प्रश्न - *दी हस्त रेखा विज्ञान को जीवन मे कितना महत्त्व देना चाहिए? मार्गदर्शन करें*
उत्तर - आत्मीय बहन, हस्तरेखा विज्ञान को बिल्कुल महत्व नहीं देना चाहिए।
मानवीय चेतना किस स्तर पर है उस पर भविष्य निर्भर करता है।
चेतना तीन स्तर/तल पर विचरण करती है:-
👉🏼शारीरिक स्तर (केवल खाना-पीना-सोना, प्रजनन, घर की व्यवस्था में जिंदगी गुजार देना)
👉🏼 मानसिक स्तर (बुद्धिबल के प्रयोग से मानसिक क्षमता का उच्चतम प्रयोग संगीत, कला, विज्ञान, चिकित्सा, रिसर्च इत्यादि में जुटना)
👉🏼 आत्मिक स्तर (आत्मबल-ब्रह्मबल के प्रयोग से स्वयं की क्षमता का पूर्ण विकास करना, स्वयं को जानना और ब्रह्मांडीय दैवीय चेतना से सम्पर्क स्थापित करना। परमानन्द में डूबना और लोकहित जीना)
हाथों की लकीरों से वही मनुष्य बंधा है जिसकी चेतना पशुवत केवल शरीर तल/स्तर पर ही है। शरीर से जुड़ी आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसे और कुछ नहीं सूझता। अंधाधुंध खाना और प्रजनन करना।
जब मनुष्य की चेतना इससे ऊपर उठ जाती है अर्थात मानसिक तल/बुद्धिबल का प्रयोग करने लगता है वो हाथों की लकीरों को मनचाहा फेरबदल कर सकता है। विद्या हाथ की लकीर में न भी हो तो भी महाज्ञानी बन सकता है, निरन्तर मेहनत से असम्भव भी सम्भव है।
जब मनुष्य की चेतना मानसिक स्तर से भी ऊपर आत्म चेतना तक पहुंच जाती है। तब मनुष्य स्वयं का भाग्य विधाता बन जाता है। उसकी चेतना शिखर पर होती है और साक्षी भाव से वो जीता है। ब्रह्मानन्द में डूबे ऐसे योगी सूखे नारियल की तरह हो जाते है, शरीर मे रहकर भी शरीर भाव से परे होते है। अतः इनपर हाथों की लकीरों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
फिर बहन हाथों की लकीरों से ही केवल तक़दीर/भाग्य/किस्मत नहीं बनता, क्योंकि तक़दीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ भी नहीं होते।
अतः अपनी चेतना को गायत्री साधना, ज्ञानार्जन और मेहनत से चेतना के शिखर पर, आत्म स्तर पर ले जाओ। और स्वयं की भाग्य विधाता बनो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, हस्तरेखा विज्ञान को बिल्कुल महत्व नहीं देना चाहिए।
मानवीय चेतना किस स्तर पर है उस पर भविष्य निर्भर करता है।
चेतना तीन स्तर/तल पर विचरण करती है:-
👉🏼शारीरिक स्तर (केवल खाना-पीना-सोना, प्रजनन, घर की व्यवस्था में जिंदगी गुजार देना)
👉🏼 मानसिक स्तर (बुद्धिबल के प्रयोग से मानसिक क्षमता का उच्चतम प्रयोग संगीत, कला, विज्ञान, चिकित्सा, रिसर्च इत्यादि में जुटना)
👉🏼 आत्मिक स्तर (आत्मबल-ब्रह्मबल के प्रयोग से स्वयं की क्षमता का पूर्ण विकास करना, स्वयं को जानना और ब्रह्मांडीय दैवीय चेतना से सम्पर्क स्थापित करना। परमानन्द में डूबना और लोकहित जीना)
हाथों की लकीरों से वही मनुष्य बंधा है जिसकी चेतना पशुवत केवल शरीर तल/स्तर पर ही है। शरीर से जुड़ी आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसे और कुछ नहीं सूझता। अंधाधुंध खाना और प्रजनन करना।
जब मनुष्य की चेतना इससे ऊपर उठ जाती है अर्थात मानसिक तल/बुद्धिबल का प्रयोग करने लगता है वो हाथों की लकीरों को मनचाहा फेरबदल कर सकता है। विद्या हाथ की लकीर में न भी हो तो भी महाज्ञानी बन सकता है, निरन्तर मेहनत से असम्भव भी सम्भव है।
जब मनुष्य की चेतना मानसिक स्तर से भी ऊपर आत्म चेतना तक पहुंच जाती है। तब मनुष्य स्वयं का भाग्य विधाता बन जाता है। उसकी चेतना शिखर पर होती है और साक्षी भाव से वो जीता है। ब्रह्मानन्द में डूबे ऐसे योगी सूखे नारियल की तरह हो जाते है, शरीर मे रहकर भी शरीर भाव से परे होते है। अतः इनपर हाथों की लकीरों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
फिर बहन हाथों की लकीरों से ही केवल तक़दीर/भाग्य/किस्मत नहीं बनता, क्योंकि तक़दीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ भी नहीं होते।
अतः अपनी चेतना को गायत्री साधना, ज्ञानार्जन और मेहनत से चेतना के शिखर पर, आत्म स्तर पर ले जाओ। और स्वयं की भाग्य विधाता बनो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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