केवल उनकी सैलरी बढ़ती है।
बदलते दौर में स्वयं को नई नई सम्बन्धित टेक्नोलॉजी में अपग्रेड करके ही बचा जा सकता है।
तुलसीदास जी कहते हैं- *अजहूँ नाव समुद्र में का जाने का होय?* अर्थात जॉब करने वाले एम्प्लोयी हो या बिजनेसमैन उसे कभी भी निश्चिंत होकर नहीं बैठना चाहिये। जब तक जॉब और व्यवसाय है उसमें स्थिरता हेतु कुशलता बढाते रहना चाहिए। विपरीत परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। समुद्र चलते जहाज को जितना खतरा समुद्री तूफान, ग्लेशियर, समुद्री जीव इत्यादि से है, वैसे ही जॉब करने वाले को उतना ही खतरा बदलती टेक्नोलॉजी, बदलते बोर्ड ऑफ डायरेक्टर, बदलता सीईओ, बदलता मार्किट और बदलती लोगों की मांग से है।
पानी का जहाज़ सबसे ज्यादा सुरक्षित पोर्ट पर है और उसे खतरा समुद्र में है। और हवाई जहाज सबसे ज्यादा सुरक्षित एयरपोर्ट पर है और खतरा आकाश में है। लेकिन दोनों का महत्त्व तब है, उन्हें इज्जत तब मिलेगी, जब जल जहाज समुद्र में उतरे और हवाई जहाज खुले आकाश में उड़े।
खतरा उठाना ही जिंदगी है, संघर्ष ही जिंदगी है। ठहरना मृत्यु है।
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते है, - *मोह सकल व्याधिन कर मूला* अर्थात मोह ही समस्त दुख का कारण है। *कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन* अर्थात कर्म करो लेकिन उसके फल पर आशक्ति मत रखो।
तुमने 10 साल कम्पनी को दिए तो कम्पनी ने 10 साल लगातार तुम्हे सैलरी दी, अर्थात तुम्हारी मेहनत का मूल्य मिलता रहा। घर बनाने वाला मजदूर घर बनाने के बाद उस घर का मालिक नहीं बनता चाहे उसने जितनी भी मेहनत की हो, वो उस घर मे उसका कार्य खत्म होते ही एक पल और नहीं ठहर सकता। उसे केवल मजदूरी मिलती है, प्रशंशा या अनुसंशा मिलती है।
ध्यान से गौर करो तो हम सब भी पढ़े लिखे लेबर ही तो हैं, जो कम्पनी को आगे बढाने के लिए दिन रात मेहनत करते हैं। हमारी उपयोगिता जिस क्षण कम्पनी के लिए खत्म होगी, अगले ही क्षण हमे कम्पनी छोड़ना होगा।
जिस प्रकार घर बनाने वाला मजदूर घर का मोह नहीं करता, और दूसरे घर मे काम ढूंढने निकल पड़ता है, हे एम्प्लोयी अर्जुन🙏🏻 *तुम भी वर्तमान कम्पनी का मोह त्याग दो और नई कम्पनी में काम की तलाश में जुट जाओ*। एम्प्लॉई आत्मा की तरह अमर है, केवल शरीर की तरह कम्पनी बदलती है। जो इस कम्पनी में कभी था वो आज दूसरी कम्पनी में है। जो दूसरी कम्पनी में था आज वो इस कम्पनी में है। कर्मठ एम्प्लोयी कभी नहीं जॉबलेस होता, बस कम्पनी बदलने में थोड़ा वक्त लगता है बस।
युगऋषि कहते है नज़रिया बदलते ही नज़ारे बदल जाते हैं। हम भी 14 वर्ष से जॉब कर रहे हैं, नाइट शिफ्ट में जॉब और दिन में गुरुकार्य। बस नज़रिया बदलने के कारण सुखी है🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, मुझे आपके कष्ट की अनुभूति है।
लेकिन आइये समझते हैं, दुःख का मूल कारण:-
👉🏼कम्पनी से आपका क्या अभिप्राय है? कम्पनी में काम करने वाले लोग या कम्पनी का मालिक या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर या कम्पनी के शेयरहोल्डर या आपका मैनेजर? आप किसे कम्पनी कह कर सम्बोधित कर रहे हैं और किसने आपकी कद्र नहीं की?
👉🏼कम्पनी समाज की तरह वर्चुअल है, और काम करने वाले लोग रियल है। कम्पनी में काम करने वाले लोग पिछले 10 साल में कितने आये और कितने गए। कम्पनी का मालिक केवल उन्हीं को याद रखेगा जिससे अक्सर उसकी बातचीत होती होगी, शायद आप कबसे कम्पनी में है उसे याद भी न होगा। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को भी शायद ही याद होंगे। कम्पनी के शेयरहोल्डर को भी कम्पनी में आपके वजूद का कोई पता नहीं। आपका मैनेजर भी पिछले दस साल में दो चार तो बदल ही गए होंगे, आपकी टीम सदस्य भी बदले होंगे। पिछले दस साल में या तो कम्पनी का भवन बदल गया होगा या उसका इंटीरियर चेंज जरूर हुआ होगा।
स्वयं विचार कीजिये ऐसा कौन कम्पनी में उच्चपदासीन व्यक्ति है जो आपके दस वर्षों की मेहनत का साक्षी है और जिसे आपकी कद्र करनी चाहिए।
जगत मिथ्या है, यहां कुछ भी स्थायी नहीं, फिर मोह कैसा? दुःख किस बात का?
अगले चरण में यह समझते है पिछले 4 वर्ष से सैलरी नहीं बढ़ी। आधुनिक तेजी से बदलती टेक्नोलॉजी की बाढ़ और आउट सोर्सिंग तेज़ी से लोगों की जॉब सुरसा की तरह खा रहा है। एक वक्त कोडक फोटोग्राफी की दुनियां का बादशाह था। लाखो एम्प्लोयी जॉबलेस हो गए, केवल डिजिटल कैमरा के आते ही। एयरटेल टेलीकॉम में राज कर रहा था, लेकिन मुकेश अम्बानी के 4G जियो के आते ही एयरटेल की बादशाहत ख़त्म, बाक़ी टेलीकॉम कम्पनियों को मर्जर करना पड़ रहा है। लाखों जॉबलेस होंगें।
परिवर्तन संसार का नियम है, यहां कुछ भी स्थायी नहीं। जिसने भी इन कम्पनियों को दस से बीस वर्ष दिए होंगे उन्हें भी निकलना पड़ेगा। कॉस्ट कटिंग की मार ज्यादा सैलरी वाले पुराने एम्प्लोयी पर सबसे पहले पड़ती है। घाटे में चल रही कम्पनियां अपने अस्तित्व को बचा नहीं पा रही तो सैलरी कहाँ से बढ़ाएंगी। जूनियर एम्प्लोयी की सैलरी छोटी होती है, उनका उत्साह वर्धन दो चार हज़ार बढ़ाने पर संभव है इसलिए हो जाता है। इसलिए केवल उनकी सैलरी बढ़ती है।
बदलते दौर में स्वयं को नई नई सम्बन्धित टेक्नोलॉजी में अपग्रेड करके ही बचा जा सकता है।
तुलसीदास जी कहते हैं- *अजहूँ नाव समुद्र में का जाने का होय?* अर्थात जॉब करने वाले एम्प्लोयी हो या बिजनेसमैन उसे कभी भी निश्चिंत होकर नहीं बैठना चाहिये। जब तक जॉब और व्यवसाय है उसमें स्थिरता हेतु कुशलता बढाते रहना चाहिए। विपरीत परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। समुद्र चलते जहाज को जितना खतरा समुद्री तूफान, ग्लेशियर, समुद्री जीव इत्यादि से है, वैसे ही जॉब करने वाले को उतना ही खतरा बदलती टेक्नोलॉजी, बदलते बोर्ड ऑफ डायरेक्टर, बदलता सीईओ, बदलता मार्किट और बदलती लोगों की मांग से है।
पानी का जहाज़ सबसे ज्यादा सुरक्षित पोर्ट पर है और उसे खतरा समुद्र में है। और हवाई जहाज सबसे ज्यादा सुरक्षित एयरपोर्ट पर है और खतरा आकाश में है। लेकिन दोनों का महत्त्व तब है, उन्हें इज्जत तब मिलेगी, जब जल जहाज समुद्र में उतरे और हवाई जहाज खुले आकाश में उड़े।
खतरा उठाना ही जिंदगी है, संघर्ष ही जिंदगी है। ठहरना मृत्यु है।
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते है, - *मोह सकल व्याधिन कर मूला* अर्थात मोह ही समस्त दुख का कारण है। *कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन* अर्थात कर्म करो लेकिन उसके फल पर आशक्ति मत रखो।
तुमने 10 साल कम्पनी को दिए तो कम्पनी ने 10 साल लगातार तुम्हे सैलरी दी, अर्थात तुम्हारी मेहनत का मूल्य मिलता रहा। घर बनाने वाला मजदूर घर बनाने के बाद उस घर का मालिक नहीं बनता चाहे उसने जितनी भी मेहनत की हो, वो उस घर मे उसका कार्य खत्म होते ही एक पल और नहीं ठहर सकता। उसे केवल मजदूरी मिलती है, प्रशंशा या अनुसंशा मिलती है।
ध्यान से गौर करो तो हम सब भी पढ़े लिखे लेबर ही तो हैं, जो कम्पनी को आगे बढाने के लिए दिन रात मेहनत करते हैं। हमारी उपयोगिता जिस क्षण कम्पनी के लिए खत्म होगी, अगले ही क्षण हमे कम्पनी छोड़ना होगा।
जिस प्रकार घर बनाने वाला मजदूर घर का मोह नहीं करता, और दूसरे घर मे काम ढूंढने निकल पड़ता है, हे एम्प्लोयी अर्जुन🙏🏻 *तुम भी वर्तमान कम्पनी का मोह त्याग दो और नई कम्पनी में काम की तलाश में जुट जाओ*। एम्प्लॉई आत्मा की तरह अमर है, केवल शरीर की तरह कम्पनी बदलती है। जो इस कम्पनी में कभी था वो आज दूसरी कम्पनी में है। जो दूसरी कम्पनी में था आज वो इस कम्पनी में है। कर्मठ एम्प्लोयी कभी नहीं जॉबलेस होता, बस कम्पनी बदलने में थोड़ा वक्त लगता है बस।
युगऋषि कहते है नज़रिया बदलते ही नज़ारे बदल जाते हैं। हम भी 14 वर्ष से जॉब कर रहे हैं, नाइट शिफ्ट में जॉब और दिन में गुरुकार्य। बस नज़रिया बदलने के कारण सुखी है🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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