Tuesday, 30 October 2018

जैसी मनःस्थिति वैसी ही परिस्थिति का अनुभव होगा। नजरिया बदलो नज़ारे बदल जाएंगे।

*भक्त के साथ भगवान होते है, उसके साथ जो भी होता है कमाल होता है, क्योंकि वो प्रत्येक विपत्ति के पीछे भी भगवत कृपा का संकेत पा ही जाता है।*

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते है कि मनुष्य के दुनियाँ देखने के नजरिये पर उसका जीवन निर्भर करता है। जैसी मनःस्थिति वैसी ही परिस्थिति का अनुभव।

आधी ग्लास भरी - *सकारात्मक दृष्टि कोण*(सुखी इंसान)
आधी ग्लास ख़ाली- *नकारात्मक दृष्टि कोण*(दुःखी इंसान)
आधी ग्लास पानी से भरी और आधी ग्लास हवा से भरी - *भक्त का दृष्टिकोण*(आनन्दित मस्तमौला इंसान)

दृष्टिकोण के अनुसार परिणाम मिलता है, जैसा सोचते है वैसे ही ब्रेन में संकेत पहुँचता है। Mental focus strengthens the neural pathways. कहावत भी है- जिस दिशा में सोचोगे उस दिशा में ऊर्जा जाएगी और वैसा ही आपके जीवन मे घटित होगा। where attention goes energy flows... यही सुखी और दुःखी होने का फार्मूला है।

आइये इसे दो कहानियों के माध्यम से समझते हैं:-

*कहानी - 1*
एक मंत्री बहुत भक्त था, कुछ भी होता कहता, कहता भगवत कृपा हो गयी। एक दिन राजा की तलवार साफ करते हुये उंगली कट गई। आदतानुसार मंत्री बोल पड़ा भगवत कृपा हो गयी। गुस्से में बौखलाया राजा और उसे जेल में डलवा दिया। करीब दो महीने बाद राजा शिकार पर गया, सैनिक पीछे छूट गए और आदिवासियों ने उसे पकड़ लिया। ज्यों ही बलि देने वाले थे, त्यों ही पुजारी को राजा की उंगली कटी दिखी। पुजारी आदिवासी के मुखिया से बोला नारियल जिस प्रकार टूटा नहीं चढ़ता वैसे ही अंग भंग अपूर्ण व्यक्ति की बलि भी नहीं चढ़ती। राजा को मुक्त कर दिया गया, राजा के मुंह से निकला आज तो मुझ पर भगवत कृपा हो गई। महल आकर उसने मंत्री को मुक्त किया और बोला तुम सही थे। उस दिन उंगली कटने की भगवत कृपा मुझ पर न होती तो आज मेरी गर्दन कट गयी होती। लेकिन ये बताओ तुम पर भला किस प्रकार भगवत कृपा हुई। मंत्री मुस्कुराया और बोला महराज हम और आप हमेशा संग रहते है। आपसे ज्यादा तो भगवत कृपा मुझ पर हुई, क्योंकि आप तो अपूर्ण थे लेकिन मैं तो पूर्ण था। यदि मैं जेल में न होता तो निश्चयतः मृत्यु को प्राप्त होता। अतः मुझपर आपसे ज्यादा भगवत कृपा हुई।

*कहानी 2* -

एक बगीचे का माली राजा से मिलने जा रहा था। बगीचे में आम, अमरूद, नारियल, पपीते, अंगूर सबकुछ उपलब्ध थे। उसके हृदय में केवल अंगूर ले जाने की प्रेरणा हुई। वह अंगूर ले जाकर राजा को भेंट किया, और बोला महराज आप पर सदा भगवत कृपा बनी रहे।

पत्नी रानी से लड़कर क्रुद्ध तमतमाया राजा बैठा था। गुस्से में अंगूर उठा उठा कर उस पर फेंकने लगा। जब भी राजा अंगूर उस फेंके वो मुस्कुराता हुआ आसमान देखकर बोले। मुझ पर भगवत कृपा बरस रही है। कुछ देर बाद जब अंगूर की टोकरी ख़ाली हो गयी। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। मैं इस पर अंगूर फेंक कर मारकर बेइज्जती कर रहा हूँ। और यह मुस्कुराते हुए भगवत कृपा कह रहा है। आखिर पूँछ ही लिया कि भाई तेरे ऊपर ऐसी कौन सी भगवत कृपा हुई भाई बेइज्जती पाकर भी।

माली बोला महराज, मैं आज आपके पास आ रहा था तब मुझे यह मालूम नहीं था कि आप क्रोध में होंगे और मुझे फल उठा उठाकर मारेंगे। यदि मुझपर आज भगवत कृपा न हुई होती और मैं अंगूर की जगह नारियल या बड़े फल लाता तो आज मेरी मृत्यु निश्चित थी या मेरा उन फलों से अंगभंग निश्चित था। तो हुई न मुझपर भगवत कृपा।

हे भक्तों, सुखी, दुःखी और आनन्दित रहने का फार्मूला युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब ने अपनी पांच छोटी पुस्तकों में दिया है:-
1- दृष्टिकोण ठीक रखें
2- सफल जीवन की दिशा धारा
3- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
4- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
5- विचारो की सृजनात्मक शक्ति

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। यदि इन पुस्तकों को पढ़ चुके हो तो भी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद दुबारा पढ़ ले। धरती पर ही आनन्दमय स्वर्ग में जिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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