Monday, 8 October 2018

प्रश्न - *मन्त्र जाप करते समय किन किन नियमों का पालन करना चाहिए मन्त्र जाप शुरू करने से पहले क्या करना चाहिए और पूरण होने पर क्या करना चाहिए कृपा करके बताने की कृपा करें।

प्रश्न - *मन्त्र जाप करते समय किन किन नियमों का पालन करना चाहिए मन्त्र जाप शुरू करने से पहले क्या करना चाहिए और पूरण होने पर क्या करना चाहिए कृपा करके बताने की कृपा करें।  धन्यवाद*

उत्तर - आत्मीय भाई,

गायत्री एक अत्यन्त ही उच्च कोटि का अध्यात्मिक विज्ञान है। इसके द्वारा अपने मानसिक दोष दुर्गुणों को हटाकर अन्तःकरण को निर्मल बनाना हर किसी के लिए बहुत ही सरल है। इसके अतिरिक्त यदि गहरे अध्यात्मिक क्षेत्र में उतरा जाय तो अनेक प्रकार की चमत्कारी ऋद्धि सिद्धियाँ उपलब्ध हो सकती हैं। भौतिक दृष्टि से सकाम कामनाओं के लिए साँसारिक कठिनाइयों का समाधान करने तथा सुख सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए भी महत्व पूर्ण सहायता ली जा सकती है।

शरीर को स्नान से शुद्ध करके साधना पर बैठना चाहिए, किसी विवशता ऋतु प्रतिकूल या अस्वस्थता की दशा में हाथ मुँह धोकर या गीले कपड़े से शरीर पोंछ कर भी काम चलाया जा सकता है। आसन बिछा कर पालती मार कर सीधे साधे ढंग से स्थिर चित्त से बैठना चाहिए। माला तुलसी या चंदन की लेनी चाहिए। प्रातः काल सूर्योदय के दो घंटे पूर्व से लेकर सायंकाल सूर्य अस्त होने के एक घंटे बाद तक दिन में कभी भी उपासना की जा सकती है पर प्रातः सायंकाल का समय अधिक उत्तम है। यदि अधिक रात्रि हो जाये या चलते फिरते जप करना हो तो मन ही मन मौन मानसिक जप करना चाहिए। यदि मन्दिर या स्थिर उपासना गृह में नहीं बैठे हैं तो सूर्य को गायत्री का प्रतीक मान कर प्रातःकाल पूर्व को,मध्याह्न उत्तर को, सायंकाल पच्छिम को मुख करके बैठना चाहिए। माला जपते समय सुमेरु (माला के आरंभ का सबसे बड़ा दाना) का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। एक माला पूरी होने पर उसे मस्तक से लगा कर पीछे को ही उलट देना चाहिए। तर्जनी उंगली का जप के समय उपयोग नहीं होता ।

मल मूत्र त्याग अनिवार्य कार्य के लिए बीच में उठना पड़ेगा। अच्छे से हाथ मुँह धोकर दुबारा वस्त्र बदलकर तब दुबारा जप में बैठना चाहिए। जप नियमित संख्या में तथा नियत समय पर करना उचित है। यदि कभी बाहर जाने या अन्य कारणों से जप छूट जाय तो आगे थोड़ा थोड़ा करके उस छूटे हुए जप को पूरा कर लेना चाहिए। और एक माला प्रायश्चित स्वरूप अधिक करना चाहिए। जप इस प्रकार करना चाहिए कि कंठ से ध्वनि होते रहे, होंठ हिलते रहें परन्तु पास बैठा हुआ मनुष्य भी स्पष्ट रूप से उसे सुन न सके। साधक का आहार विहार सात्विक रहना चाहिए। पर जिनसे वैसा नहीं बन पड़ता वे भी उपासना कर सकते हैं। क्यों कि उपासना के प्रभाव से तन की बुराइयाँ बहुत जल्दी अपने आप ही सुधरती हैं और साधक स्वयं ही कुछ दिन की अनेक बुराइयों को छोड़ कर शुद्ध सतोगुणी बनने लगता है।

जप प्रारम्भ करने से पूर्व पवित्रीकरण, आचमन,शिखा बन्धन प्राणायाम,न्यास करने का नियम है। यह पाँचों कार्य केवल गायत्री मन्त्र में हो सकते हैं। जिनको यह सब न आता हो वे गायत्री माता के चित्र को प्रणाम पूजन करने या मानसिक ध्यान करके जप प्रारंभ कर सकते हैं। जप के समय जल और धूप बत्ती रखनी चाहिए। इस प्रकार जल, और अग्नि को साक्षी रखना उत्तम है। कम से कम 1 माला (108 मन्त्र जपना आवश्यक हैं। अधिक सुविधा हो तो 3, 5, 7, 9, 11 आदि विषय संख्याओं में मालाएं जपनी चाहिए। जप के समय सूर्य के समय तेजस्वी मंडली में गायत्री माता का ॐ का ध्यान करते रहना चाहिये। जप के आदि में आवाहन का प्रणाम और अन्त में विसर्जन का प्रणाम करना चाहिए तथा पूजा के समय रखा हुआ जल सूर्य की ओर चढ़ा देना चाहिए।

जप करते वक्त कुश का या ऊनी वस्त्र(कम्बल, शॉल इत्यादि) का आसन जरूर प्रयोग करें।

उपरोक्त आर्टिकल का सन्दर्भ - *अखण्डज्योति पत्रिका January 1955* में जो परमपूज्य गुरुदेव ने निर्देश दिया है, उससे लिया गया है।

पुस्तक - अधिक जानकारी के लिए *दैनिक गायत्री साधना एवं यज्ञ पद्धति* खरीद लें या ऑनलाइन पढ़ लें।
 http:// literature. awgp. org/book/gayatri_ki_dainik_sadhna/v1

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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