Sunday, 28 October 2018

*कविता - स्वयं की रक्षा का भार स्वयं सम्हालो*

*कविता - स्वयं की रक्षा का भार स्वयं सम्हालो*

उठो द्रौपदी शस्त्र उठाओ,
स्वयं की रक्षा का भार, स्वयं सम्हालो,
नारी से नारायणी बनने का उपक्रम अपनाओ,
अपनी अस्मिता स्वयं बचाओ।

उठो द्रौपदी गीता शास्त्र उठा लो,
अर्जुन बनने का दायित्वबोध जगा लो ,
भविष्य में होने वाले वैचारिक महाभारत की,
आज से ही तैयारी कर डालो।

अब शासक अंधे के साथ साथ,
गूंगा बहरा लूला लंगड़ा भी है,
कानून मीडिया राजतंत्र की,
हालत बुरी और खस्ता भी है।

कन्या अब न गर्भ में सुरक्षित,
न ही है घर परिवार और समाज मे रक्षित,
उठो द्रौपदी शस्त्र उठा लो,
अपनी रक्षा का भार स्वयं उठा लो।

सिंहनी सी हुंकार भरो,
व्यक्तित्व में सँस्कार गढ़ो,
एक हाथ से आत्मियता से घर सम्हालो,
दूजे हाथ से स्वयं की रक्षा का भार सम्हालो।

कभी आततायी से जो मुठभेड़ हो जाए,
मरकर आना या मारकर आना,
रणभूमि में पीठ न दिखाना,
ख़बरों में अब अबला न कहलाना।

 उठो द्रौपदी शस्त्र उठा लो,
अपनी रक्षा का भार स्वयं उठा लो,
महिषासुर मर्दिनी दुर्गा कहलाना,
अब कभी अबला न कहलाना।

स्वाध्याय से विचारों में क्रांति जगाओ,
साधना से आत्मशक्ति बढ़ाओ,
स्वयं की अस्मिता स्वयं बचाओ,
नारी से नारायणी बन जाओ..

उठो द्रौपदी शस्त्र उठाओ,
अपनी अस्मिता स्वयं बचाओ,
उठो द्रौपदी शास्त्र उठाओ,
अपना आत्मगौरव स्वयं जगाओ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
महिला शशक्तिकरण अभियान

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