प्रश्न - *दी, हम सभी MBA के स्टूडेंट है और आपके प्रश्नोत्तरी पढ़ते है। हम सबके बीच युवाओं में बढ़ती अश्लीलता, रोड-पार्क-मॉल में चूमते और प्रेम प्रदर्शन करते युवा और जरूरी पवित्रता पर डिबेट हो रहा था, तो हम सब एक सहमति में नहीं आ पाए, कुछ कहते है प्रेम नेचुरल है इसे बन्धन में रखना अनुचित है, तो कोई कहता है प्रेम प्रदर्शन खुले में अनुचित है। इसलिए हम सब इस पर आपकी राय जानना चाहते हैं?*
उत्तर - आत्मीय युवा भाईयों और बहनों,
सबसे पहले यह समझो कि पवित्रता और अश्लीलता दोनों ही मानव मन का दृष्टिकोण हैं। दोनों ही मानव मन की मनोदशा है। पवित्रता(व्यवस्थित मन) और अश्लीलता(अव्यवस्थित मन) का प्रतीक है।
मनुष्य और पशु में अंतर बुद्धि का विकास करता है, बेचारे पशु केवल अपनी शारीरिक क्षमता का ही उपयोग कर सके है। लेकिन मनुष्य ने बुद्धि के प्रयोग से, मानसिक आध्यात्मिक शक्ति के प्रयोग से अपनी क्षमता को हज़ार गुना बढ़ा लिया। चलने-दौड़ने की क्षमता को बाइक-गाड़ी के रूप में बढ़ाया, तो देखने, सुनने, सोचने और कम्युनिकेट करने की क्षमता को मोबाइल, इंटरनेट, टीवी, लेपटॉप, कम्प्यूटर इत्यादि के रूप में बढ़ाया, कच्चे भोजन को पकाने में उसने पूरा का पूरा होटल मैनेजमेंट बना दिया। इत्यादि इत्यादि.... मछली उड़ नहीं सकती पक्षी तैर नहीं सकता...लेकिन मनुष्य बुद्धि प्रयोग से हवाई जहाज से उड़ सकता है और जल जहाज में सफर कर सकता है।
मनुष्य इसी तरह चेतन ऊर्जा के प्रयोग से ब्रह्माण्ड की पॉवर उपयोग करके अपनी क्षमता को हज़ार गुना आध्यात्मिक शक्ति और योग से बढ़ा सकता है।
अब जब सभ्यता का विकास बुद्धि की ऊर्जा से हुआ और चेतना की उन्नत अवस्था से हुआ तो मनुष्य पशु से भिन्न हो गया। अब जो पशु के लिए नेचुरल है वो मनुष्य के लिए नेचुरल नहीं रह गया।
उदाहरण - कुत्ता बिल्ली को जब जिस वक़्त पॉटी या सुसु आएगा वो बिना स्थान-समय-लोगो की परवाह किये बिना टांग उठा के कर देते हैं। ये उनके लिए नेचुरल है। लेकिन जब देश की राजधानी दिल्ली में कुत्ते बिल्ली की तरह मनुष्यो को रोड किनारे मूत्र विसर्जन करते या रेलवे पटरी पर मल विसर्जन करते आप देखते है तो आप उसे नेचुरली नहीं लेते। आप कहते है यह असभ्य है, इन्हें वॉशरूम उपयोग करना चाहिए। भारत सरकार को मनुष्य रूपी कुत्ते बिल्लियों के लिए खुले में शौच न करें के लिए अभियान चलाना पड़ रहा है।
इसी तरह पशु के रिलेशनशिप में मौसम के अनुसार सन्तानोत्पत्ति हेतु यौन इच्छा(SEX) जागृत होता है, वो मल विसर्जन(पॉटी) या मूत्रविसर्जन(सुसु) की तरह ही बिना स्थान-समय-लोगो की परवाह किये बिना खुले में ही प्रेम प्रदर्शन और सेक्स कर लेते हैं।
मनुष्य को खुले में पॉटी-सुसु करने पर असभ्य शब्द से सम्बोधित किया जाता है, और खुले में प्रेम प्रदर्शन-सेक्स को अश्लील हरकत शब्द से सम्बोधित किया जाता है।
जो पशु के लिए नेचुरल है वो नेचुरल कार्य मनुष्य सभ्य रूप में शारीरिक पॉटी बाथरूम में और मानसिक पॉटी बेडरूम में करता है। तो उसे क्रमशः सभ्य और पवित्र समझा जाता है।
मनुष्य बुद्धिमान है, अतः मनुष्य को बच्चे के पालन पोषण और समाज की सुचारू व्यवस्था हेतु क्रमशः मकान और विवाह की व्यवस्था बनाई। जिससे जिसके बच्चे वो परवरिश करे और उनका उत्तरदायित्य उठाये। पशुओं में जायज़ और नाजायज सन्तान नहीं होती, लेकिन मनुष्यों में होती है। अतः विवाह अनिवार्य कर दिया गया।
जब हम शारीरिक पॉटी करके हल्के हो रहे है तो उसके प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं, उसी तरह दो लोग जब मानसिक पॉटी करके हल्के हो रहे हैं तो उसके भी सामूहिक प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
आजकल के युवा पाश्चात्य देशों का अंधानुकरण कर रहे हैं, और अपनी मानसिक गुलामी को आधुनिकता का नाम दे रहे हैं।
उनकी शारीरिक अश्लीलता की कॉपी तो कर रहे हैं, लेकिन उनके देश की आर्थिक मज़बूती, टेक्नोलॉजी में उनके राज, इत्यादि अच्छे गुणों को कॉपी नहीं कर रहे। एक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूरे देश को गुलाम कर लिया। अब तो देश मे वाल मार्ट, अमेज़न, बिग बास्केट, एप्पल, ओप्पो, माइक्रोसॉफ्ट इत्यादि विदेशी ब्रांड और कम्पनियों की भरमार है। ग़ुलाम बनने में कितना वक्त लगेगा।
हमारे देश के युवा मिलकर स्वयं के लिए भारतीय कम्प्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं बना सके, खुद को इनोवेशन में टॉप में नहीं ले जा सके, ओलम्पिक में मेडल में हमसे छोटे देश टॉप में होते है, हम न खेल में टॉप में है, न बिजनेश में टॉप में है, न हमारा देश विदेशों की तरह साफ स्वच्छ है। विश्व पटल में 16% लोग भारत देश के जॉब देने योग्य हैं। बाक़ी क्या????
जो देश पशु समान बिल्ली कुत्ते जैसे लोगों का सार्वजनिक मूत्रविसर्जन और मल विसर्जन का गवाह है, जो देश पढ़े लिखे युवाओं का कैंसर की वार्निंग पढ़कर भी नशे में डूबने के गवाह है, जो पशुवत कुत्ता बिल्ली समान जनसँख्या वृद्धि करते देशवासियों का गवाह है, जिस देश में अभी भी पढ़े लिखे युवाओं के दो बच्चों के बीच मात्र साल भर का अंतर देखने को मिलता हो, जिस देश मे नंन्ही कन्या का रेप युवक करता हो, जिस देश मे रेप का ग्राफ दिन ब दिन बढ़ता हो, जहां बेटी गर्भ में सुरक्षित न हो, जिस देश मे जीवन का उद्देश्य केवल जॉब पेट प्रजनन तक सीमित हो जाये फिर उस देश का पतन कौन रोक सकता है?
आओ हम सब मिलकर पुनः ऋषि परम्परा का पालन करें, अपनी ऊर्जा को यूं व्यर्थ न करें।
पवित्रता को दूसरे शब्दों में मनुष्य जीवन की प्रबन्ध व्यवस्था कहते हैं। मनुष्य जीवन की प्रबन्ध व्यवस्था के दो माध्यम है एक धर्म तंत्र और दूसरा राज तंत्र। दुर्घटना होने ही न देना धर्म तंत्र का कार्य है, दुर्घटना होने के बाद आगे क्या करना है और किसे कैसे क्या दण्ड देना है यह राजतंत्र का कार्य है। यदि धर्म तंत्र मजबूत हो जाये तो कानून की आवश्यकता ही न पड़ेगी।
अतः पुस्तक - *आध्यात्मिक काम विज्ञान* आप सभी युवाओं को पढ़ना चाहिए। तभी आप पवित्रता और अश्लीलता को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय युवा भाईयों और बहनों,
सबसे पहले यह समझो कि पवित्रता और अश्लीलता दोनों ही मानव मन का दृष्टिकोण हैं। दोनों ही मानव मन की मनोदशा है। पवित्रता(व्यवस्थित मन) और अश्लीलता(अव्यवस्थित मन) का प्रतीक है।
मनुष्य और पशु में अंतर बुद्धि का विकास करता है, बेचारे पशु केवल अपनी शारीरिक क्षमता का ही उपयोग कर सके है। लेकिन मनुष्य ने बुद्धि के प्रयोग से, मानसिक आध्यात्मिक शक्ति के प्रयोग से अपनी क्षमता को हज़ार गुना बढ़ा लिया। चलने-दौड़ने की क्षमता को बाइक-गाड़ी के रूप में बढ़ाया, तो देखने, सुनने, सोचने और कम्युनिकेट करने की क्षमता को मोबाइल, इंटरनेट, टीवी, लेपटॉप, कम्प्यूटर इत्यादि के रूप में बढ़ाया, कच्चे भोजन को पकाने में उसने पूरा का पूरा होटल मैनेजमेंट बना दिया। इत्यादि इत्यादि.... मछली उड़ नहीं सकती पक्षी तैर नहीं सकता...लेकिन मनुष्य बुद्धि प्रयोग से हवाई जहाज से उड़ सकता है और जल जहाज में सफर कर सकता है।
मनुष्य इसी तरह चेतन ऊर्जा के प्रयोग से ब्रह्माण्ड की पॉवर उपयोग करके अपनी क्षमता को हज़ार गुना आध्यात्मिक शक्ति और योग से बढ़ा सकता है।
अब जब सभ्यता का विकास बुद्धि की ऊर्जा से हुआ और चेतना की उन्नत अवस्था से हुआ तो मनुष्य पशु से भिन्न हो गया। अब जो पशु के लिए नेचुरल है वो मनुष्य के लिए नेचुरल नहीं रह गया।
उदाहरण - कुत्ता बिल्ली को जब जिस वक़्त पॉटी या सुसु आएगा वो बिना स्थान-समय-लोगो की परवाह किये बिना टांग उठा के कर देते हैं। ये उनके लिए नेचुरल है। लेकिन जब देश की राजधानी दिल्ली में कुत्ते बिल्ली की तरह मनुष्यो को रोड किनारे मूत्र विसर्जन करते या रेलवे पटरी पर मल विसर्जन करते आप देखते है तो आप उसे नेचुरली नहीं लेते। आप कहते है यह असभ्य है, इन्हें वॉशरूम उपयोग करना चाहिए। भारत सरकार को मनुष्य रूपी कुत्ते बिल्लियों के लिए खुले में शौच न करें के लिए अभियान चलाना पड़ रहा है।
इसी तरह पशु के रिलेशनशिप में मौसम के अनुसार सन्तानोत्पत्ति हेतु यौन इच्छा(SEX) जागृत होता है, वो मल विसर्जन(पॉटी) या मूत्रविसर्जन(सुसु) की तरह ही बिना स्थान-समय-लोगो की परवाह किये बिना खुले में ही प्रेम प्रदर्शन और सेक्स कर लेते हैं।
मनुष्य को खुले में पॉटी-सुसु करने पर असभ्य शब्द से सम्बोधित किया जाता है, और खुले में प्रेम प्रदर्शन-सेक्स को अश्लील हरकत शब्द से सम्बोधित किया जाता है।
जो पशु के लिए नेचुरल है वो नेचुरल कार्य मनुष्य सभ्य रूप में शारीरिक पॉटी बाथरूम में और मानसिक पॉटी बेडरूम में करता है। तो उसे क्रमशः सभ्य और पवित्र समझा जाता है।
मनुष्य बुद्धिमान है, अतः मनुष्य को बच्चे के पालन पोषण और समाज की सुचारू व्यवस्था हेतु क्रमशः मकान और विवाह की व्यवस्था बनाई। जिससे जिसके बच्चे वो परवरिश करे और उनका उत्तरदायित्य उठाये। पशुओं में जायज़ और नाजायज सन्तान नहीं होती, लेकिन मनुष्यों में होती है। अतः विवाह अनिवार्य कर दिया गया।
जब हम शारीरिक पॉटी करके हल्के हो रहे है तो उसके प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं, उसी तरह दो लोग जब मानसिक पॉटी करके हल्के हो रहे हैं तो उसके भी सामूहिक प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
आजकल के युवा पाश्चात्य देशों का अंधानुकरण कर रहे हैं, और अपनी मानसिक गुलामी को आधुनिकता का नाम दे रहे हैं।
उनकी शारीरिक अश्लीलता की कॉपी तो कर रहे हैं, लेकिन उनके देश की आर्थिक मज़बूती, टेक्नोलॉजी में उनके राज, इत्यादि अच्छे गुणों को कॉपी नहीं कर रहे। एक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूरे देश को गुलाम कर लिया। अब तो देश मे वाल मार्ट, अमेज़न, बिग बास्केट, एप्पल, ओप्पो, माइक्रोसॉफ्ट इत्यादि विदेशी ब्रांड और कम्पनियों की भरमार है। ग़ुलाम बनने में कितना वक्त लगेगा।
हमारे देश के युवा मिलकर स्वयं के लिए भारतीय कम्प्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं बना सके, खुद को इनोवेशन में टॉप में नहीं ले जा सके, ओलम्पिक में मेडल में हमसे छोटे देश टॉप में होते है, हम न खेल में टॉप में है, न बिजनेश में टॉप में है, न हमारा देश विदेशों की तरह साफ स्वच्छ है। विश्व पटल में 16% लोग भारत देश के जॉब देने योग्य हैं। बाक़ी क्या????
जो देश पशु समान बिल्ली कुत्ते जैसे लोगों का सार्वजनिक मूत्रविसर्जन और मल विसर्जन का गवाह है, जो देश पढ़े लिखे युवाओं का कैंसर की वार्निंग पढ़कर भी नशे में डूबने के गवाह है, जो पशुवत कुत्ता बिल्ली समान जनसँख्या वृद्धि करते देशवासियों का गवाह है, जिस देश में अभी भी पढ़े लिखे युवाओं के दो बच्चों के बीच मात्र साल भर का अंतर देखने को मिलता हो, जिस देश मे नंन्ही कन्या का रेप युवक करता हो, जिस देश मे रेप का ग्राफ दिन ब दिन बढ़ता हो, जहां बेटी गर्भ में सुरक्षित न हो, जिस देश मे जीवन का उद्देश्य केवल जॉब पेट प्रजनन तक सीमित हो जाये फिर उस देश का पतन कौन रोक सकता है?
आओ हम सब मिलकर पुनः ऋषि परम्परा का पालन करें, अपनी ऊर्जा को यूं व्यर्थ न करें।
पवित्रता को दूसरे शब्दों में मनुष्य जीवन की प्रबन्ध व्यवस्था कहते हैं। मनुष्य जीवन की प्रबन्ध व्यवस्था के दो माध्यम है एक धर्म तंत्र और दूसरा राज तंत्र। दुर्घटना होने ही न देना धर्म तंत्र का कार्य है, दुर्घटना होने के बाद आगे क्या करना है और किसे कैसे क्या दण्ड देना है यह राजतंत्र का कार्य है। यदि धर्म तंत्र मजबूत हो जाये तो कानून की आवश्यकता ही न पड़ेगी।
अतः पुस्तक - *आध्यात्मिक काम विज्ञान* आप सभी युवाओं को पढ़ना चाहिए। तभी आप पवित्रता और अश्लीलता को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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