प्रश्न - *दी, एक महंत जी है जो लोगों को भड़का रहे थे कि ब्राह्मणों में एकता होती तो आज भी राज करते, गायत्री का अधिकार किसी को नहीं मिलता। अन्य जातियाँ और स्त्रियां जिन्हें गायत्री जप का अधिकार तक न था वो आज अनुष्ठान और यज्ञ करवा रही है। गायत्री गुप्त है, इसे उच्चारित माइक पर कर रहे हैं घोर अनर्थ कर रहे हैं। केवल ब्राह्मण पुरुष ही जप और यज्ञ कर सकता है, स्त्रियां विषबेल है। स्त्रियों को तप से मुक्ति का अधिकार नहीं है...इत्यादि इत्यादि। इन्हें क्या जवाब दूँ, मार्गदर्शन करें।*
उत्तर - आत्मीय बहन, समझाया समझदारों को जाता है। विक्षिप्त कुत्सित कुतार्किक को नहीं।
व्याकरण में व्यक्ति से स्त्री-पुरुष दोनों को सम्बोधित करके बोला जाता है।
उदाहरण - व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए। व्यक्ति को सत्य बोलना चाहिए। (यह स्त्री पुरुष दोनों के लिए सम्बोधन है)
👉🏼 गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु गौ है।(यहां ब्राह्मण एक ब्राह्मणत्व की अवस्था है जो स्त्री पुरूष दोनों को ही अर्जित करनी पड़ती है) जो सदाचारी है, संयमी, है, परोपकारी है निर्लोभी और निस्वार्थ है ऐसा ब्रह्मपरायण व्यक्ति गायत्री उपासना के समस्त लाभों को प्राप्त कर सकता है।
इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि जो जन्म से ब्राह्मण कुल में पैदा हुए हैं वे ही गायत्री जप करें, अन्य वर्ण के लोग गायत्री उपासना न करें। यह महामंत्र तो मानव मात्र का उपासना मन्त्र है। जिस तरह पंच तत्वों से ब्राह्मण पुरुष बना है, रक्त मांस मज्जा का ढांचा है, और प्राण ऊर्जा से जीवित है। वैसे ही अन्य जाति और स्त्रियां भी है। सूर्य-चन्द्र-धरती-आकाश-जल पंचतत्वों, समस्त देवी देवताओं और गायत्री जप का अधिकार, जनेऊ का अधिकार सबको है जो ब्रह्म में रमने को तैयार है। ब्राह्मणत्व जन्मजात नहीं होता कर्म प्रधान है। जीवन शैली है। धर्म है।
गायत्री जप का अधिकार उन्हें नहीं है - जिनका मन तमसाच्छन्न होता है उन्हें उपासना की बात भी उन्हें बुरी लगती है, उसका उपहास करते हैं, अविश्वास ग्रस्त होने के कारण उन्हें इसके लिए न तो अभिरुचि होती है और न अवकाश ही मिलता है। ऐसे लोग जिन्होंने उपासना और वास्तविकता का बहिष्कार कर रखा है अन्त्यज या चाण्डाल कहे जाते हैं। उनका अधिकार गायत्री में नहीं है। यह अधिकार कोई बाहर का आदमी देता या रोकता नहीं है वरन् उसकी अंतःवृत्ति ही प्रतिबंध लगा देती है। आज भी ऐसे अनेकों व्यक्ति हैं जो उपासना की कितनी ही उपयोगिता बताने पर भी उस ओर आकर्षित नहीं होते। ऐसे लोगों को अनाधिकारी ही कहा जायेगा।
अनुष्ठान के वक्त - उपांशु अर्थात होठ हिलते है और अत्यंत धीमे स्वर में जप किया जाता है।
लेकिन यज्ञ के समय मंन्त्र जोर से बोले जाते है और मंन्त्र शक्ति विज्ञान से औषधियों के कारण को उभारा जाता है। साउंड एनर्जी और हीट एनर्जी मिलकर इच्छित परिणाम देती है। अतः मंन्त्र जोर से बोला जाता है।
*उसने सच कहा है- स्त्री विषबेल है और पुरुष उस विषबेल का फ़ल विषफल है। जैसे वो और उसकी माता जी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।*😇🙏🏻😇
जो लोग स्त्री को अमृत बेल मानेंगे तो उस अमृत बेल माँ का पुत्र अमृतफल होगा।
*पुरुष का तो शरीर भी स्त्री अर्थात उसकी माँ के ही रक्त मांस मज्जा से निर्मित है। तो अपवित्र स्त्री से पवित्र पुरुष जन्मने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।* 😂
कुछ लोग कहते हैं जब पूर्ण पवित्र मन हों जाए तभी गायत्री जप करें, ये तो लगभग वैसा हो गया कि जब पूर्ण ज्ञान हो जाये तब स्कूल में एडमिशन लेना।
गायत्री जपोगे तो विवेक जगेगा, विवेक जगेगा तो सही गलत का फर्क करने वाली हंस बुद्धि मिलेगी। मन धीरे धीरे पवित्र स्वतः होता जाएगा। उपासना-साधना-आराधना की निरंतरता साधक को निखारती चली जायेगी।
यदि आपसे कोई कहे गायत्री मंत्र जपने से अनर्थ होगा तो उससे पूँछो तो ज्ञानी जी ऐसा मंन्त्र गारण्टी-वारण्टी के साथ बताओ जिसके जपने से किसी का कभी भी अनर्थ नहीं होगा।
स्त्री पुरुष एक दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं। वर्ण व्यवस्था कर्म प्रधान है, डॉक्टर का बेटा जन्म से डॉक्टर नहीं हो सकता, उसे स्वयं पढ़ना पड़ेगा। उसी तरह ब्राह्मण का बेटा जन्म से ब्राह्मणत्व नहीं प्राप्त कर सकता। उसे ब्राह्मणत्व अर्जित करने के लिए स्वयं को साधना होगा।
जो व्यक्ति ब्राह्मणत्व हेतु स्वयं को साधेगा वो ब्राह्मणत्व पायेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। ऐसे ब्राह्मणत्व चेतना से सम्पन्न व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) की गायत्री कामधेनु की तरह समस्त मनोकामना पूरी करेगी इसमें भी कोई सन्देह नहीं है। ऐसे साधक को मुक्ति तो स्वतः ही मिल जाएगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, समझाया समझदारों को जाता है। विक्षिप्त कुत्सित कुतार्किक को नहीं।
व्याकरण में व्यक्ति से स्त्री-पुरुष दोनों को सम्बोधित करके बोला जाता है।
उदाहरण - व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए। व्यक्ति को सत्य बोलना चाहिए। (यह स्त्री पुरुष दोनों के लिए सम्बोधन है)
👉🏼 गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु गौ है।(यहां ब्राह्मण एक ब्राह्मणत्व की अवस्था है जो स्त्री पुरूष दोनों को ही अर्जित करनी पड़ती है) जो सदाचारी है, संयमी, है, परोपकारी है निर्लोभी और निस्वार्थ है ऐसा ब्रह्मपरायण व्यक्ति गायत्री उपासना के समस्त लाभों को प्राप्त कर सकता है।
इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि जो जन्म से ब्राह्मण कुल में पैदा हुए हैं वे ही गायत्री जप करें, अन्य वर्ण के लोग गायत्री उपासना न करें। यह महामंत्र तो मानव मात्र का उपासना मन्त्र है। जिस तरह पंच तत्वों से ब्राह्मण पुरुष बना है, रक्त मांस मज्जा का ढांचा है, और प्राण ऊर्जा से जीवित है। वैसे ही अन्य जाति और स्त्रियां भी है। सूर्य-चन्द्र-धरती-आकाश-जल पंचतत्वों, समस्त देवी देवताओं और गायत्री जप का अधिकार, जनेऊ का अधिकार सबको है जो ब्रह्म में रमने को तैयार है। ब्राह्मणत्व जन्मजात नहीं होता कर्म प्रधान है। जीवन शैली है। धर्म है।
गायत्री जप का अधिकार उन्हें नहीं है - जिनका मन तमसाच्छन्न होता है उन्हें उपासना की बात भी उन्हें बुरी लगती है, उसका उपहास करते हैं, अविश्वास ग्रस्त होने के कारण उन्हें इसके लिए न तो अभिरुचि होती है और न अवकाश ही मिलता है। ऐसे लोग जिन्होंने उपासना और वास्तविकता का बहिष्कार कर रखा है अन्त्यज या चाण्डाल कहे जाते हैं। उनका अधिकार गायत्री में नहीं है। यह अधिकार कोई बाहर का आदमी देता या रोकता नहीं है वरन् उसकी अंतःवृत्ति ही प्रतिबंध लगा देती है। आज भी ऐसे अनेकों व्यक्ति हैं जो उपासना की कितनी ही उपयोगिता बताने पर भी उस ओर आकर्षित नहीं होते। ऐसे लोगों को अनाधिकारी ही कहा जायेगा।
अनुष्ठान के वक्त - उपांशु अर्थात होठ हिलते है और अत्यंत धीमे स्वर में जप किया जाता है।
लेकिन यज्ञ के समय मंन्त्र जोर से बोले जाते है और मंन्त्र शक्ति विज्ञान से औषधियों के कारण को उभारा जाता है। साउंड एनर्जी और हीट एनर्जी मिलकर इच्छित परिणाम देती है। अतः मंन्त्र जोर से बोला जाता है।
*उसने सच कहा है- स्त्री विषबेल है और पुरुष उस विषबेल का फ़ल विषफल है। जैसे वो और उसकी माता जी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।*😇🙏🏻😇
जो लोग स्त्री को अमृत बेल मानेंगे तो उस अमृत बेल माँ का पुत्र अमृतफल होगा।
*पुरुष का तो शरीर भी स्त्री अर्थात उसकी माँ के ही रक्त मांस मज्जा से निर्मित है। तो अपवित्र स्त्री से पवित्र पुरुष जन्मने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।* 😂
कुछ लोग कहते हैं जब पूर्ण पवित्र मन हों जाए तभी गायत्री जप करें, ये तो लगभग वैसा हो गया कि जब पूर्ण ज्ञान हो जाये तब स्कूल में एडमिशन लेना।
गायत्री जपोगे तो विवेक जगेगा, विवेक जगेगा तो सही गलत का फर्क करने वाली हंस बुद्धि मिलेगी। मन धीरे धीरे पवित्र स्वतः होता जाएगा। उपासना-साधना-आराधना की निरंतरता साधक को निखारती चली जायेगी।
यदि आपसे कोई कहे गायत्री मंत्र जपने से अनर्थ होगा तो उससे पूँछो तो ज्ञानी जी ऐसा मंन्त्र गारण्टी-वारण्टी के साथ बताओ जिसके जपने से किसी का कभी भी अनर्थ नहीं होगा।
स्त्री पुरुष एक दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं। वर्ण व्यवस्था कर्म प्रधान है, डॉक्टर का बेटा जन्म से डॉक्टर नहीं हो सकता, उसे स्वयं पढ़ना पड़ेगा। उसी तरह ब्राह्मण का बेटा जन्म से ब्राह्मणत्व नहीं प्राप्त कर सकता। उसे ब्राह्मणत्व अर्जित करने के लिए स्वयं को साधना होगा।
जो व्यक्ति ब्राह्मणत्व हेतु स्वयं को साधेगा वो ब्राह्मणत्व पायेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। ऐसे ब्राह्मणत्व चेतना से सम्पन्न व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) की गायत्री कामधेनु की तरह समस्त मनोकामना पूरी करेगी इसमें भी कोई सन्देह नहीं है। ऐसे साधक को मुक्ति तो स्वतः ही मिल जाएगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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