प्रश्न - *दी, क्या श्राद्ध कर्म और पितृ ऋणमुक्ति के लिए लड़का पैदा करना जरूरी है?*
*आज मेरे घर मे झगड़ा हो गया, मेरे जेठ जी ने मेरे श्वसुर जी को घर में सबके सामने जवाब दिया। हालांकि ग़लती मेरे ससुर जी की ही थी, ससुर जी जबरजस्ती दूसरी सन्तान पैदा करने हेतु मेरे जेठ पर दबाव डाल रहे थे । मेरे जेठ जी डॉक्टर है और सुलझे हुए शांत और अच्छे व्यक्ति हैं। न जाने क्यों आज वो स्वयं को शांत नहीं रख पाए। लेकिन मेरा 10 वर्षीय बेटा भी वहीं खड़ा था। समझ नहीं आया कि कैसे उन्हें समझाऊँ?*
सुबह सुबह ससुर जी घर में मेरे पति, जेठ जी और दोनों देवर को बुलाकर उनपर चिल्ला रहे थे कि तुम लोगों को जन्माया और कितनी कठिनाई से पालपोष के बड़ा किया, आजकल तुम लोग मेरी सुनते नहीं, इत्यादि इत्यादि।
जेठ ने जी ने उन्हें जवाब दिया - कि पिताजी सन्तान उतपत्ति आपने अपनी इच्छा के लिए किया। पितृऋण से उऋण होने के लिए एक सन्तान ही काफ़ी है। फिर भी आप 4 बेटे और 4 बेटियों के पिता बने। पढ़े लिखे होने के बावजूद आपने इतनी जनसँख्या वृद्धि की। आप जैसे लोगों के स्वार्थपूर्ण इच्छाओं के कारण हमारा देश भुगत रहा है, जनसँख्या विष्फोट का दंश झेल रहा है। आपने स्वयं इतनी सारी संतानों की उतपत्ति की वो भी बिना आर्थिक प्लानिंग के, फिर कठिनाई तो आपको उठानी ही पड़ेगी।
अच्छा एक बात बताइये, क्या किसी अन्य किसी की सन्तान को भी पाला है क्या? क्या कभी एक रुपये भी अनाथों पर खर्च किया? क्या कभी पूरी उम्र में एक बार भी देश समाज के उद्धार के लिए सोचा? नहीं न...स्वयं स्वार्थी जीवन जिया और अब हमें भी उसी नारकीय रास्ते की ओर बढ़ने की सलाह दे रहे हैं।
इस बात के लिए चिल्ला रहे हैं, कि हम सभी भाई बहन ने एक सन्तान रखने का निर्णय लिया है। मेरी एक बेटी है और मैं दूसरी सन्तान के लिए प्रयास नहीं कर रहा हूँ, तो बहुत बड़ा गुनाह कर रहा हूँ, मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी यही न..
किस दुनियाँ में आप जी रहे हैं पिताजी? क्या केवल बेटे ही मुक्ति दिलाएंगे? पिताजी बेटों के अच्छे कर्मों से पिता को मुक्ति मिलेगी? एक अच्छी सन्तान देश समाज को देने का पुण्य मिलेगा। केवल लड़का पैदा करने से पुण्य नहीं मिलता। यदि वही लड़की सन्तान श्रेष्ठ हुई और अच्छे कर्म किये तो पिता को मुक्ति मिलेगी।
सन्तान अगर कुकर्म करेगी तो कुकर्म का फ़ल माता-पिता को भी लगेगा। आपने अपने जीवन मे कोई पुण्यकर्म किया नहीं तो यह बताइये आपके पिता को कैसे मुक्ति मिलेगी?
मैं दिन रात मरीजों की सेवा कर रहा हूँ, और अपनी कन्या सन्तान को सेवा भाव से जोड़कर श्रेष्ठ बना रहा हूँ तो क्या भगवान मेरे कर्मो से मुझे मुक्ति नहीं देगा?
मूर्खता छोड़िए, और हम सभी को पुनः दूसरी सन्तान के लिए दबाव देकर परेशान मत कीजिये।
उत्तर - बहन, आपके जेठ जी सही कह रहे हैं। पुस्तक - *गहना कर्मणो गतिः* के अनुसार मनुष्य की मुक्ति का आधार उसके कर्मफ़ल पर निर्भर करता है। केवल लड़का पैदा करने से मुक्ति नहीं मिलती।
योगी लोकसेवक कोई सन्तान पैदा नहीं करते, लोकसेवा में लगे रहते हैं उन्हें मुक्ति मिलती है।
*योग वशिष्ठ* और *प्रग्योपनिषद पुस्तक* के अनुसार कन्या भी पुत्र के समान ही श्राद्ध और तर्पण की अधिकारिणी है।
यह सत्य है कि पिता की आज्ञा माननी चाहिए, लेकिन तब जब वह धर्म पर हो।
दशरथ जी धर्म पर थे तो श्रीराम ने पिता आज्ञा का पालन किया।
हिरण्यकश्यप अधर्म पर था तो भक्त प्रह्लाद ने उनकी आज्ञा नहीं मानी।
भाई श्रीराम धर्म पर थे तो भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने उनकी आज्ञा मानी।
भाई रावण अधर्म पर था तो विभीषण ने उनकी आज्ञा नहीं मानी।
रावण अधर्मी था, इसलिए उनकी पत्नी मंदोदरी ने उनका विरोध किया।
जहां धर्म हो, वहीं रिश्ते को सम्मान देते हुए आज्ञा माननी चाहिए। यदि बड़े अधर्म और स्वार्थ पूरित आदेश दें, तो उनका विरोध करना चाहिए - उदाहरण दहेज लेने के लिए प्रेरित करना, दूसरी सन्तान पैदा करने के लिए प्रेरित करना, स्वार्थप्रेरित किसी से बदला लेने को कहना। इन सभी आज्ञा को नहीं मानना शास्त्र सम्मत है।
*यह सत्य है कि, यदि सन्तान लड़का हो या लड़की पुण्य कर्म करेगी, तो उसका एक अंश उनके जन्मदाता माता-पिता और पूर्वजो को जाता है। यदि सन्तान लड़की हो या लड़का पाप कर्म करेगा तो उसके पाप का एक अंश उनके जन्मदाता माता पिता और पूर्वजो को जाता है।*
अतः मन पर बोझ न लें, धर्म जहां है उसका साथ दें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
*आज मेरे घर मे झगड़ा हो गया, मेरे जेठ जी ने मेरे श्वसुर जी को घर में सबके सामने जवाब दिया। हालांकि ग़लती मेरे ससुर जी की ही थी, ससुर जी जबरजस्ती दूसरी सन्तान पैदा करने हेतु मेरे जेठ पर दबाव डाल रहे थे । मेरे जेठ जी डॉक्टर है और सुलझे हुए शांत और अच्छे व्यक्ति हैं। न जाने क्यों आज वो स्वयं को शांत नहीं रख पाए। लेकिन मेरा 10 वर्षीय बेटा भी वहीं खड़ा था। समझ नहीं आया कि कैसे उन्हें समझाऊँ?*
सुबह सुबह ससुर जी घर में मेरे पति, जेठ जी और दोनों देवर को बुलाकर उनपर चिल्ला रहे थे कि तुम लोगों को जन्माया और कितनी कठिनाई से पालपोष के बड़ा किया, आजकल तुम लोग मेरी सुनते नहीं, इत्यादि इत्यादि।
जेठ ने जी ने उन्हें जवाब दिया - कि पिताजी सन्तान उतपत्ति आपने अपनी इच्छा के लिए किया। पितृऋण से उऋण होने के लिए एक सन्तान ही काफ़ी है। फिर भी आप 4 बेटे और 4 बेटियों के पिता बने। पढ़े लिखे होने के बावजूद आपने इतनी जनसँख्या वृद्धि की। आप जैसे लोगों के स्वार्थपूर्ण इच्छाओं के कारण हमारा देश भुगत रहा है, जनसँख्या विष्फोट का दंश झेल रहा है। आपने स्वयं इतनी सारी संतानों की उतपत्ति की वो भी बिना आर्थिक प्लानिंग के, फिर कठिनाई तो आपको उठानी ही पड़ेगी।
अच्छा एक बात बताइये, क्या किसी अन्य किसी की सन्तान को भी पाला है क्या? क्या कभी एक रुपये भी अनाथों पर खर्च किया? क्या कभी पूरी उम्र में एक बार भी देश समाज के उद्धार के लिए सोचा? नहीं न...स्वयं स्वार्थी जीवन जिया और अब हमें भी उसी नारकीय रास्ते की ओर बढ़ने की सलाह दे रहे हैं।
इस बात के लिए चिल्ला रहे हैं, कि हम सभी भाई बहन ने एक सन्तान रखने का निर्णय लिया है। मेरी एक बेटी है और मैं दूसरी सन्तान के लिए प्रयास नहीं कर रहा हूँ, तो बहुत बड़ा गुनाह कर रहा हूँ, मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी यही न..
किस दुनियाँ में आप जी रहे हैं पिताजी? क्या केवल बेटे ही मुक्ति दिलाएंगे? पिताजी बेटों के अच्छे कर्मों से पिता को मुक्ति मिलेगी? एक अच्छी सन्तान देश समाज को देने का पुण्य मिलेगा। केवल लड़का पैदा करने से पुण्य नहीं मिलता। यदि वही लड़की सन्तान श्रेष्ठ हुई और अच्छे कर्म किये तो पिता को मुक्ति मिलेगी।
सन्तान अगर कुकर्म करेगी तो कुकर्म का फ़ल माता-पिता को भी लगेगा। आपने अपने जीवन मे कोई पुण्यकर्म किया नहीं तो यह बताइये आपके पिता को कैसे मुक्ति मिलेगी?
मैं दिन रात मरीजों की सेवा कर रहा हूँ, और अपनी कन्या सन्तान को सेवा भाव से जोड़कर श्रेष्ठ बना रहा हूँ तो क्या भगवान मेरे कर्मो से मुझे मुक्ति नहीं देगा?
मूर्खता छोड़िए, और हम सभी को पुनः दूसरी सन्तान के लिए दबाव देकर परेशान मत कीजिये।
उत्तर - बहन, आपके जेठ जी सही कह रहे हैं। पुस्तक - *गहना कर्मणो गतिः* के अनुसार मनुष्य की मुक्ति का आधार उसके कर्मफ़ल पर निर्भर करता है। केवल लड़का पैदा करने से मुक्ति नहीं मिलती।
योगी लोकसेवक कोई सन्तान पैदा नहीं करते, लोकसेवा में लगे रहते हैं उन्हें मुक्ति मिलती है।
*योग वशिष्ठ* और *प्रग्योपनिषद पुस्तक* के अनुसार कन्या भी पुत्र के समान ही श्राद्ध और तर्पण की अधिकारिणी है।
यह सत्य है कि पिता की आज्ञा माननी चाहिए, लेकिन तब जब वह धर्म पर हो।
दशरथ जी धर्म पर थे तो श्रीराम ने पिता आज्ञा का पालन किया।
हिरण्यकश्यप अधर्म पर था तो भक्त प्रह्लाद ने उनकी आज्ञा नहीं मानी।
भाई श्रीराम धर्म पर थे तो भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने उनकी आज्ञा मानी।
भाई रावण अधर्म पर था तो विभीषण ने उनकी आज्ञा नहीं मानी।
रावण अधर्मी था, इसलिए उनकी पत्नी मंदोदरी ने उनका विरोध किया।
जहां धर्म हो, वहीं रिश्ते को सम्मान देते हुए आज्ञा माननी चाहिए। यदि बड़े अधर्म और स्वार्थ पूरित आदेश दें, तो उनका विरोध करना चाहिए - उदाहरण दहेज लेने के लिए प्रेरित करना, दूसरी सन्तान पैदा करने के लिए प्रेरित करना, स्वार्थप्रेरित किसी से बदला लेने को कहना। इन सभी आज्ञा को नहीं मानना शास्त्र सम्मत है।
*यह सत्य है कि, यदि सन्तान लड़का हो या लड़की पुण्य कर्म करेगी, तो उसका एक अंश उनके जन्मदाता माता-पिता और पूर्वजो को जाता है। यदि सन्तान लड़की हो या लड़का पाप कर्म करेगा तो उसके पाप का एक अंश उनके जन्मदाता माता पिता और पूर्वजो को जाता है।*
अतः मन पर बोझ न लें, धर्म जहां है उसका साथ दें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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